नौकरी या व्यवसाय में कारकांश कुण्डली की भूमिका

करियर के क्षेत्र में हम अपने लिए नौकरी का चयन करते हैं या फिर व्यवसाय का इन का पता लगाने के लिए कई तरह की पद्धितियां ज्योतिष में मौजूद हैं. इन्हीं में से एक विचार कारकांश के द्वारा भी प्राप्त होता है. कारकांश का संबंध जैमिनि ज्योतिष से होता है जिसमें नवांश कुंडली की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है. कारकांश रुप में जो लग्न या जो राशि ग्रह के साथ संबंध बनाती है उसका करियर पर असर पड़ता है. कारकांश ग्रह के रुप में सूर्य, मंगल, चंद्रमा, बुध, शनि, शुक्र या बृहस्पति कोई भी हो सकता है. वहीं मेष से लेकर मीन तक किसी भी राशि में कारकांश ग्रह विराजमान हो सकता है. अब ग्रह के साथ राशि प्रभाव एवं दशम भाव के साथ इसका संबंध इन सभी के अनुसार करियर में होने वाले परिणामों को जान पाना संभव हो सकता है. 

कारकांश कुंडली में ग्रह एवं राशि प्रभाव 

कारकांश कुंडली में यदि सूर्य विशेष बनता है तब उस स्थिति में व्यक्ति को अपने कार्यक्षेत्र में सरकार की ओर से अच्छा सहयोग मिल सकता है. व्यक्ति अपने कार्यों में चिकित्सक हो सकता है, राजकीय कार्यालय में किसी पोस्ट पर हो सकता है. सुरक्षा परिषद का सदस्य बन सकता है. वह शिक्षण, नेतृत्व कुशलता के कामों में अच्छा कर सकता है. अपने करियर के लिए उसके पास बहुत से अवसर भी हो सकते हैं. यदि सूर्य की स्थिति कुंडली में हर प्रकार से अच्छी होगी तो इसके द्वारा वह सरकारी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्ति में सफल होता है. यदि कारोबार करता है तो वहां उसका वर्चस्व अच्छा होता है. 

चंद्रमा के कारकांश होने पर व्यक्ति को ऎसे कार्यों में अधिक प्रोत्साहन मिल सकता है जिनमें पोषण की संभावना होती है. जो भावनाओं से जुड़े होते हैं. जिनमें जल तत्व की प्रधानता होती है. व्यापार में वह जलीय उत्पादों के क्षेत्र में बडी़ सफलता प्राप्त कर सदशम भाव आजीविका और करियर के लिए माना जाता है. यदि दशम भाव खाली हो तो दशमेश जिस ग्रह में नवम भाव में हो उसके अनुसार आजीविका का विचार किया जाता है. यदि ग्रह दूसरे और ग्यारहवें भाव में मजबूत स्थिति में है, तो यह आजीविका में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ज्योतिष शास्त्र के नियमों के अनुसार व्यक्ति की कुंडली में दशम भाव शुभ स्थान में मजबूत स्थिति में होता है.

जैमिनी पद्धति के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की कारकांश कुण्डली में लग्न में सूर्य या शुक्र हो तो व्यक्ति राजनीतिक पक्ष से संबंधित व्यवसाय करता है या सरकारी विभाग में नौकरी करता है. कारकांश कुण्डली में लग्न में चन्द्रमा और शुक्र की दृष्टि है. ऐसे में अध्यापन कार्य में सफलता व सफलता मिलती है. लग्न में चंद्रमा कारकांश में हो और बुध उस पर दृष्टि डाले तो चिकित्सा के क्षेत्र में करियर की बेहतर संभावनाएं दर्शाता है. कारकांश में मंगल लग्न स्थान में होने से व्यक्ति शस्त्र प्राप्त करता है, शस्त्र, रसायन एवं रक्षा विभाग से जुड़कर सफलता की बुलंदियों को छूता है. 

कारकांश कुण्डली के लग्न में बुध होता है वह कला या व्यवसाय को अपनी आजीविका का माध्यम बनाता है तो वह आसानी से सफलता की ओर अग्रसर होता है. कारकांश लग्न में शनि या केतु हो तो सफल व्यवसायी बन सकता है. सूर्य और राहु के लग्न में होने पर व्यक्ति केमिस्ट या डॉक्टर बन सकता है.

कारकांश कुण्डली में ग्रहों का योग प्रभाव 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि कारकांश से तीसरे या छठे भाव में पाप ग्रह स्थित हों या दृष्टि डाल रहे हों तो ऐसी स्थिति में इसे कृषि और कृषि व्यवसाय में जीविकोपार्जन का संकेत माना जाना चाहिए. कारकांश कुण्डली के चतुर्थ भाव में केतु जातक मशीनरी के कार्य में सफल होता है. इस स्थान पर राहु हो तो लोहा व्यवसाय में सफलता देता है. कारकांश कुण्डली में चन्द्रमा लग्न से पंचम स्थान में है तथा बृहस्पति शुक्र से दृष्ट या युति कर रहा है, अत: लेखन एवं कला के क्षेत्र में अच्छे मौके दे सकता है.   

सूर्य, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि ये सभी ग्रह करियर की स्थिरता के लिए बहुत लाभदायक माने जाते हैं. सूर्य लाभेश या कर्मेश हो तो व्यक्ति को सरकारी नौकरी दिलाने वाला और उच्च प्रशासनिक अधिकारी के पद को प्रदान करने में बेहद सहायक होता है. 

सूर्य और बुध की युति हो तो व्यक्ति बहुत बुद्धिमान होता है इसके अलावा तथा प्रशासनिक, न्यायाधीश, अधिवक्ता आदि के क्षेत्र में करियर बना सकता है.

यदि जन्म कुण्डली में कर्मेश या लाभेश कोई भी हो अगर उनके साथ मंगल की युति हो या किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति भवन, भूमि के काम से भी लाभ अर्जित कर सकता है. भवन ठेकेदार के कार्य में शामिल भी हो सकता है.

सूर्य और मंगल की युति उसे तहसीलदार, पटवारी आदि के कार्यों में सफलता दिलाती है. इसी के साथ सैन्य कार्यों में भी ये युति काफी अच्छे से अपना प्रभाव दिखाती है. साहस का योग इसके कारण मिलता है.  

बुध, बृहस्पति ये दोनों ग्रह भी जातक को उच्च स्थान देते हैं और बुद्धि, शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में सफलता दिलाते हैं. इन दोनों ग्रहों के मजबूत होने से व्यापार में भी सफलता मिलती है. बुध और गुरु दोनों ही व्यावसायिक कारक हैं. जन्म कुंडली में इनका शुभ स्थान नवम, दशम या एकादश भाव में स्थित होना व्यक्ति को आर्थिक रूप से मजबूत बनाता है. 

व्यक्ति को इन शुभ ग्रहों के द्वारा परिश्रमी, भाग्यवान और धार्मिक, धनवान होने का सुख मिलता है. शुक्र के साथ राहु  का योग होने पर व्यक्ति तकनीक में अच्छा कर सकता है इसके अलावा फैशन या सिनेमा जगत में सफलता प्राप्त करने के उसे अवसर भी मिलते हैं. 

शुक्र उच्च का हो या स्वराशि में स्थित हो तो व्यक्ति को  ग्लैमरस से जुड़ा काम देगा इस व्यवसाय में अधिक सफलता मिलती है. इसमें राहु का भी महत्व है.राहु व्यक्ति को टेक्नीशियन, इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, गणितज्ञ आदि बनने में मदद करता है. यदि राहु कर्मेश से दशम भाव में स्थित है तो वह एक सर्जन बनने की क्षमता रखता है. इसी के साथ शुभ ग्रहों का प्रभव व्यक्ति को रचनात्मक क्षेत्रों में ले जाने वाला हो सकता है.