धन स्थान के उपनक्षत्र स्वामी का विचार | Analysis of the Upnakshatra Lord of 2nd House | Dhan Sthan in Krishnamurti Paddhati

कृष्णमूर्ति पद्धति में सभी भावों के उपनक्षत्र स्वामी का विश्लेषण किया जाता है कि वह कुण्डली में किन-किन भावों के कार्येश हैं. जिन भावों के वह कार्येश होते हैं उन्हीं भावों से संबंधित फल दशा तथा दशाभुक्ति आने पर प्राप्त होते हैं. कुण्डली में धन स्थान अर्थात द्वितीय भाव के उपनक्षत्र स्वामी से विभिन्न प्रकार के धन का आंकलन किया जाता है. द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी जिन भावों से संबंध बनाता है, आय के स्त्रोत भी उसी प्रकार के होते हैं. 

* यदि द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी लग्न, सप्तम तथा दशम भाव का कार्येश होता है तब व्यक्ति अपने स्वयं के कारोबार से धनार्जित करता है. 

* कुण्डली में द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी छठे और दशम भाव का कार्येश है तब व्यक्ति को नौकरी से आय प्राप्त होती है. 

* द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी यदि तृतीय का कार्येश हो तब लेखन कार्य, छपाई से, कमीशन के काम, रिपोर्टर, सेल्समैन तथा छोटी संस्थाओं को स्थापित करने से आय होती है.

*द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी चतुर्थ का कार्येश है तो जमीन के क्रय-विक्रय, घर, बगीचे, वाहन के कारोबार तथा शिक्षा संस्थाओं के माध्यम से व्यक्ति को धन प्राप्त होता है.  

* द्वितीय यदि पंचम भाव का कार्येश हो तो व्यक्ति को नाटक, सिनेमा, खेल, रेस, जुआ, कला से संबंधित कार्य, मंत्र तथा तंत्र के माध्यम से धन मिलता है. 

* द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी छठे भाव का कार्येश है तो ऋण आदि के कार्यों से, पालतू जानवरों के कारोबार से जैसे मुर्गी पालन आदि कार्य, औषधि निर्माण तथा दवाइयों से संबंधित अन्य कार्यों से, होटल के बिजनेस तथा रोजगार संस्थाएँ बनाकर लोगों को नौकरी दिलाने जैसे कार्यों से धन प्राप्त होता है. 

* द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी सप्तम भाव का कार्येश है तो विवाह कराने वाली संस्थाएँ, साझेदारी में होने वाले कार्य,  कानूनी सलाहकार बनकर लोगों को कानून संबंधी परामर्श देने जैसे कार्यों से धन प्राप्त होता है. 

* द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी अष्टम का कार्येश हो तो व्यक्ति जीवन बीमा, दुर्घटना बीमा आदि से संबंधित कार्यों से धन कमाता है. व्यक्ति को पुश्तैनी जायदाद से लाभ मिलता है. मृत्युपत्र, बोनस तथा फंड आदि से धन मिलता है. भविष्य निर्वाह निधि, ग्रेच्यूटी आदि से भी व्यक्ति को लाभ मिलता है. 

* द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी नवम भाव का कार्येश है तो व्यक्ति आयात-निर्यात का कार्य करता है, किताबों के प्रकाशन का काम करता है, विदेश यात्रा से संबंधित संस्था की स्थापना करके धन कमाता है. धार्मिक संस्थाएँ बनाकर धन कमाता है. मंदिरों के माध्यम से लाभ प्राप्त करता है.

* द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी दशम का कार्येश हो तो सरकार या सरकारी संस्थाओं में नौकरी से धन मिलता है. व्यक्ति कारोबार भी करता है तो अच्छे स्तर पर करता है. वह नेतागिरी भी करता है.

* द्वितीय यदि लाभ भाव अर्थात एकादश का कार्येश हो तो व्यक्ति को धन की चिन्ता नहीं होती है. उसके पास स्वत: ही किसी न किसी रुप मेम धन का आवागमन होता रहता है. धन कमाने के लिए अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते हैं. मित्र भी हर समय मदद के लिए तैयार रहते हैं. रेस तथा लॉटरी के माध्यम से भी अचानक से लाभ होता है. कहीं भी थोडा़ सा निवेश करने पर भी अधिक लाभ कमाते हैं. 

* द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी द्वादश का कार्येश है तो व्यक्ति गूढ़ विद्या, होस्टल, जेल, अस्पताल तथा शमशान  अदि के माध्यम से धनार्जन करता है. 

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