त्रिकोण भाव | Trine House | Trikon Bhav | Kona Bhav | Analysis of Trine Houses
वैदिक ज्योतिष में राशि, भाव, नक्षत्र तथा ग्रहों के आधार पर सम्पूर्ण फलित टिका हुआ है. बारह राशियाँ, बारह भाव तथा नौ ग्रह का वर्णन सभी स्थानों पर मिलता है. ग्रहों की स्थिति के आधार पर हजारों योग बने हुए हैं. कुण्डली के बारह भावों को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है. प्रथम भाव, तनु भाव कहलाता है. द्वितीय भाव, धन भाव कहलाता है. तृतीय भाव सहज भाव कहलाता है. चतुर्थ भाव को सुख भाव कहते हैं. पंचम भाव को संतान भाव कहते हैं. छठा भाव, ऋण भाव कहलाता है. सप्तम भाव को दारा भाव कहते हैं. अष्टम भाव को आयु स्थान कहते हैं. नवम भाव को भाग्य भाव कहते हैं. दशम भाव को कर्म स्थान के नाम से जाना जाता है. एकादश भाव को सभी लाभ भाव से भी जानते हैं और द्वादश भाव, व्यय भाव भी कहा जाता है.
जन्म कुण्डली में कई भावों को शुभ तो कई भावों को अशुभ माना जाता है. कई भाव सम स्वभाव के भी होते हैं. कुण्डली के 12 भावों को केन्द्र, त्रिकोण, पणफर, अपोक्लिम, त्रिक, त्रिषडाय आदि बहुत से नामों से जाना जाता हैं. इन भावों में केन्द्र तथा त्रिकोण भाव शुभ माने जाते हैं. केन्द्र से भी अधिक शक्तिशाली तथा शुभ त्रिकोण भावों को माना जाता है. कुण्डली में तीन भाव हैं जिन्हें त्रिकोण का दर्जा दिया गया है. प्रथम भाव को पहला त्रिकोण माना गया है. इसे केन्द्र भी कहते हैं. इसलिए इसकी शक्ति कुछ कम है. पंचम भाव को दूसरा त्रिकोण कहते हैं. यह पहले त्रिकोण से अधिक बली होता है. नवम भाव को तीसरा त्रिकोण कहा जाता है. यह भाग्य भाव भी कहलाता है. तीनों त्रिकोण भावों में यह त्रिकोण सबसे अधिक बली माना गया है.
त्रिकोण भावों का अध्ययन | Analysis of Trine Houses
पहला त्रिकोण भाव लग्न है. लग्न से जातक के बारे में समस्त जानकारी मिलती है. उसका रंग - रुप, व्यक्तित्व, साहस तथा पराक्रम करने की क्षमता आदि के विषय में जानकारी मिलती है. पंचम भाव दूसरा त्रिकोण भाव है. इस भाव से पूर्व जन्म के कर्म देखे जाते हैं. जातक अपने साथ क्या लाया और क्या नहीं लाया है. मंत्रों की सिद्धि का अध्ययन भी इस भाव से ही किया जाता है. यह भाव व्यक्ति की शिक्षा, संतान आदि का भी है. नवम भाव तीसरा त्रिकोण भाव है. इससे जातक के पिता की स्थिति का विश्लेषण किया जाता है. आचार्यों तथा गुरुओं का आंकलन भी इसी भाव से किया जाता है. इस भाव से व्यक्ति की धर्म में आस्था भी देखी जाती है. उच्च शिक्षा का आंकलन भी इसी भाव से किया जाता है.
त्रिकोण का संबंध केन्द्र के साथ | Relationship of Trine House With Kendras
त्रिकोण भावों को लक्ष्मी स्थान कहा गया है. कुण्डली में त्रिकोण भावों के स्वामी शुभ संबंध में हैं तब व्यक्ति इन त्रिकोण भावों की दशा/अन्तर्दशा में धन प्राप्त करता है. यह त्रिकोण भाव यदि कुण्डली में केन्द्र भावों से संबंध स्थापित करते हैं तो जातक को जीवन में सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ मिलती हैं. केन्द्र तथा त्रिकोण भाव के स्वामियों के संबंध से राजयोग बनता है. यह योग कई प्रकार से बनता है. केन्द्र तथा त्रिकोण भावों के स्वामी का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा है तब राजयोग बनता है. केन्द्र भाव तथा त्रिकोण भाव के स्वामी एक साथ किसी शुभ भाव में स्थित है तब राजयोग बनता है. त्रिकोण भाव का स्वामी तथा केन्द्र भाव का स्वामी एक-दूसरे पर दृष्टि डाल रहें हैं तब भी राजयोग बनता है.
त्रिकोण के संबंध से धनयोग | Dhanyoga - Relationship with Trine Houses
यदि कुण्डली में त्रिकोण भावों का संबंध धन भाव या लाभ भाव से बन रहा है तो व्यक्ति को जीवन में कभी भी धन की कमी का सामना करना नहीं करना पड़ता है. धनयोग में शामिल ग्रहों की दशा या अन्तर्दशा आने पर जातक को धन की प्राप्ति होती है. कुण्डली में धन योग का निर्माण कई प्रकार से होता है. लग्न भाव का संबंध 5,9 या 11 भावों से बन रहा है. पंचम भाव का संबंध 2,9 या 11 वें भाव से बन रहा हो. नवम भाव का संबंध 2,5 या 11वें भाव से बन रहा हो.
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