भावों का बाहरी और आंतरिक महत्व | External and internal significance of Bhavas

प्रश्न कुण्डली में हर भाव के दो महव होते हैं जिनका बाहरी और आंतरिक रूप से अलग-अलग महत्व होता है. भाव के यह दोनों रूप उसके महत्व को समझाने के लिए काफी व्यापक रूप से काम में आते हैं. वराहमिहीर जी ने अपने ग्रंथ बृहतजातक में भावों के महत्व को विस्तार पूर्वक बताया है.

बृहतजातक अनुसार भाव के आंतरिक और बाहरी कारक तत्व | According to Brihat Jataka external and internal significations

भाव बाहरी कारक आंतरिक कारक
1 तनु कला
2 कुटुंब स्वा
3 सहोदर विक्रम
4 बुधन गृह
5 पुत्र प्रतिभा
6 अरी कस्था
7 पत्नी चितोता
8 मारन रन्ध्र
9 शुभ गुरू
10 असपद मन
11 आय भव
12 रिफ व्यय

ऊपर दिए गए बाहरी और आंतरिक कारकों का उपयोग अत्यंत सावधानी से किया जाना चाहिए इन्हें बिना जाने लागू नहीं किया जाना चाहिए. बाहरी कारक' वास्तव में ठोस घटनाओं को संदर्भित करता है, जबकि 'आंतरिक' हमेशा उसके सार को दर्शाता है. जैसे पांचवें घर का बाहरी कारक रूप पुत्र रूप से एक भौतिक रूप में देखा जा सकता है. परंतु इसका आंतरिक महत्व एक अमूर्त गुणवत्ता है, जो प्रतिभा को दर्शाती है जिससे जातक की बौद्धिकता का पता चलता है.

भाव कैसे बली होता है | How a Bhava become Stronger

यदि भाव किसी भी तरह से अपने स्वामी के संबंध बनाता है तो इस स्थिति में उस भाव की आंतरिक गुणवता का संकेत मिलता है. भाव और भाव के स्वामी के मध्य यदि कोई संबंध नहीं है, तो यह स्थिति उस भाव के बाहरी पहलुओं को इंगित करती है.

प्रश्न के समय लग्न में जो राशि उदय होती है वह प्रश्न कर्ता के बारे दर्शाती है साथ ही और जनम कुंडली के रूप अनुरूप ही इसके अन्य भाव प्रश्नकर्ता के भाई बंधुओं, आर्थिक स्थिति आदि के लिए देखा जाता है. इसी तरह, शुभ या अशुभ के साथ संबंध होने पर भाव के मजबूत या कमजोर पक्ष का संकेत करता है.

साधारणत: प्रश्न कुण्डली में भाव का संबंध बृहस्पति, बुध, शुक्र या अपने स्वामी के साथ जुड़ा हुआ होने पर सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं. इसके अतिरिक्त किसी भी शुभ भाव का स्वामी अपने से दूसरे, सातवें, बारहवें, चौथे या दसवें भाव से संब्म्ध बनाता है तो यह स्थिति भाव को बल प्रदान करने में सहायक होती है. ज्योतिष का एक बुनियादी नियम है कि जब भाव शुभ कर्तरी में होता है तथा केन्द स्थान में आता है तो यह ओर अधिक शक्ति पा लेता है और बली हो जाता है.

भाव निर्बल कैसे होता है | How a Bhava become weak

यदि प्रश्न कुण्डली का कोई भाव 6, 8 या 12वें भाव से संब्म्ध बनाता है या इनके स्वामियों के प्रभाव में आता हो तो यह स्थिति कुण्डली के लिए शुभ नहीं होती है. इसके साथ ही यदि वह भाव के स्वामी का शत्रु हो तो भी यह स्थिति भाव को पिडी़त करती है और उसके कमजोर बनाती तथा भाव के शुभ गुणों में कमी लाती है.

कमजोर भाव की स्थिति का विचार करने के लिए इस बात को समझने की आवश्यकता है कि भाव पाप कर्तरी में तो नहीं है या उनके साथ बैठा न हो, अशुभ ग्रहों के प्रभाव से प्रभावित हो और किसी भी तरह से शुभता के साथ संबद्ध नहीं होने पर भाव कमजोर हो जाता है. 4, 8 वें, 12वें या 5वें या 9 वें घर में पाप ग्रहों की स्थिति भाव के कारक तत्वों को प्रभावित करती है, भाव तब भी निर्बल हो जाता है जब उसका कारक या भाव का स्वामी पाप ग्रहों या उनसे संबंधित शत्रु ग्रहों से दृष्ट हो और उसका किसी भी तरह से शुभता के साथ संबद्ध नहीं हो तो भी भाव कमजोर हो जाता है.

नवांश का प्रभाव | Effect of Navamsa

एक शुभ भाव का स्वामी यदि वर्गोत्तम हो, वहीं स्थित हो, अनुकूल या प्रतिकूल हो तो नवांश पूरी तरह से, मध्यम या अस्पष्टता से क्रमश: शुभ परिणाम प्रदान करने में सक्षम होता है.इसी प्रकार से खराब भाव का स्वामी खराब फल देने में सक्ष्म होता है ओर यह अनुकूल या वर्गोत्तम नवांश में हो तो पूरी तरह से हानिकर परिणाम दे सकता है.

उदाहरण के तौर पर यदि कर्क लग्न की प्रश्न कुण्डली मंगल ग्रह नवें भाव में स्थित हो तो नवांश में अपनी स्थिति के अनुरूप अच्छे परिणाम देने में सक्षम होता है. यहाँ, कर्क लग्न के लिए मंगल ग्रह 5 वें और 10वें भाव का स्वामी होने के नाते एक शुभ ग्रह होता है.

यदि भाव का स्वामी और कारक मजबूत स्थिति में हों लेकिन खराब नवांश में हों तो भाव का प्रभाव देखा जा सकता है ऎसी स्थिति में व्यक्ति अधिक सुख भोगने में कमी पाता है वहीं दूसरी और स्वामी और कारक कमजोर हैं लेकिन नवांश में अनुकूल स्थिति में हों व्यक्ति को सुख मिल ही जाता है चाहे वह कम ही क्यों न हो पर कब्जा इसके विपरीत, यदि तब प्रभाव यह हो सकता है देशी लेकिन थोड़ा ने अनुभव किया होगा.

ग्रहों के प्राकृतिक कारक और कारकतत्व | Natural Karakas and Karkattwa of Planets

बहुत सारी चीजों के कारक तत्वों को प्रश्न कुण्डली के ग्रह भी रखते हैं जैसा कि जन्म कुण्डली में भी बताया जाता है. यदि वह मजबूत हों तो वह संबंधित संकेतों को बढ़ावा देने और घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराया देखे जाते हैं. हालांकि, शनि के संबंध में, यदि यह मजबूत होगा तो यह स्थिति की मजबूती का संकेत देती है. और यदि शनि ग्रह कमजोर है, तो दुख और रोगों अधिक में महसूस किया जाएगा.

विभिन्न शास्त्रीय ग्रहों द्वारा निर्धारित ग्रहों के मूल कारकतत्व निम्नलिखित है:

  • पिता और आध्यात्मिक प्रभाव का कारकतत्व सूर्य को माना गया है.
  • चंद्रमा मां और मन का कारक है.
  • भाइयों, भू-संपत्ति, और साहस का कारक मंगल ग्रह को माना है.
  • वाणी और बुद्धि का कारकतत्व बुध को.
  • ज्ञान, संतान. शारीरिक स्वास्थ्य का करक है बृहस्पति को माना गया है. यदि प्रश्नकर्ता महिला है तो यह पति का कारक होगा.
  • शुक्र वाहनों, भौतिक सुख का कारक होगा और प्रश्नकर्ता पुरुष है तो पत्नी का कारक होगा है.
  • शनि मृत्यु, रोग, दु: ख, सेवकों और अनुयायियों का कारक होगा.

शुभ ग्रह यदि मजबूत स्थिति में है तो बह अपने फलों को ओर अच्छा करेगा. वहीं अगर पाप ग्रह कमजोर हो तो वह बुरे फल देने में कोई कोताही नहीं बरतेगा.

उदाहरण के लिए प्रश्न कुण्डली के पांचवें भाव में कमजोर पाप ग्रह स्थित हो तो यह स्थिति संतान प्राप्ति और जातक की प्रतिभा के लिए खराब हो सकती है. यदि प्रश्न कुण्डली में शुभ ग्रह मजबूत होकर छठे, आठवें और बारहवें भाव में स्थित हो तो यह संतान प्राप्ति और प्रतिभा को बढा़ने में सहायक होते हैं.

इष्ट और अनिष्ट भावों का फल | Result of Planets in Ishta or Aanishta Bhavas

ग्रह अपनी स्थिति के अनुरूप इष्ट और अनिष्ट भावों में स्थित होने पर विभिन्न प्रभाव देते हैं. इनके अनुसार ही व्यवसाय का निर्शारन भी देखा जाता है उदाहरण के लिए इष्ट भाव में सूर्य की स्थिति से संबंधित सभी चीजों को भगवान शिव की कृपा, शासकों से लाभ, गेहूं का अधिग्रहण, सोना इत्यादि से लाभ और यदि सूर्य अनिष्ट भाव में हो तो तांबे के बर्तन, भगवान का क्रोध, शासकों से कष्ट इत्यादि का संकेत मिलता है.

भाव का फल | How the result of the house is felt

ज्योतिष के कुछ आचार्यों के अनुसार भावेश की स्थिति के अनुरूप ही भाव से भावेश कहां स्थित है इस बात को भी और भाव के प्राकृतिक कारक तत्व नष्ट हो जाते हैं. यदि यह लग्न से एक प्रतिकूल घर में स्थित है तो जातक को पूर्ण प्रभाव नहीं मिल पाते हैं.

प्रश्न कुण्डली में यदि शुभ ग्रह तिसरे, छठे, आठवें ओर बारहवें भाव में हो तो वह प्रतिकूल हो जाते हैं, वहीं दूसरी ओर तीसरे, छठे और ग्यारहवें भावों में बैठे खराब होने पर अनुकूल होते हैं. कुण्डली के लग्न, पांचवें और नवें भाव में ग्रह शुभ ग्रह अपनी शुभता को बढते हैं और अशुभ अपनी अशुभता में वृद्धि करते हैं.

शुभ ग्रह जिस भाव को अधिकृत करते हें उसकी शुभता में वृद्धि करते हैं दूसरी ओर पाप ग्रह घर को खराब करते हैं. यहां तक ​​कि, छठे भाव में स्थित शुभ ग्रह शत्रुओं से मुक्ति दिलाने में सहायक होते हैं और प्रतिद्वंदियों को नष्ट कर देगा वे घर के संकेतों में वृद्धि ककरेगा जैसे कर्ज और दुश्मनों इत्यादि जबकि पाप ग्रह यहां हानिकारक प्रभाव देगा.