गर्भाधान संस्कार संपूर्ण होने के बाद गर्भ में मौजूद शिशु के मानसिक विकास हेतु और स्वस्थ बच्चे के जन्म के लिए किया जाने वाला दूसरा संस्कार पुंसवन संस्कार होता है. यह संस्कार गर्भाधान के दूसरे या तीसरे महीने में किया जाता है. इस के द्वारा गर्भवती स्त्री को शुभ वातावरण एवं संस्कारों भी मिलते हैं. यह जीव को विकास एवं शुभता देने में सहयोगात्मक है. इसका उद्देश्य


सप्तम भाव को विवाह का भाव कहा जाता है. इस भाव से संबन्ध रखने वाले ग्रह वैवाहिक जीवन को प्रभावित करते है. सप्तम भाव की राशि, इस भाव में स्थित ग्रह व्यक्ति के जीवनसाथी के स्वभाव व आचरण को दर्शाते हैं. विवाह भाव, विवाह भाव के स्वामी तथा विवाह के कारक ग्रह शुभ ग्रहों से संबन्ध बनाते हैं तो दाम्पत्य जीवन में सुख-शान्ति की


विवाह जीवन का एक महत्वपूर्ण फैसला होता है. विवाह को लेकर मन में उत्सुकता रहती है तो एक भय भी बना रहता है कि होने वाला जीवनसाथी कैसा होगा. उनके साथ उनकी जिन्दग़ी कैसी गुजरेगी. परिवार में उनका आगमन किस प्रकार का परिवर्तन लएगा. ऐसे ही न जाने कितने प्रश्न मन में आते-जाते रहते हैं.


ज्योतिषशास्त्र की मान्यता है कि कुण्डली के सातवें घर में जो ग्रह बैठे होते हैं उनके अनुसार व्यक्ति के जीवनसाथी का स्वभाव हो सकता है (Jyotisha believes that the planets located in the seventh house impact the marriage partner). अगर इस घर में एक से अधिक ग्रह हों तो बाकि ग्रहों का भी प्रभाव जीवनसाथी पर होता है.


छठा भाव ( Sixth House) त्रिक भावों में से एक भाव है. 6,8 व 12 वें भाव को त्रिक भावों के नाम से जाना जाता है. तथा त्रिक भावों को शुभ भाव नहीं कहा जाता है. इन भावों का संबन्ध जिन भी ग्रहों व भावेशों से बनता है उनकी शुभता में कमी आती है. छठे भाव को रोग भाव( Deases House ), ऋण ( Loan House ) व सेवा भाव ( Service House) के नाम से भी जाना जाता है.


सामान्यत: रत्नों की सही परख करना आम व्यक्ति के लिये बेहद कठिन कार्य है. रत्नों की परख करने के लिये सामान्य दिशा निर्देशों का पालन करने पर इस मुश्किल कार्य को सरल बनाया जा सकता है. फिर भी रत्नों पर कुछ प्रयोग करके हम असली व नकली में अन्तर कर सकते है (Differentiation between real and fake Gemstone).


रत्नो में एक अजीब आकृ्षण शक्ति पाई जाती है. इसलिये रत्नों को एक बार देखने के बाद इनकी चमक व किरणों को बार-बार देखने का भाव बना रहता है. अदभूत वस्तुओं की ओर व्यक्ति प्राचीन समय से ही जिज्ञासु रहा है. व्यक्ति इनके जितना करीब जाता है. उसके मोह में वृ्द्धि होती जाती है. रत्नों के इस मोह को बरकार रखते हुए हम इन्हें गहराई से जानने का प्रयास करते है


रत्नो का संसार अपने आप में अदभूत संसार है. इन्हें जानने की जिज्ञासा व्यक्ति में प्राचीन काल से ही रही है. रत्नों के इस संसार को हम जितना जानते जाते हे. इसके प्रति हमारा जानकारी कम ही रहती है. रत्नों को लेकर कुछ किवंदतियां है, तथा कुछ अवधारणायें है जो पुराने समय से चली आ रही है. आईये जाने की रत्नों में ऎसा क्या है जो सदा से मनुष्य इनकी ओर आकृ्र्षित


किसी भी वस्तु या पदार्थ को पहचानना हों तो उसके लिये सबसे पहले पदार्थ या वस्तु के गुणों की जानकारी होनी चाहिए. गुणों को समझे बिना किसी रत्न के विषय में कुछ भी कहना कठिन होता है. विज्ञान के क्षेत्र में भी किसी भी पदार्थ को उसके गुणों से ही समझना चाहिए. आईये देखे की रत्नों को गुणों के आधार पर किस प्रकार पहचाना जा सकता है.


रत्नो का संसार अपने आप में अदभूत संसार है. इन्हें जानने की जिज्ञासा व्यक्ति में प्राचीन काल से ही रही है. रत्नों के इस संसार को हम जितना जानते जाते हे. इसके प्रति हमारी जिज्ञासा बढती ही जाती है. रत्नों को लेकर कुछ किवंदतियां है तो कुछ अवधारणायें है जो पुराने समय से चली आ रही है. आईये जाने की रत्नों में ऎसा क्या है जो सदा से मनुष्य


वैवाहिक जीवन की शुभता को बनाये रखने के लिये यह कार्य शुभ समय में करना उतम रहता है. अन्यथा इस परिणय सूत्र की शुभता में कमी होने की संभावनाएं बनती है. कुछ समय काल विवाह के लिये विशेष रुप से शुभ समझे जाते है. इस कार्य के लिये अशुभ या वर्जित समझे जाने वाला भी समय होता है. जिस समय में यह कार्य करना सही नहीं रहता है. आईये देखे की विवाह के


वैदिक ज्योतिष के ग्रंन्थों में अनेक दशाओं का वर्णन किया गया हैं परन्तु सरल, लोकप्रिय, सटीक एवं सर्वग्राह्य विंशोत्तरी दशा ही है. कृ्ष्णमूर्ति पद्धति में भी इसी दशा का प्रयोग किया जाता है.सूर्य आत्मा का, चन्द्रमा मन का, मंगल बल का, बुध बुद्धि का, गुरु जीव का, शुक्र स्त्री का और शनि आयु का कारक है. फलादेश देश, काल और परिस्थिति को ध्यान में रखकर करना चाहिए


ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भाग्य बलवान होने से जीवन में मुश्किलें कम आती हैं, व्यक्ति को अपने कर्मों का फल जल्दी प्राप्त होता है. भाग्य का साथ मिले तो व्यक्ति को जीवन का हर सुख प्राप्त होता. यही कारण है कि लागों में सबसे ज्यादा इसी बात को लेकर उत्सुकता रहती है कि उसका भाग्य कैसा होगा. कुण्डली के भाग्य भाव में सातवें घर का स्वामी बैठा होने पर व्यक्ति का


सभी ग्रहों में शनि को सबसे अधिक कष्ट देने वाला ग्रह कहा गया है. जब गोचर में शनि किसी व्यक्ति के लिये शुभ न चल रहे हों या फिर शनि की साढेसाती चल रही हों या फिर शनि की ढैय्या में भी ये उपाय किये जा सकते है (remedies for Saturn's Sadhesati and Dhaiyya). शनि की महादशा में मानसिक कष्टों से गुजरने वाले व्यक्तियों के लिये


कला जगत में नाम, शोहरत एवं पैसा है, इस कारण से लोगों कला जगत में अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश करते हैं. परंतु, सच यह है कि किसे किस क्षेत्र में सफलता मिलेगी वह ईश्वर पहले से तय करके धरती पर भेजता है. कला जगत में भी कई काम हैं जैसे अभिनय, गायन, नृत्य, लेखन आदि. कौन व्यक्ति अभिनेता बन सकता है कौन गीतकार तथा कौन गायक यह उस व्यक्ति


सुन्दर दिखने की चाहत हर किसी की होती है लेकिन, हर किसी की सुन्दरता लोगों को आकर्षित नहीं करती है. वास्तव में सुन्दरता यानी खबूसूरती कुदरत की देन है. सुन्दरता अपने आप में एक दौलत है. जिसे सौन्दर्य की दौलत मिल जाती है उसे इस संसार में सब कुछ मिल जाता है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार दो प्राकृतिक शुक्र ग्रह शुक्र एवं चन्द्र सौन्दर्य के कारक होते हैं. इन


ज्योतिषशास्त्र में कई शुभ योगों का जिक्र किया गया है. कुछ शुभ योगों को राजयोग की श्रेणी में रखा गया है. कुण्डली (Kundli) में राजयोग होने पर व्यक्ति को सुख-सम्पत्ति मान-सम्मान एवं ख्याति मिलती है ऐसी ज्योतिषशास्त्र की मान्यता है. इन्हीं कारणों से लोगों में यह जानने की उत्सुकता रहती है कि क्या उनकी कुण्डली में राजयोग है. इस आलेख में कुछ ऐसे योगों के विषय में


रत्न स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद होते हैं. यह जरूरी नहीं कि रोग के ईलाज के लिए आप दवाईयों पर निर्भर रहें. रोग का उपचार करने से अच्छा है उनसे बचाव करना. रत्न इस कार्य में काफी उपयोगी एवं प्रभावशाली होते हैं. माणिक्य और स्वास्थ्य (Ruby and Health) माणिक्य सूर्य का रत्न है. माणिक्य या माणिक का रंग लाल होता है. जो व्यक्ति हृदय रोग से पीड़ित हैं


विदेश में नौकरी एवं आजीविका की चाहत आज के युवाओं की पहली पसंद बन गई है. ऊँची डिग्रियां लेने के बाद ख्वाहिश यही होती है कि वह विदेश जाकर खूब कमाएं. लेकिन, विदेश जाने का अवसर मिलेगा अथवा नहीं यह आपकी किस्मत पर निर्भर करता है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार व्यक्ति की कुण्डली में ग्रहों की स्थिति एवं योग यह तय करते हैं कि वह विदेश जाएगा या


गोमेद एक रत्न है जिसे राहु ग्रह से समबन्धित किसी भी विषय के लिए धारण करने हेतु ज्योतिषशास्त्री परामर्श देते हैं. गोमेद न सिर्फ राहु ग्रह की बाधाओं को दूर करता है बल्कि, गोमेद कई प्रकार की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से भी निजात दिलाता है (Gomed removes all problems caused by Rahu). गोमेद एक ऐसा रत्न है जो नज़र की बाधाओं, भूत-प्रेत एवं जादू-टोने से


राहु का नाम केतु के साथ लिया जाता है परंतु इन दोनों ग्रहों में जितना विभेद है उतनी ही समानता राहु एवं शनि में है. शनि और राहु इन दोनों ग्रहों को पाप ग्रह के रूप में माना जाता है. ज्योतिषशास्त्र में शनि और राहु को एक विचार एवं गुणों वाला भी माना गया है. आमतौर पर इन दोनों ही ग्रहों को दु:ख एवं कष्ट का कारक समझा जाता है. लेकिन, ये दोनों ही ग्रह कुण्डली में बलवान


नवग्रहों में चन्द्रमा को शुभ ग्रह माना जाता है. यह हमारी पृथ्वी का सबसे नजदीकी ग्रह भी है अत: इसका प्रभाव भी जल्दी होता है. जन्म कुण्डली में चन्द्र जिस राशि मे बैठा होता है वही व्यक्ति का राशि होता है. चन्द्र राशि का महत्व लग्न के समान ही होता है. फलदेश करते समय लग्न कुण्डली के समान ही चन्द्र कुण्डली का भी प्रयोग किया जाता है. चन्द्र कई प्रकार के योग का भी


मंगल अपनी उच्च राशि, मूल त्रिकोण अथवा स्वराशि में होने पर रूचक (Ruchak Yoga) योग का निर्माण करता है.ज्योतिषशास्त्र में पंच महापुरूष नामक (Panch Mahapurush Yoga) योग के अन्तर्गत इस योग का उल्लेख किया गया है. आपकी कुण्डली में यह योग है और आपको इसका क्या फल मिल रहा है.


कोई अपने सुख के लिए वाहन खरीदना चाहता है तो कोई व्यवसायिक उद्देश्य से. उद्देश्य चाहे जो भी आज की तेज रफ्तार जिन्दग़ी में रफ्तार के साथ चलने के लिए वाहन की चाहत हर किसी के दिल में होती है. ज्योतिषशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार जन्म के समय ग्रह जिस भाव, राशि एवं स्थिति में कुण्डली में आकर बैठते हैं उसी के अनुसार तय होता है कि व्यक्ति को कब


चन्द्रमा मन का कारक ग्रह होता है. ज्योतिषशास्त्र में सभी ग्रहों की दो-दो राशियां हैं केवल सूर्य एवं चन्द्र ही ऐसे ग्रह हैं जिनकी एक-एक राशियां हैं. सूर्य-चन्द्र को नवग्रहों में क्रमश: राजा रानी के रूप में माना जाता है. रानी का सम्बन्ध यानी चन्द्र की युति दूसरे ग्रहों के साथ होने पर उनका क्या प्रभाव होता है यह ज्योतिषशास्त्र का एक महत्वपूर्ण विषय है. इसी महत्वपूर्ण विषय पर


शनि को न्यायाधीश का पद प्राप्त है. यह व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार शुभाशुभ फल देता है. लेकिन, आमतौर पर लोग इसे अशुभ एवं कष्टकारी ग्रह के रूप में देखते हैं. शनि के विषय में यह आम मानसिकता बन चुकी है कि यह केवल कष्ट एवं दु:ख देते हैं जबकि, शनि कष्ट ही नहीं सुख एवं वैभव देने वाले ग्रह भी हैं. शनि का भय सबसे ज्यादा लोगों को साढ़ेसाती के नाम से होता है


लक्ष्मी जी का स्थायी निवास अपने यहां बनाये रखने के लिये दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा के लिये दिन के सबसे शुभ मुहूर्त समय को लिया जाता है. वर्ष 2010 में दीपावली का पर्व शुक्रवार, 05 नवम्बर 2010 की अमावस्या, चित्रा व स्वाति नक्षत्र, प्रीती योग मे मनाया जायेगा. दीपावली मे अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न व चौघा़डिया मुहूर्त विशेष महत्व रखते है.


ज्योतिषशास्त्र में परिणाम की प्राप्ति होने का समय जानने के लिए जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है उनमें से एक विधि है विंशोत्तरी दशा. विंशोत्तरी दशा का जनक महर्षि पराशर को माना जाता है. पराशर मुनि द्वारा बनाई गयी विंशोत्तरी विधि चन्द्र नक्षत्र पर आधारित है. इस विधि से की गई भविष्यवाणी कामोवेश सटीक मानी जाती है, इसलिए ज्योतिषशास्त्री वर्षों से इस विधि


सूर्य का रत्न माणिक्य है, चन्द्र का मोती, मंगल का मूंगा इसी प्रकार शनि का रत्न है नीलम. शनि को नवग्रहों में पाप ग्रह तथा क्रूर ग्रह के रूप में संबोधित किया गया है. माना जाता है कि शनि अपनी दशा में व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार दंड देता है इसलिए, शनि की दशा कष्टकारी प्रतीत होती है. शनि के कष्टदायी प्रभाव को कम करने हेतु शनि का रत्न नीलम धारण करना


धन तेरस जिसे धन त्रयोदशी भी कहा जाता है, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है. धन तेरस के दिन धनवंतरी नामक देवता अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए थे. देव धनवंतरी धन, स्वास्थ्य व आयु के देवता है. इन्हें देवों के वैध व चिकित्सक के रुप में भी जाना जाता है. यही कारण है कि धन तेरस का शुभ दिन चिकित्सकों के लिये विशेष महत्व


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