 ज्योतिष  में सामान्यत: विवाह सुख और संतान सुख का विचार सप्तम एवं पंचम भाव से  किया जाता है, परंतु इसके साथ ही साथ विवाह एवं संतान के विचार के लिए उपपद  को एक महत्वपूर्ण कारक माना जाता है. उपपद से दूसरे एवं सातवें घर एवं  उनके स्वामियों का विवाह के संदर्भ में विचार किया जाता है. उपपद के अर्थ  को सपष्ट करते हुए कहा गया है कि लग्न से द्वादश भाव का पद उपपद होता है.  एक अन्य परिभाषा में कहा गया है कि लग्न से द्वितीय भाव का पद उपपद होता  है. कुछ के अनुसार समलग्न में द्वितीय भाव और विषम लग्न में बारहवें भाव क  अजो पद हो उसे उप पद कहा जाता है.
ज्योतिष  में सामान्यत: विवाह सुख और संतान सुख का विचार सप्तम एवं पंचम भाव से  किया जाता है, परंतु इसके साथ ही साथ विवाह एवं संतान के विचार के लिए उपपद  को एक महत्वपूर्ण कारक माना जाता है. उपपद से दूसरे एवं सातवें घर एवं  उनके स्वामियों का विवाह के संदर्भ में विचार किया जाता है. उपपद के अर्थ  को सपष्ट करते हुए कहा गया है कि लग्न से द्वादश भाव का पद उपपद होता है.  एक अन्य परिभाषा में कहा गया है कि लग्न से द्वितीय भाव का पद उपपद होता  है. कुछ के अनुसार समलग्न में द्वितीय भाव और विषम लग्न में बारहवें भाव क  अजो पद हो उसे उप पद कहा जाता है.
ज्योतिष रत्नाकर में कहा गया है कि उपपद के दूसरे स्थान सप्तम स्थान से दूसरी राशि तथा उपपद से सातवें भाव का स्वामी जिस राशि में हो उससे दूसरे राशि, उपपद से सप्तम की नवांश राशि से द्वितीय राशि और उपपद से सप्तम नवांश का स्वामी जिस राशि में हो उससे द्वितीय राशि के द्वारा स्त्री का विचार किया जाता है. यदि कुण्डली में उपपद स्थान पाप ग्रह की राशि में हो अथवा पाप ग्रहों से युक्त हो तो जातक सन्यास की ओर जा सकता है.
कुण्डली के दूसरे भाव घर में कोई ग्रह शुभ होकर स्थित हो व उसकी प्रधानता हो अथवा गुरु और चन्द्रमा कारकांश से सातवें घर में स्थित हो तो सुन्दर जीवनसाथी प्राप्त होता है. यदि द्वितीय भाव में कोई ग्रह अशुभ होकर स्थित हो तो एक से अधिक विवाह का संकेत मिलता है. कारकांश से सातवें भाव में बुध होने पर जीवनसाथी शिक्षित होता है. यदि चन्द्रमा कारकांश से सप्तम में हो तो विवाह विदेश में होनी की सशक्त संभावना बनती है.
द्वितीय भाव में अशुभ राशि स्थित होने पर अथवा इस पर किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि होने पर जीवनसाथी के जीवन में संकट की आशंका बनी रहती है. शनि का कारकांश से सातवें घर में होना यह बताता है कि जीवनसाथी की उम्र अधिक होगी. राहु कारकांश से सातवें घर में होना दर्शाता है कि व्यक्ति का सम्पर्क उनसे हो सकता है जो जीवनसाथी को खो चुके हों और पुनर्विवाह की इच्छा रखते हों.
जैमिनी ज्योतिष में बताया गया है कि सूर्य अगर दूसरे घर में हो अथवा इस घर में सिंह राशि हो तो जीवनसाथी दीर्घायु होता है. इसी प्रकार दूसरे घर में आत्मकारक ग्रह हो या इस घर में बैठा ग्रह स्वराशि में हो तब भी जीवनसाथी की आयु लम्बी होती है. उपपद से दूसरे घर में बैठा ग्रह उच्च राशि में हो अथवा इस घर में मिथुन राशि हो तो एक से अधिक विवाह की संभावना रहती है. राहु एवं शनि की युति दूसरे घर में होने पर वैवाहिक जीवन में दूरियां एवं मतभेद होने की संभावना रहती है.
यदि पुरूष की कुण्डली में शुक्र और केतु उपपद से दूसरे घर में स्थित हो अथवा उनके बीच दृष्टि सम्बन्ध बन रहा हो तो उनके जीवन साथी को गर्भाशय से संबन्धित रोग होने की संभावना रहती है. बुध और केतु उपपद से दूसरे घर में होने पर अथवा उनके बीच दृष्टि सम्बन्ध होने पर जीवनसाथी को हड्डियों से सम्बन्धित रोग की आशंका बनती है. सूर्य, शनि और राहु उपपद से दूसरे घर में होने पर अथवा इनके बीच दृष्टि सम्बन्ध बनने पर जीवनसाथी को स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का सामना करना होता है.
उपपद से दूसरे घर में शनि और मंगल के बीच दृष्टि सम्बन्ध होने पर तथा दूसरे घर में मिथुन, मेष, कन्या या वृश्चिक राशि होने पर जीवनसाथी को कफ से सम्बन्धित गंभीर रोग होने की संभावना होती है. द्वितीय भाव में मंगल अथवा बुध की राशि हो और उस पर गुरू एवं शनि की दृष्टि हो तो जीवनसाथी को कान सम्बन्धी रोग सता सकते हैं. इसी प्रकार द्वितीय भाव में मंगल अथवा बुध की राशि हो तथा उस पर गुरू एवं राहु की दृष्टि हो तो जीवनसाथी को दांतों में तकलीफ हो सकती है. उपपद से दूसरे घर में कन्या या तुला राशि पर शनि और राहु की दृष्टि होने से जीवनसाथी को ड्रॉप्सी नामक रोग होने की आशंका रहती है. यह भी कहा गया है कि दूसरे घर में उपपद लग्न हो अथवा आत्मकारक तो वैवाहिक जीवन में मुश्किल हालातों का सामना करना होता है.
उपपद से संतान विचार | Upa pad and its association with Children
उपपद से सप्तम भाव, सप्तमभाव का नवांश और इनके स्वामीयों द्वारा संतान का विचार भी किया जाता है. यदि कुण्डली में उपपद सप्तम भाव या सप्तम भाव के नवांश और इन दोनों स्वामीयों से नवम स्थान पर बुध, शनि, शुक्र हों तो जातक को संतान सुख में बाधा या निसंतान होने का दुख झेलना पड़ सकता है. परंतु इसके विपरित यदि उक्त स्थानों पर से नवम में सूर्य, राहु और गुरू हों तो जातक की कई संताने होती हैं.
 
                 
                     
                                             
                                             
                                             
                                            