शीतला षष्ठी का व्रत षष्ठी तिथि के दिन किया जाता है. माता षष्ठी का पूजन संतान की कुशलता और दिर्घायु के लिए किया जाता है. इस व्रत का संपूर्ण भारत वर्ष में बहुत महत्व होता है. शीतला माता का पूजन करने से घर परिवार में सुख और शांति का वास होता
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मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को श्री राम विवाह पंचमी के रुप में मनाई जाती है. मान्यता है की इसी दिन भगवान श्री राम जी का सीता जी से विवाह संपन्न हुआ था. राम विवाह का बहुत ही सुंदर वर्णन हमें “रामायण” में प्राप्त होता है. यह
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हिन्दू पंचांग अनुसार षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी के रुप में मनाई जाती है. षष्ठी तिथि भगवान स्कन्द की जन्म तिथि होती है. भगवान स्कंद की षष्ठी तिथि को दक्षिण भारत में बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है. दक्षिण भारत में स्कंद भगवान का पूजन अत्यंत
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कार्तिक मास में आने वाली पूर्णिमा को “कार्तिक पूर्णिमा” के नाम से जाना जाता है. कार्तिक पूर्णिमा का पर्व संपूर्ण भारत वर्ष में उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस दिन के पावन अवसर पर देश के अनेक क्षेत्रों पर पूजा पाठ, धार्मिक अनुष्ठान कार्य
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मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी “चंपा षष्ठी” नाम से भी मनाई जाती है. मान्यता है की चंपा षष्ठी का पर्व भगवान शिव के एक अवतार खंडोवा को समर्पित है. खंडोवा या खंडोबा को अन्य कई नामों से भी पुकारा जाता है. इसमें से खंडेराया, मल्हारी,
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मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि श्री पंचमी का पर्व मनाया जाता है. पंचमी तिथि के दिन लक्ष्मी जी को "श्री" रुप में पूजा जाता है. देवी लक्ष्मी को "श्री"का स्वरुप ही माना गया है. दोनों का स्वरुप एक ही है ऎसे में ये दिन लक्ष्मी के
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हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में यम को मृत्यु का देवता बताया गया है. यम जिन्हें यमराज व धर्मराज के नाम से भी पुकारा जाता है. वेद में भी यम वर्णन विस्तार रुप से प्राप्त होता है. यमराज, का वाहन महिष है अर्थात भैसा. भैंसे पर सवार दण्डधर सभी
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ज्योतिष शास्त्र में पंचाग गणना अनुसार माह की 30वीं तिथि को अमावस्या कहा जाता है. इस समय के दौरान चंद्रमा और सूर्य एक समान अंशों पर मौजूद होते हैं. इस तिथि के दौरान चंद्रमा के प्रकाश का पूर्ण रुप से लोप हो जाता है अर्थात पृथ्वी पर उसकी
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मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव जयंती का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष 12 नवंबर 2025 को भैरव जयंती का उत्सव मनाया जाएगा. भैरव को भगवान शिव का ही एक रुप माना जाता है और भैरव शिव के अंशावतार हैं. भैरव का जन्म अष्टमी तिथि पर हुआ
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कार्तिक मास की 30वीं तिथि को “कार्तिक अमावस्या” के नाम से मनाया जाता है. हिन्दू धर्म में अमावस्या का विशेष महत्व रहता रहा है. प्रत्येक माह में आने वाली अमावस्या किसी न किसी रुप में कुछ खास लिए होती है. हर महीने में एक बार आने वाली अमावस्या
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कार्तिक माह में तुलसी पूजा का महात्मय पुराणों में वर्णित किया गया है. इसी के द्वारा इस बात को समझ जा सकता है कि इस माह में तुलसी पूजन पवित्रता व शुद्धता का प्रमाण बनता है. शास्त्रों में कार्तिक मास को श्रेष्ठ मास माना गया है, स्कंद पुराण
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भाद्रपद माह की अमावस्या पिठोरी अमावस्या कहा जाता है. इस वर्ष 23 अगस्त, 2025 को शनिवार के दिन मनाई जाएगी. पिठोरी अमावस्या के दिन स्नान-दान का महत्व होता है. इस दिन पवित्र नदियों ओर धर्म स्थलों के दर्शन किए जाते हैं. अमावस्या तिथि के दौरान
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भारत जैसे विशाल भूभाग पर संस्कृतियों का अनोखा संगम देखने को मिलता है. इस संगम में अनेकों व्रत व त्यौहार, भिन्न भिन्न विचारधारें आकर मिलती हैं. इन सभी का रंग किसी न किसी रुप में सभी को प्रभावित भी करता है. इसी में आता है एक पर्व कौमुदी
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देव प्रबोधिनी एकादशी, सभी एकादशियों में से ये एकादशी एक अत्यंत ही शुभ और अमोघ फलदायी एकादशी होती है. देव प्रबोधिनी एकादशी को देव उठनी एकादशी, देवुत्थान एकादशी इत्यादि नामों से जानी जाती है. वैष्णव संप्रदाय में एकदशी तिथि को बहुत ही शुभदायक
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भीष्म पंचक का समय कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है और कर्तिक पूर्णिमा तक चलता है. पूरे पांच दिन चलने वाले इस पंचक कार्य में स्नान और दान का बहुत ही शुभ महत्व होता है. धार्मिक मान्यता अनुसार भीष्म पंचक के समय व्रत करने भी
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कुबेर देव का पूजन करना जीवन में शुभता और आर्थिक समृद्धि को प्रदान करने वाला होता है. कुबेर पूजा को विशेष रुप से दिपावली के समय पर किया जाता है. कुबेर जी को धनाध्यक्ष और अपार धन दौलत का स्वामी माना गया है. यह धन के देवता है और यक्षों के
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कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन विश्वकर्मा पुजन होता है. इस उत्सव पर निर्माण और सृजन के देवता विश्वकर्मा का पूजन होता है. मान्यता अनुसार विश्वकर्मा पूजन के दिन सभी प्रकार की मशीनों, शस्त्रों इत्यादि मशीनों की भी पूजा की जाती है.
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अन्नकूट पर्व अपने नाम के अर्थ को सिद्ध करता है. इस दिन अन्न का पूजन होता है और भगवान को ढेर सारे पकवानों का भोग लगाया जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन अन्नकूट का त्यौहार मनाया जाता है. यह पर्व एक सांस्कृतिक धरोहर भी है. यह
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कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को त्रिपुरोत्सव का पर्व मनाया जाता है. प्रदोषव्यापिनी इस पर्व को विधि विधान से मनाने का कार्य प्राचीन समय से ही चला रहा है. पूर्णिमा के दिन पड़ने वाले इस पर्व को सभी लोग बहुत श्राद्ध और विश्वास के साथ
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आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को आश्विन पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. संपूर्ण वर्ष में आने वाली सभी पूर्णिमा तिथियों की भांति इस पूर्णिमा का भी अपना एक अलग प्रभाव होता है. आश्विन पूर्णिमा को संपूर्ण भारत वर्ष में अनेक नामों