आज इस लेख के माध्यम से हम मुहूर्त से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों पर विचार करना चाहेगें कि कौन सा मुहूर्त कब अच्छा होता है और इसमें किन - किन बातों का ध्यान रखना चाहिए.
गोधूलि लग्न | Godhuli Lagna
गोधूलि लग्न का अर्थ है कि सूर्योदय के समय जो राशि लग्न में होती है उससे सातवीं राशि जो भी हो वह गोधूलि लग्न कहलाती है. गोधूलि लग्न को सभी कामों के लिए शुभ माना जाता है. इस लग्न में कई सारे दोषो का विचार नही किया जाता है. इसलिए इसे शुभ माना जाता है. जैसे इस लग्न में नक्षत्र, तिथि, करण, वार, नवांश, मुहूर्त, योग, आठवें भाव में बैठे ग्रह, जामित्र दोष आदि का विचार नहीं किया जाता है. यह लग्न सूर्य की स्थिति से सातवाँ होता है. इस लग्न में चंद्रमा दूसरे, तीसरे, ग्यारहवें, भाव में स्थित होने से शुभ माना जाता है.
इस गोधूलि मुहूर्त के लग्न में चंद्रमा या मंगल नहीं होना चाहिए, चंद्रमा का छठे और मंगल का सातवें भाव में होना भी त्यागना चाहिए. इस लग्न से आठवाँ भाव खाली होना चाहिए. इस लग्न की प्रशंसा कई पुस्तकों में की गई है.
गोधूलि मुहूर्त के दोष | Defects of Godhuli Muhrat
इस मुहूर्त में कई दोष भी पाए जाते हैं, जो निम्न प्रकार से हैं और इनका त्यागना ही श्रेयस्कर माना गया है.
- गोधूलि मुहूर्त में रविवार का दिन नहीं लेना चाहिए, इसका त्याग किया गया है.
- कुलिक मुहूर्त काल, क्रान्ति साम्य, गोधूलि मुहूर्त के लग्न, छठे और आठवें भाव में चंद्रमा का त्याग करना चाहिए.
- गोधूलि मुहूर्त के समय एक पापी ग्रह का उसी लग्न नक्षत्र में होना शुभ नहीं है.
- गोधूलि लग्न से चंद्रमा यदि पहले, छठे या आठवें भाव में है तब यह कन्या के लिए अशुभ होता है. यदि इस लग्न के पहले, सातवें या आठवें भाव में मंगल स्थित है तब यह वर के लिए अशुभ होता है.
- वीरवार के दिन सूर्यास्त से पहले के गोधूलि मुहूर्त को अशुभ माना जाता है, किन्तु सूर्यास्त के बाद का समय ले सकते हैं.
- शनिवार के दिन सूर्यास्त से पहले का गोधूलि मुहूर्त शुभ होता है लेकिन बाद का नहीं.
मुहूर्त में त्याज्य समय | Inauspisious Time in Muhurat
मुहूर्त में कुछ समय ऎसा भी होता है जिसका सर्वदा त्याग किया जाता है. इन्हें नकारात्मक समय माना जाता है जिन्हें शुभ कार्यो के लिए छोड़ देना चाहिए. यह समय किसी भी समय अन्तराल जैसे नक्षत्र, तिथि या वार में एक समय विशेष में आता है. नक्षत्र आरंभ होने के बाद तिथि या वार का नकारात्मक समय अन्तराल उस नक्षत्र, तिथि या वार के आरंभ होने के कुछ समय बाद ही आता है. यह समय नकारात्मक समय से 1 घंटा 36 मिनट का होता है.
नक्षत्र त्याज्य काल | Nakshatra Inauspicious Period
नक्षत्र का अशुभ और त्याज्य काल कृतिका, पुनर्वसु, मघा और रेवती नक्षत्र के आरंभ होने के 30 घटी समाप्त होने पर, रोहिणी की 40 घटी समाप्त होने पर, आश्लेषा के 32 घटी समाप्त होने के बाद, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, उत्तराषाढ़ा और पुष्य के आरंभ होने के 20 घटी के बाद, आर्द्रा और हस्त के आरंभ होने के 21 घटी के बाद, अश्विनी के 50 घटी के बाद, उत्तराफाल्गुनी व शतभिषा के आरंभ होने के 18 घटी के बाद, उत्तराभाद्रपद, पूर्वाषाढ़ा और भरणी के आरंभ होने के 24 घटी बाद, विशाखा, स्वाती, मृगशिरा और ज्येष्ठा के आरंभ होने के 14 घटी बाद, पूर्वाभाद्रपद के आरंभ होने के 16 घटी बाद, अनुराधा, धनिष्ठा और श्रवण के आरंभ होने के 10 घटी बाद, मूल नक्षत्र के आरंभ होने के 56 घटी बाद शुरु होता है. यह अशुभ काल 4 घटी का होता है अर्थात 1 घंटा 36 मिनट.
तिथि में त्याज्य समय | Date Inauspicious Time
नक्षत्रों की ही भांति तिथि में भी कुछ समय का त्याग किया जाता है. तिथियों की विषघटी प्रतिपदा से चतुर्दशी, अमावस्या या पूर्णिमा के लिए क्रमश: 15, 5, 8, 7, 7, 5, 4, 1, 10, 3, 13, 14, 7, 8 आदि घटी के बाद अगली 4 घटियाँ होती हैं.
वार में त्याज्य काल | Day Inauspicious Time
वारों में भी कुछ समय का त्याग किया जाता है. वारो में विषघटी रविवार से आरंभ होकर शनिवार तक क्रमश: 20, 2, 12, 10, 7, 5 व 25 घटी के बाद अगली 4 घटियो का त्याग करना है.
उपरोक्त दोष निरस्त भी हो जाता है. जब चंद्रमा लग्न या त्रिकोण भाव में स्थित हो और लग्नेश अपने भाव, केन्द्र, त्रिकोण, स्ववर्ग या शुभ मित्र ग्रह की दृष्टि में है तब यह दोष निरस्त हो जाता है. चंद्रमा यदि मृगशिरा नक्षत्र में है तब भी यह दोष खतम हो जाता है.
 
                 
                     
                                             
                                             
                                             
                                            
