शुक्र के जन्म कुंडली में नीचस्थ होने का क्या कारण और इसका प्रभाव ?

अन्य ग्रहों की तरह शुक्र भी व्यक्ति के निजी जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह शुभ ग्रह प्रेम जीवन में सुख और आनंद प्रदान करने वाला है. शुक्र विवाह, प्रेम संबंधों और व्यभिचार का भी कारक है. व्यक्ति की जन्म कुंडली में शुक्र की स्थिति की को देखना महत्वपूर्ण है ताकि इसके लक्षणों और अन्य ग्रहों के साथ योग के बारे में जान सकें. पौराणिक आख्यानों में शुक्राचार्य ऋषि भृगु के पुत्र हैं और दैत्यों के गुरु के रुप में विराजमान हैं. भगवान शिव द्वारा मृतसंजीवनी विद्या का ज्ञान प्राप्त करने के योग्य केवल शुक्र ही थे. ऐसा माना जाता है कि यह ज्ञान मृत व्यक्ति को भी जीवित कर देता था, शुक्र को प्रेम, विवाह, सौंदर्य और सुख का कारक माना जाता है. शुक्र यजुर्वेद और वसंत ऋतु पर नियंत्रण भी रखते हैं. उत्तर कालामृत अनुसार शुक्र को अच्छे वस्त्र, विवाह, आय, स्त्री, ब्राह्मण, पत्नी, यौन आनंद राजसिक प्रकृति, वीर्य, नृत्य-अभिनय, गौरी और लक्ष्मी से संबंधित माना गया है. मजबूत शुक्र किसी भी कुंडली में बहुत अच्छे परिणाम देता है. कमजोर शुक्र उपर्युक्त बातों के संबंध में कुछ कमियां पैदा कर सकता है.

शुक्र दो राशियों वृष और तुला का स्वामी है. यह मीन राशी में 27 डिग्री परउच्च स्थिति को पाता है. इर कन्या राशि में इसी अम्शों पर निर्बल होता है. इसकी मूलत्रिकोण तुला राशि है. शुक्र वीर्य को नियंत्रित करता है. ग्रह मंडल में गुरु के साथ शुक्र भी मंत्री है. इसका रंग तरह-तरह का होता है. "बृहत् पराशर होरा शास्त्र" के अनुसार यह जिस देवता का प्रतिनिधित्व करता है वह शची जो भगवान इंद्र की पत्नी है. यह स्त्रीलिंग का होता है. यह पंचभूतों या पांच तत्वों के बीच पानी का प्रतिनिधित्व करता है. यह ब्राह्मण वर्ण का है और इसमें राजसिक गुणों की प्रधानता है. शुक्र आकर्षक काया युक्त, सुंदर और चमकदार आंखों, काव्य, कफनाशक, वातकारक है और घुंघराले बालों वाला होता है. यह उत्तर दिशा में प्रबल होता है. यह एक अम्लीय स्वाद का प्रतिनिधित्व करता है. यह बुध और शनि के अनुकूल है. यह सूर्य, चंद्र और मंगल का शत्रु है. यह बृहस्पति को तटस्थ मानता है.

शुक्र के अन्य महत्व्पूर्ण तथ्य
यदि यह खराब ग्रहों से नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है, तो यह आप पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. शुक्र के खराब होने पर जीवन में शांति और आनंद नहीं मिल सकता है. स्त्रियों को शुक्र के खराब होने के कारण प्रसव के दौरान परेशानी हो सकती है. व्यक्ति की कुंडली में शुक्र की स्थिति जातक की वैवाहिक स्थिति को भी दिखाती है. यदि ग्रह नीच का है, तो आप यौन रोगों, संक्रमण, मधुमेह, या गुर्दे की पथरी से संबंधित रोग दे सकता है. इसके अलावा, यदि ग्रह अशुभ ग्रहों के प्रभाव में है, तो आपको मूत्र संबंधी समस्याएं, सूजन या जननांग अंगों का सामना करना पड़ सकता है.

कुंडली में शुभ तरह से स्थित शुक्र व्यक्ति को अपनी पसंद का काम चुनने में मदद कर सकता है. कला, चित्रकला या कविता के क्षेत्र में व्यक्ति की रुचि हो सकती है. आयकर विभाग में ऑटोमोबाइल क्षेत्र में एक बेहतर कैरियर दे सकता है. शुक्र को सौंदर्य, इच्छा और प्रेम, तरल धन का कारक माना गया है. शुक्र विवाह का मुख्य कारक है. शुक्र पुरुष के लिए प्रेमिका या पत्नी का प्रतिनिधित्व करता है. शुक्र सभी संबंधों का कारक है चाहे वह पति-पत्नी हो या मां-बेटी को दर्शाता है.

चित्रा नक्षत्र

चित्रा नक्षत्र रचनात्मकता का नक्षत्र है, चित्रों या छवियों से संबंधित कार्य, अचल संपत्ति और रिश्ते संघर्ष आदि. चित्रा नक्षत्र की कोमल अनुभूति में शुक्र को शुभता मिपती है. यहां इसका असर सकारात्मक रुप से अपना असर दिखाने वाला होता है, लेकिन यहां यह निर्बल भी होता है.

कन्या राशि
चित्रा नक्षत्र कन्या राशि के अंतर्गत स्थान पाता है. कन्या राशि का अंग होने के कारण कन्या राशि और इसका प्रतिनिधित्व भी महत्वपूर्ण हो जाता है. कन्या राशि राशि चक्र की छठी राशि है, इसलिए यह लगभग सभी चीजों का प्रतिनिधित्व करती है. कुंडली के छठे घर द्वारा दर्शाई जाने वाली चीजों को जैसे ऋण, रोग, बाधाएं, वंचितों की सेवा, सेवा कार्य, नौकरी, आदि. इसके अलावा, कन्या विश्लेषणात्मक तर्क शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है. लोगों की आलोचनात्मक प्रकृति, पूर्णतावादी और उपचार क्षमता इसमें अ़च्छी होती है. कन्या राशि का मूल प्रतिनिधित्व हाथ में गेहूं और जड़ी-बूटी लेकर नाव में सवार महिला है. तो, कन्या राशि मूल रूप से उपचार का संकेत है. कन्या राशि में उत्तरा-फाल्गुनी, हस्त और चित्रा नक्षत्र आते हैं और कन्या राशि का स्वामी बुध ग्रह होता है.

कन्या राशि में शुक्र के नीच होने के कारण
शुक्र का कन्या राशि में निर्बल होना कई बातों पर आधारित होता है. शुक्र मुख्य जीवन का प्रतिनिधित्व करता है, कन्या छठी राशि है, इसलिए इसमें संघर्ष और बाधाओं के छठे घर की ऊर्जा भी होती है. अत: शुक्र के कन्या राशि में होने पर व्यक्ति के जीवन में संबंध कारक को समृद्ध करने के लिए शुक्र को उचित वातावरण नहीं मिल रहा है. कन्या राशि में शुक्र को मिलने वाली चीजों में संघर्ष, विवाद और बाधाएँ मुख्य होती हैं. साथ ही, कन्या पूर्णता की निशानी है. तो, कन्या राशि में शुक्र किसी ऐसे व्यक्ति को दर्शाता है जो रिश्ते या जीवन साथी में पूर्णता की तलाश कर रहा होता है. जैसा कि दुनिया में कोई सही रिश्ता या साथी नहीं है, कन्या राशि में शुक्र रिश्ते में असंतोष महसूस कर सकता है और अंत में संघर्ष और विवाद हो सकता है क्योंकि वह संबंध या साथी में केवल कमियां देखता है. अत: शुक्र कन्या राशि में नीच का होता है.

शुक्र के चित्रा में नीच होने के कारण
कन्या राशि में जो नक्षत्र आते हैं उन सभी में से शुक्र को अपनी सबसे कमजोर स्थिति चित्रा नक्षत्र में प्राप्त होती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि चित्रा रिश्तों के टकराव का नक्षत्र है. चित्रा की पौराणिक कहानी पर गौर करें तो यह वह कहानी थी जहां संध्या ने सूर्य की आग और गर्मी के कारण सूर्य का साथ छोड़ दिया और सूर्य संध्या के पिता के घर उसके साथ सुलह करने के लिए चला गया. यहां सूर्य की आग और गर्मी और कुछ नहीं बल्कि इंसान का अहंकार है जो रिश्तों को खराब करता है. या तो आप अपना अहंकार रख सकते हैं या आप अपना रिश्ता रख सकते हैं. आपके पास दोनों नहीं हो सकते. इसी कारण शुक्र की कोमलता यहां कष्ट को भी पाती है. शुक्र के 27 डिग्री पर नीच होने के कारण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि नवांश चार्ट में भी यह नीच का हो जाता है. अतः यहाँ पर दुर्बलता शक्ति तीव्र हो जाती है.