प्रश्न कुण्डली | Prashna Kundli (1) क्रियमाण कर्म को दर्शाती है. क्रियमाण कर्म वह हैं जो इस जीवन में किये गए हैं. (2) यह कुण्डली केवल एक विषय से संबंधित होती है. जन्म कुण्डली | Janam Kundali (1) प्रारब्ध को दर्शाती है. (2) कई विषयों के

आपने पिछले अध्याय में पढा़ कि जब केन्द्र में राहु/केतु के अतिरिक्त चार या चार से अधिक ग्रह केन्द्र में स्थित हों तब मण्डूक दशा लगती है. इस दशा का क्रम निर्धारित करने के लिए यह देखा जाता है कि लग्न में कौन-सी राशि आ रही है. लग्न में यदि सम

ऋग्वेद के प्रथम श्लोक में ही रत्नों के बारे में जिक्र किया गया है. इसके अतिरिक्त रत्नों के महत्व के बारे में अग्नि पुराण, देवी भागवद, महाभारत आदि कई पुराणों में लिखा गया है. कुण्डली के दोषों को दूर करने के लिए हर व्यक्ति रत्नों का सहारा

ज्योतिष की इतिहास की पृष्ठभूमि में वराहमिहिर और ब्रह्मागुप्त के बाद भास्कराचार्य के समान प्रभावशाली, सर्वगुणसम्पन्न दूसरा ज्योतिषशास्त्री नहीं हुआ है. इन्होने ज्योतिष की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता से घर में ही प्राप्त की. भास्कराचार्य

| Tritiya Tithi | Tritiya Meaning | What is Tithi in Hindu Calender | How is Tithi Calculated तृतीया तिथि की स्वामिनी गौरी तिथि है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति का माता गौरी की पूजा करना कल्याणकारी रहता है. इस तिथि को जया तिथि के

ज्योतिष शास्त्र में वर्णित 27 नक्षत्रों में से अश्विनी नक्षत्र पहला नक्षत्र है. इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह केतु है. इस नक्षत्र को गण्डमूल नक्षत्रों की श्रेणी में रखा गया है. केतु एक रहस्यमयी ग्रह है. अश्विनी नक्षत्र, सूर्य पुत्र अश्विनी

सोमवार क व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये किया जाता है. सोमवार व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना की जाती है. इस व्रत को स्त्री- पुरुष दोनों कर सकते है. इस व्रत को भी अन्य व्रतों कि तरह पूर्ण विधि-विधान से करना कल्याणकारी

जन्म कुण्डली में दुर्धरा (दुरुधरा) योग का निर्माण चंद्रमा की स्थिति के आधार पर तय होता है. जब कुण्डली में सूर्य के सिवाय, चन्द्र के दोनो और अथवा द्वितीय व द्वादश भाव में ग्रह हों, तो इससे दुरुधरा योग बनता है. यह योग चंद्रमा की स्थिति को

मीन राशि के व्यक्तियों में अनुकम्पा करने की प्रवृ्ति होती है. ये धार्मिक, भगवान से डरने वाले होते है. इसके साथ ही इनमें अन्धविश्वास का भाव भी पाया जाता है. जिन व्यक्तियों की मीन राशि हो, वे संयमी, रुढीवादी, अन्तर्मुखी, ग्रहनशीलत्ता, दूसरों

जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है. * यदि प्रश्न के समय चन्द्रमा अश्विनी

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर राशि के लिए उपयुक्त स्वास्थ्यवर्धक भोजन इस प्रकार है. जैसे:- मेष लग्न | Aries इस लग्न में जन्में जातक तेज जिंदगी जीते है. जिससे शारीरिक शक्ति का अधिक व्यय होता है. यह मस्तिष्क प्रधान राशि है और इसका सिर पर

चतुर्दशी तिथि के स्वामी देव भगवान शिव है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को नियमित रुप से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. यह तिथि रिक्ता तिथियों में से एक है. इसलिए मुहूर्त कार्यो में सामान्यत: इस तिथि का त्याग किया जाता है. मुहुर्त

शनि रत्न नीलम के कई नाम है. इसे इंद्रनील, शौरी रत्न, नीलमणी, महानील, निलोफर, वाचिनाम से जाना जाता है (It is known by different names loke: Indranil, Shauri Ratna, Nilmani, Mahanil, Nilofar, Vachinam). मराठी में इसे नील, और अग्रेंजी में इसे

कार्तिक माह हिन्दू कैलेंडर का 8वां महिना है. शास्त्रों में कहा भी गया है कि कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं है. तुला राशि पर सूर्य का गोचर होने पर कार्तिक माह का आरंभ हो जाता है. कार्तिक का माहात्म्य के बारे में स्कंदपुराण, पद्मपुराण और

लाजवर्त जिसका एक नाम लापिस लाजुली भी है. इस उपरत्न को शनि ग्रह के रत्न नीलम के उपरत्न रुप में धारण किया जाता है. इस उपरत्न की व्याख्या आसमान के सितारों से की जाती है. इस उपरत्न का रंग नीले रंग की विभिन्न आभाओं में पाया जाता है. नीले रंग के

सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ में सूर्य, सौर मण्डल, सूर्य की गति, युग, आयन तथा मुहूर्त का उल्लेख किया गया है. सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ को वेदांग ज्योतिष का प्राचीन ओर प्रमाणिक ग्रन्थ माना जाता है. यह ग्रन्थ प्राकृ्त भाषा में लिखा गया है. इस

विषुवांश | Vishwansha किसी ग्रह की बसन्त सम्पात बिन्दु से, विषुवत रेखा पर पूर्व की ओर कोणीय दूरी, विषुवांश कहलाती है. क्रांति | Kranti किसी ग्रह की विषुवत रेखा से उत्तर या दक्षिण की ओर कोणीय दूरी, उस ग्रह की क्रांति कहलाती है. सायन भोगाँश

यह एक दुर्लभ उपरत्न है. इस उपरत्न का यह नाम अरबी शब्द से पडा़ है, जिसका अर्थ स्वर्ग है. इसलिए इस उपरत्न को स्वर्ग का उपरत्न भी कहा जाता है. इस उपरत्न को इसके नीले आसमानी रंग के कारण स्वर्ग का उपरत्न कहा जाता है. यह उपरत्न इस उपरत्न के

सावन के माह में शिवभक्त अपनी श्रद्धा तथा भक्ति के अनुसार शिव की उपासना करते हैं. चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है. सावन माह में शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है. श्रावण मास के आरम्भ से ही पूजा का आरम्भ

"कैल्साइट" शब्द की उत्पत्ति लैटिन तथा ग्रीक शब्दों से मिलकर हुई है. यह चूना पत्थर तथा संगमरमर में आमतौर से पाया जाता है. रंगहीन कैल्साईट अथवा प्रकाशीय कैल्साईट में दोहरा अपवर्तन पाया जाता है. जब किसी लिखे हुए शब्द पर कैल्साईट को रखा जाए और