सावन के माह में शिवभक्त अपनी श्रद्धा तथा भक्ति के अनुसार शिव की उपासना करते हैं. चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है. सावन माह में शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है. श्रावण मास के आरम्भ से ही पूजा का आरम्भ
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"कैल्साइट" शब्द की उत्पत्ति लैटिन तथा ग्रीक शब्दों से मिलकर हुई है. यह चूना पत्थर तथा संगमरमर में आमतौर से पाया जाता है. रंगहीन कैल्साईट अथवा प्रकाशीय कैल्साईट में दोहरा अपवर्तन पाया जाता है. जब किसी लिखे हुए शब्द पर कैल्साईट को रखा जाए और
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अपने नाम के अनुरुप ही यह योग बहुत ही सुंदर और शुभ योग होता है. हंस योग से युक्त व्यक्ति विद्वान और ज्ञानी होता है. उसमें न्याय करने का विशेष गुण होता है. तथा हंस के समान वह सदैव शुभ आचरण करता है. उसमें सात्विक गुण पाये जाते है. इस योग के
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भरणी नक्षत्र तीन तारों के समूह से मिलकर बना है. यह तीन तारे स्त्री की योनि के आकार की तरह दिखाई देते हैं. सभी नक्षत्रों की आकृति और आकारों की तुलना पृथ्वी पर पाए जाने वाले पदार्थों से की गई है. भरणी नक्षत्र मेष राशि में आता है. मेष राशि
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जन्म कुण्डली में शुभाशुभ योगों के प्रभव से जातक का जीवन बहुत प्रभावित होता है. जातक को मिलने वाली दशाएं और योगों का शुभ और अशुभ प्रभाव उसके जीवन में निर्णायक भूमिका दिखाता है. कुछ व्यक्ति को जीवन में अपार सफलता प्राप्त होती है तो हम सभी के
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विवाह संबंधी प्रश्न | Marriage Related Prashna वर्तमान समय में ज्योतिषी के पास विवाह से संबंधित प्रश्न बहुत आते हैं. विवाह कब होगा, किससे होगा, जीवनसाथी कैसा होगा आदि बहुत से प्रश्न है जिनको प्रश्नकर्त्ता जानना चाहता है. इन सभी प्रश्नो का
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चन्द्र मास में सप्तमी तिथि के बाद आने वाली तिथि अष्टमी तिथि कहलाती है. चन्द्र के क्योंकि दो पक्ष होते है, इसलिए यह तिथि प्रत्येक माह में दो बार आती है. जो अष्टमी तिथि शुक्ल पक्ष में आती है, वह शुक्ल पक्ष की अष्टमी कहलाती है. पक्षों का
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माणिक्य रत्न को अनेक नामों से जाना गया है. इसे कुरविन्द, वसुरत्न, रत्ननायक और लोहितरत्न के अतिरिक्त रविरत्न और लक्ष्मी पुष्य नाम से भी सुशोभित किया गया है हिन्दी और मराठी में इसे क्रमश: माणिक्य, माणिक कहा गया है. माणिक्य रत्न के विषय में
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ओनेक्स उपरत्न कई रंगों में पाया जाता है. यह हरे रंग, हरे और पीले रंग के मिश्रण तथा तोतिया हरे रंग में पाया जाता है. यह ओनेक्स के मुख्य रंग हैं. इसके अतिरिक्त ओनेक्स सफेद अथवा धूम्र वर्ण में भी उपलब्ध होता है. इस उपरत्न में लाल, भूरे, काले,
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यह उपरत्न पायरोक्सीन(pyroxene) समूह का मैग्नेशियम, सिलिकेट खनिज है. यह उपरत्न क्रोमियम युक्त विभिन्न श्रेणियों में पाया जाता है और चमकीले रंग में उपलब्ध यह उपरत्न क्रोम डायोप्साईड कहलाता है. यह उपरत्न दूसरे उपरत्नों की अपेक्षा बहुत ही नरम
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इस उपरत्न को संस्कृत में वैक्रांत तथा हिन्दी में शोभामणि कहते हैं. अंग्रेजी में इसे टूमलाइन या टूरमैलीन भी कहते हैं. प्रकृति में मौजूद सभी रंगों में यह उपरत्न पाया जाता है. सभी रंगों में पाए जाने के कारण इस उपरत्न को “कलर
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कृष्णमूर्ति पद्धति में सभी भावों के उपनक्षत्र स्वामी का विश्लेषण किया जाता है कि वह कुण्डली में किन-किन भावों के कार्येश हैं. जिन भावों के वह कार्येश होते हैं उन्हीं भावों से संबंधित फल दशा तथा दशाभुक्ति आने पर प्राप्त होते हैं. कुण्डली
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ज्योतिष के आदिकाल से लेकर वर्तमान काल तक इसके सिद्धान्तों में अनेक परिवर्तन हुए. ऋक ज्योतिष ग्रन्थ में युग, आयन, ऋतु, मास, नक्षत्र आदि के विषय में और मुहूर्त का विस्तार से वर्णन किया गया है. परन्तु इसमें ग्रहों व राशियों का कोई वर्णन नहीं
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ज्योतिष के प्रमुख 18 ऋषियों में गर्ग ऋषि का नाम भी आता है. ऋषि गर्ग ने ज्योतिष के क्षेत्र में आयुर्वेद और वास्तुशास्त्र पर महत्वपूर्ण कार्य किया. गर्ग पुराण में ज्योतिष के मुख्य नियमों का उल्लेख मिलता है. ज्योतिष शास्त्र के 6 भागों पर गर्ग
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ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक कहा गया है. इसके साथ सूर्य आत्मा के कारक ग्रह है. व्यक्ति की आजीविका में सूर्य सरकारी पद का प्रतिनिधित्व करता है. व्यक्ति को सिद्धान्तवादी बनाता है. इसके अतिरिक्त सूर्य कार्यक्षेत्र में कठोर अनुशासन
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जीवन में हर किसी की जिंदगी में किसी न किसी बात को लेकर कोई न कोई परेशानी लगी ही रहती है. परिवार, पैसा, प्यार ऎसे न जाने कितने कारण हैं जो कारण व्यक्ति की लाईफ में लड़ाई झगड़े का कारण बनते हैं. कई बार कुछ विवाद इतने लम्बे खिंच जाते हैं
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प्रश्न कुण्डली ज्योतिष शास्त्र का एक महत्वपूर्ण भाग है. यह कुण्डली जातक द्वारा पूछे प्रश्न पर आधारित होती है. जिस समय किसी व्यक्ति विशेष द्वारा कोई प्रश्न किया जाता है उसी समय की एक कुण्डली बना ली जाती है. इसे ही प्रश्न कुण्डली कहा गया है.
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ज्योतिष में अनेकों योग हैं और इन योगों की संख्या भी हजारों में है. ऎसे में कोई न कोई शुभ या अशुभ योग जातक की कुण्डली में बनता ही है. ये योग जातक के प्रारब्ध का ही प्रभाव होता हैं जो आने वाले जीवन को भी प्रभावित करते हैं. इन योगों द्वारा
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ज्योतिष शास्त्र में 9 ग्रह, 27 नक्षत्र और 12 राशियों को स्थान दिया गया है. ब्रह्माण्ड में एक नई राशि के आगमन की खबर आज सभी की हैरानी का सबब बनी हुई है. राशि परिवार में एक नए सदस्य के बढने पर सभी अधिक आश्चर्य प्राचीन ज्योतिषियों को हो रहा
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ऋषि भृगु उन 18 ऋषियों में से एक है. जिन्होने ज्योतिष का प्रादुर्भाव किया था. ऋषि भृ्गु के द्वारा लिखी गई भृ्गु संहिता ज्योतिष के क्षेत्र में माने जाने वाले बहुमूल्य ग्रन्थों में से एक है. भृ्गु संहिता के विषय में यह मान्यता है, कि इस