अष्टक वर्ग भावों और ग्रहों के बल को जानने की एक विधि है. यह एक गणितिय संरचना है जिसमें ग्रहों को अंक प्राप्त होते हैं और उनका बलाबल निकलता है. अष्टकवर्ग का शाब्दिक अर्थ आठ से होता है जिसमें लग्न एवं सात ग्रहों का समावेश होता है. इसके द्वारा गोचर के शुभ तथा अशुभ प्रभावों का आंकलन करने में मदद मिलती है. यह ग्रहों की शक्ति का आंकलन करने की महत्वपूर्ण विधि है. इसके द्वारा फलित करने में काफी हद तक उचित मार्गदर्शन प्राप्त होता है. अष्टक व्रग एक उत्तम ज्ञान है जिसके द्वारा भावों की शक्ति को जाना जा सकता है. इससे जातक की सुख संपन्नता एवं समृद्धि का पता चलता है. इसके द्वारा जातक की कुण्डली के विष्य में सही मार्गदर्शन एवं जानकारी प्राप्त होती है.
ज्योतिष शास्त्र की विभिन्न विधाओं में से एक अष्टकवर्ग एक ऎसी विद्या है जो जन्मकुण्डली का आंकलन एवं फलित करने की दृष्टि से उत्तम रहती है. यह एक विलक्ष्ण प्रतिभा है जो कुण्डली के फलित को बताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह इस बात की भी पुष्टि करती है कि इस ज्ञान का आधार हमारे ऋषि मुनियों का अथक प्रयास एवं गहन अध्य्यन है जिसके द्वारा हम ज्योतिष के फलित को इस आधार से भी उचित प्रकार से जानने में संतुष्ट होते हैं. अष्टकवर्ग में कुण्डली के ग्रहों की शक्ति जानने के लिए उदाहरण स्वरूप हम यदि चंद्रमा की स्थिति को समझें तो यह इस प्रकार से अभिव्यक्त होगी
बली एवं मजबूत स्थिति एवं भाव का चंद्रमा जातक को हृदय से काफी दयालु एवं भावनाओं से पूर्ण बनाता है. ऎसा जातक समाज की भलाई के कार्यों को करने की चाह रखने वाला होगा. मन से साफ एवं कोमल होगा. लोगों की भलाई के कार्यों में रूचि लेगा तथा मानवता के लिए शुभ कर्मों को करने वाला होगा. मनसिक शांति और सुख की अनुभूति प्राप्त करने में सफल होगा. किंतु यही चंद्रमा जब पिडित एवं निबल अवस्था में होत है तो जातक को मानसिक परेशानियों एवं संताप का सामना करना पड़ता है. उसकी सोचने समझने की क्षमता प्रभावित होती है.
इसी प्रकार एक अन्य उदाहरण देंखे तो सूर्य की उच्च स्थिति एव्म अनुकूल स्थानों पर उपस्थिति होने से जातक उचाईयों को पाता है. जीवन में उसे आत्मिक मजबूति एवं स्थिरता प्राप्त होती है. उसमें नेतृत्व करने की योग्यता देखी जा सकती है. सफलताओं से घबराता नहीं है. कुण्डली में बली सूर्य के होने से बौद्धिकता प्राप्त होती है क्योंकि बली सूर्य के अभाव में जीवन में उच्चता एवं साहस तथा सफलता पाना अत्यंत कठिन सा होता है. इसलिए कुण्डली में ग्रहों के शुभ अंक होना एवं स्थित का विचार अष्टकवर्ग से करने में काफी हद तक फलित का निर्धारण किया जाता है.
कुण्डली के सही फलादेश के लिए अनुकूल रूप से गोचर का ज्ञान अत्यंत आवश्यक माना गया है. कई अनुसंधान एवं गणितीय पद्धती से इसके विषय में कई प्रकार से अनुमोदन किया गया है. जिसमें अष्टकवर्ग ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका दर्ज करवाई है. यह पद्धति गोचर के ग्रहों के विषय में सुक्ष्मता से विवेचन करने में बहुत सहायक होती है.
 
                 
                     
                                             
                                             
                                             
                                            