दक्षिणायन का आरंभ योग साधना के लिए विशेष समय

हिंदू पंचांग अनुसार उत्तरायण एवं दक्षिणायन का विशेष महत्व रहा है. दक्षिणायन वह समय है जब सूर्य ग्रह उत्तरी गोलार्ध से पृथ्वी के आकाश में दक्षिण गोलार्ध की ओर गति करना शुरू करता है. किसी भी प्रकार की योग साधना करने वाले व्यक्ति के जीवन में दक्षिणायन का विशेष महत्व है. दक्षिणायन समय को देवों की रात्रि का समय माना जाता है ओर इस समय पर साधना एवं जप के कार्यों अत्यंत ही उत्तम माना जाता है. 

सायन और निरयण पद्धितियों के अनुसार इस स्थिति में दिन का कुछ अंतर देखने को जहां सायन अनुसार 21 जून या 22 जून का समय सूर्य की गति में बदलाव का समय होता है. इस समय को सौर वर्ष अनुसार दक्षिणायन का समय माना जाता है. वहीं निरयण अनुसार यह समय सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश से आरंभ होता है जो 16 जुलाई के आस-पास की स्थिति का होता है जिसे निरयण दक्षिणायन के नाम से भी जाना जाता है. 

दक्षिणायन के इस चरण में, ग्रह के साथ जीव एवं जगत का संबंध उत्तरी भाग की तुलना में बहुत अलग होता है. विशेष रूप से हममें से जो उत्तरी गोलार्ध में रह रहे हैं, उनके लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सूर्य अब दक्षिण की ओर बढ़ रहा है और ग्रह वाम दिशा में घूम रहा होता है. ये एक ऎसा समय होता है जब कुछ महत्वपूर्ण चीजें साथ साथ जीवन एवं प्रकृति पर अपना गहरा असर डालती हैं. 

दक्षिणायन भगवान शिव का दक्षिण योग साधना का समय 

मानव शरीर पर ये क्रिया विज्ञान के आधार पर भी एक निश्चित प्रभाव उत्पन्न करती हैं. इस पहलू को ध्यान में रखते हुए हिंदू धर्म द्वारा की जाने वाली सभी प्रथाओं को संरचित किया गया है. मान्यताओं के अनुसार वर्ष के इस समय के दौरान भगवान शिव दक्षिण की ओर मुड़े और दक्षिणामूर्ति बने. उन्होंने योग विज्ञान के मूल सिद्धांतों को अपने पहले सात शिष्यों तक पहुँचाया जिन्हें सप्तर्षि के रूप में मनाया जाता है. यह अचानक नहीं था कि उसने दक्षिण की ओर मुड़ने का फैसला किया. वह दक्षिण की ओर मुड़ गया क्योंकि सूर्य दक्षिण की ओर मुड़ गया था. सूर्य का दक्षिणी भाग महत्वपूर्ण हो गया क्योंकि यह शिक्षण का पहला चरण भी कहा जाता है. यह साधना पद बन गया जहां उन्होंने सप्तर्षियों को सिखाया कि उन्हें क्या करना चाहिए. उत्तरी भाग या उत्तरायण को समाधि पद या कैवल्य पद के रूप में जाना जाता है. यह बोध का समय होता है. इस दौरान विभिन्न प्रकार के विवाह एवं मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं और व्रत, यज्ञ, पूजा और अन्य धार्मिक कार्य रोगों और दुखों को दूर करते हैं.

दक्षिणायन संबंधी पौराणिक विचार 

दक्षिणायन के विषय में पौराणिक एवं धार्मिक विचारों के अनुसार इस समय को एक ऎसी लम्बी अवधि के रुप में दर्शाया गया है जिसमें व्यक्ति की आंतरिक मनोभावनाओं का उद्गार अधिक दिखाई देता है. ये समय प्रकृति के साथ अंधकार की स्थिति के संतुलन का विशेष समय होता है. अंधकार हमारे भीतर के प्रकाश द्वारा ही दूर हो सकता है, इसलिए दक्षिणायन को तपस्या हेतु अत्यंत शुभकारी समय माना गया है.. इस समय के दौरान आत्मबल में वृद्धि के प्रयास करने की ओर संकेत मिलते हैं. यह वो समय होता है जब चेतना को उस स्तर पर जागृत करने की चेष्ठा की जाती है कि जब उत्तरायण का आरंभ हो तब आत्म सुख एवं दर्शन भक्ति के चरम लक्ष्य को प्राप्त कर लेने में व्यक्ति सफलता को प्राप्त कर पाए. इसलिए इस समय पर आत्म नियंत्रण की स्थिति ही अधिक महत्वपूर्ण होती है विवाह इत्यादि कार्यों को इस समय पर रोक दिया जाता है जो दर्शाता है की इस अवधि के समय पर यदि योग साधना को बढ़ाया जाए तो आने वाले समय में एक श्रेष्ठ समय का व्यक्ति का निर्माण संभव हो पाए. 

कुछ महत्वपूर्ण बातें जो दक्षिणायन पर कही जाती हैं जो उसके ऊपरी पक्ष को दर्शाती है किंतु उसके आंतरिक स्वरुप को समझने हेतु इन चीजों से परे हटकर देखने की आवश्यकता होती है. 

वैदिक पंचांग अनुसार दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि के रुप में दर्शाया जाता है. 

दक्षिणायन को पितरों का समय माना जाता है. 

दक्षिणायन को राक्षसों का दिन भी कहा जाता है. 

दक्षिणायन समय को अंधकार का समय माना गया है. 

वासनाओं की जागृति का समय भी कहा जाता है. 

दक्षिणायन समय व्रत, उपवास, संयम, आत्म अवलोकन का समय होता है. 

दक्षिणायन का समय भक्ति और तपस्या हेतु उत्तम माना गया है. 

उत्तरायण और दक्षिणायन में क्या अंतर है?

वर्ष में दो अयन या संक्रांति होती है या हम कह सकते हैं कि सूर्य वर्ष में दो बार अपनी स्थिति बदलता है. इन परिवर्तनों को उत्तरायण यानि ग्रीष्म संक्रांति और दक्षिणायन यानि शीत संक्रांति के नाम से जाना जाता है. हिंदू पंचांग गणना में उत्तरायण की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन से होती है जिसे सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है. इस अवधि में सूर्य मकर राशि से कर्क राशि अर्थात दक्षिण से उत्तर की ओर यात्रा करता है. उत्तरायण को मकर संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है और भारत में इसे विभिन्न नामों से मनाया जाता है. उत्तरायण का समय पर्व के रुप में संपूर्ण भारत वर्ष में विभिन्न रुपों में मनाया जाता है. यह मूल रूप से दक्षिण से उत्तर की ओर सूर्य की गति है. भारत में मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को मनाई जाती है जो सौर कैलेंडर का एक निश्चित दिन होता है. यह वह दिन है जब सूर्य मकर रेखा से दूर उत्तरी गोलार्ध की ओर अपनी गति शुरू करता है. इसे उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है.  

दक्षिणायन अर्थ, जैसा कि नाम से पता चलता है कि दक्षिणायन उत्तरायण के ठीक विपरीत है. यह वह अवधि है जब सूर्य कर्क राशि से मकर राशि अर्थात उत्तर से दक्षिण की ओर वापस यात्रा करता है. इस समय पर साधना, तपस्या, व्रत, पूजा पाठ से जुड़े कार्य किए जाते हैं. दक्षिणायन काल में वर्षा ऋतु, पतझड़ और शीत ऋतु आती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दक्षिणायन काल देवों की रात है. रातें लंबी और दिन छोटे होते हैं. यहां सायन एवं निरयण का विचार भी होता है जहां वैदिक निरयण को अपनाता है और पाश्चात्य ज्योतिष सायन को अपनाता है.