दो ग्रहों का एक साथ युति का प्रभाव कुण्डली के अनेक प्रभावों को दिखाने में सहायक होता है. इसके प्रभाव से ग्रहों की युति का संबंध होने पर ग्रह मिलजुल कर फल देने में सक्षम होते हैं. किसी भी ग्रह की यह स्थिति उसे आपस में मिलकर प्रभावशाली फल देने वाली बनती है. यहां एक बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि जब दो ग्रह एक साथ युति संबंध में आ रहे हों तो वह चाहे मित्र हों या शत्रु उनके समान कारक अवश्य दिखाई देंगे.
इस प्रकार जैसे मंगल और शनि ग्रह की युति को देखें तो यह दोनों एक दूसरे के शत्रु माने जाएंगे तथा दोनों ही ही क्रूर ग्रह होते हैं इसलिए यहां पर दोनों के कारक तत्वों की समानता यदि देखी जाए तो दोनों ग्रह क्रूरता को दर्शाते हैं तथा जातक के स्वभाव में भी कुछ न कुछ गर्मी अवश्य दर्शाएंगे.
ग्रहों की युति का महत्व | Significance Of Conjunction of Planets
ग्रह युति का संबंध भाव में ग्रहों की युति से है तथा इसके अतिरिक्त अंशात्मक युति को भी यहां ग्रहों के एक दूसरे के साथ संबंधों के लिए देखा जा सकता है क्योंकि एक दूसरे से एक भाव आगे पिछे होने पर भी जातक को इन ग्रहों की युति प्राप्त हो जाती है जो प्रभावशाली फल देती है.
अपनी दशा में जब संबंधी और सहधर्मी ग्रहों की अन्तर्दशा आती है. तो जातक को अनेक प्रकार के फलों को भोगना पड़ता है. जिसके फलस्वरूप सभी ग्रहों के अपने कारक तत्वों का समान होना उनकी अंशात्मक युति से भी प्रभावित होता है.
ग्रहों की प्रभावशालिता के कारण जातक को अनेक प्रकार के फल झेलने पड़ सकते हैं. उसे कई तरह की परेशानियां उठानी पड़ सकती हैं. वह असमान रूप से ग्रहों की युति का प्रभाव झेलता है और उसके इस रूप में दोनों ही तरह के संपर्कों का आगमन होना स्वाभाविक होता है.
जब कोई ग्रह की अपनी दशा में सहधर्मि ग्रहों की दशा या अन्तर्दशा आती है तो ग्रह अपना संपूर्ण फल देने में सक्षम होते हैं. इस प्रकार जातक को इनके फलों की प्राप्ति होती है और वह अपने जीवन में आने वाले अनेक प्रभावों से प्रभावित होता है. किसी भी प्रकार से होने वाले उतार-चढाव उसके लिए काफी प्रभावशाली हो सकते हैं परंतु इस के साथ साथ इस बात को भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है कि जातक को कौन से भावों की दशा मिल रही है इस का भी असर ग्रहों पर दिखाई देता है.
ग्रह युति का प्रभाव | Effects Of Conjunction of Planets
इसके साथ साथ 1, 2, 5, 7, 9, 11 में अगर ग्रह बैठे हैं तो व्यक्ति में निर्णय लेने की अच्छी क्षमता होती है. व्यक्ति अपनी बात कहने की क्षमता रखता है, ऊर्जावान और दृढ़ निश्चय ही होता है. अपनी भावनाओं को बहुत ज्यादा अभिव्यक्ति करने वाला होता है. उसे हर छोटी बात प्रभावित कर सकती है. वह अपने मनोभावों को बढा़-चढा़ कर कहने वाला होता है. उसे किसी भी तरह से वह कहने के लिए स्वतंत्रता की चाह रखता है.
कुण्डली में यदि कोई ग्रह 2, 4, 6, 8, 10 भावों में हो तो व्यक्ति सहनशील होता है, उसका व्यवहार रक्षात्मक होता है और वह ज्यादा प्रेरित होता है. इस स्थानों पर ग्रहों की युति होने से जातक को स्वयं के लिए रक्षात्मक होना बढ़ जाता है.
कुण्डली में 1, 5 और 9वें भाव में ग्रहों की बनने वाली युतियां जातक को स्वतंत्रपूर्ण और साहस से युक्त बनाती हैं. जातक क्रियाशील और इच्छावान बनता है. व्यक्ति में स्फूर्ति भी बनी रहती है. इसी के साथ जातक में रोग-प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है. वह रोगों से लड़ने की क्षमता को मजबूत स्थिति में पाता है.
कुण्डली में 2, 6, 10  भावों में ग्रहों के होने पर जातक को स्थिरता प्राप्त होती है. धन संपन्नता बनी रहती है जातक को सम्मान की प्राप्ति है. स्वास्थ्य अच्छा रहता है, जातक के जीवन में सफलता बनी रहती है और वह आगे बढ़ता जाता है. व्यक्ति व्यवहारिक होने लगता है तथा अपने में ही सिमटे रहने की चाह रखता है.
                
                    
                                            
                                            
                                            
                                            