नाग करण

पंचांग के पांच अंगों में एक मुख्य अंग करण है. 1 तिथि में 2 करण होते हैं, अर्थात तिथि का पहला भाग और दूसरा भाग दो करणों में बंटा होता है. करण ग्यारह होते हैं, जिनमें से सात करण बार-बार आते हैं और चार ऎसे होते हैं जिनकी पुनरावृत्ति नहीं होती है. करणों की गणना गणित के आधार पर होती है. करण तिथि का आधा भाग होता है. एक दिन में दो करण आते हैं. चार करण महीने में एक बार आते हैं 7 करणों की पुनरावृत्ति बार-बार होती रहती है.

नाग - स्थाई करण है

चार करणों को स्थायी कहा गया है क्योंकि यह बदलते नहीं हैं. इनका तिथि में स्थान निश्चित होता है. इस में एक मुख्य नाग करण है. नाग करण को कम शुभ करण की श्रेणी में रखा गया है. इस करण का प्रभाव जातक को कठोर बनाता है. व्यक्ति निष्ठुर हो सकता है और क्रोधी भी होता है.

नाग करण कब होता है

नाग करण अमावस्या तिथि के उत्तरार्ध में आता है. नाग करण का प्रतीक सर्प को बताया गया है. अत: सर्प जैसा प्रभाव भी इस करण को मिलता है. इस करण की अवस्था सुप्त कही गई हैं और इस कारण इसमें कोई शुभ फल का प्रभाव मिलना कम ही दिखाई देता है.

नाग करण में क्या काम नहीं करें

इस करण में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्यों को नहीं करने की सलाह दी जाती है. किसी भी नए काम की शुरुआत भी इस करण में नहीं करने की सलाह दी जाती है. इस करण अवधि मे कोई भी व्यापारिक कार्य प्रारम्भ करना शुभ नहीं माना जाता है.

नाग करण में क्या काम करें

इस करण के समय दान के कार्य उत्तम होते हैं. मंत्र जाप और प्रभु सुमिरन करना अनुकूल होता है. गरीबों को सामर्थ्य अनुसार भोजन इत्यादि का दान करना शुभ होता है. इस नक्षत्र में किसी को प्रताडी़त करना, मारना, विष देना इत्यादि कार्य अनुकूल कहे गए हैं.

नाग करण का मुहूर्त में महत्व

नाग करण को ज्योतिष में अशुभ माना गया है. ज्योतिष में मुहूर्त इत्यादि के लिए इस करण को शुभ कार्यों में त्यागना ही शुभ माना गया है. अत: किसी कार्य का प्रारम्भ करने के लिए शुभ मुहूर्त के लिए शुभ करण का होना भी अत्यंत आवश्यक होता है. नाग करण के समय यदि मूल नक्षत्र भी पड़ रहा हो तो कोई भी शुभ कार्य इस समय पर बिलकुल भी नहीं करना चाहिए. इस समय पर शुभता की हानि होती है.

नाग करण में जन्मा जातक

नाग करण अपने नाम के अनुरुप फल देता है. नाग जिसे हम सर्प के रुप में जानते ही हैं, इसके कारण मन में एक प्रकार के डर की कल्पना स्वभाविक ही दिखाई देती है. ऎसे में इस करण में जन्में जातक का प्रभाव भी लोगों के मध्य भय देने वाला हो सकता है. जातक अपने कार्यों द्वारा लोगों पर उसका एकाधिकार भी रखने वाला हो सकता है. अपनी मर्जी और अपनी जिद के कारण आगे बढ़ता जाता है. दूसरों की सुनना जातक को पसंद नहीं होता है.

नाग करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति जल और समुद्री क्षेत्रों से आय प्राप्त करने वाला होता है. वह कर्मवादी होता है, और मेहनत के फल उसे आय के रुप में प्राप्त होते है. परन्तु भाग्य के भरोसे अपनी सफलता को छोडने पर उसे जीवन में असफलता का मुंह देखना पडता है. भाग्य में कमी उसे कभी-कभी निराशा भाव में ले जाती है. वह चंचल नेत्र युक्त होता है. उसके नेत्र उसके सौन्दर्य में वृद्धि करते है.

इस करण में जिनका जन्म होता है उन को अपने जीवन में संघर्ष अधिक करना पड़ता है. मेहनत के बावजूद भी सफलता प्राप्ति नहीं हो पाती है. चीज मिल जाने पर भी उस का लाभ नहीं मिल पाता है. अपने से बिछड़ने का भय रहता है. भाग्य अधिक साथ नहीं देता अपने शुभ कर्मों से ही व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ सकता है.

चालाकी से युक्ति काम करने वाला, झूठ बोलने में निपुण होता है. गलत कार्यों की ओर जल्द ही आकर्षित होता है. कर्ज की स्थिति जीवन में जरूर आती है.