आश्लेषा नक्षत्र फल

आश्लेषा नक्षत्र

ज्योतिष शास्त्र में आशलेषा नक्षत्र नवां नक्षत्र है. राशिचक्र में 106:40 डिग्री से 120:00 डिग्री तक का विस्तार आश्लेषा नक्षत्र में आता है. इस नक्षत्र के गण्डमूल को "सर्पमूल" भी कहा जाता है यह नक्षत्र विषैला होता है. आश्लेषा नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता सर्प है. राशि स्वामी चंद्रमा हैं, नक्षत्र स्वामी बुध है. इस नक्षत्र का स्वामी बुध होने से इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर बुध व चंद्र का विशेष प्रभाव पड़ता है. आश्लेषा नक्षत्र पांच तारों का एक समूह है, यह दिखने मे चक्र के समान प्रतीत होता है. आश्लेषा नक्षत्र सूर्य के समीप होने के कारण इसे प्रातः के समय देखा जा सकता है.

आश्लेषा नक्षत्र - शारीरिक गठन और व्यक्तित्व विशेषताएँ

जातक कद काठी से सामान्य, चौकोर या गोल मुख मंडल वाला होता है. होंठ व मुंह कुछ बडा़ होता है. हल्का सा पीत वर्ण एवं आंखों में चमक होती है. मंगल का प्रभाव होने पर सुंदर कद काठी व आकर्षक हो सकता है. व्यक्तित्व में दो पक्ष हो सकते हैं दूसरों को नम्र दिखे किंतु भीतर से कठोर हो सकता है. बातूनी होता है. दूसरों को अपनी बातों में डाल कर काम निकलवाना जानता है. बातों के जाल बुनकर किसी को भी अपने पक्ष में कर सकता है. इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक में नेतृत्व करने की अच्छी क्षमता होती है.

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति ईमानदार होते हैं, यह मौक़ापरस्त भी होते हैं. दूसरों पर आसानी से विश्वास नहीं करते. यह स्वभाव मे हठीले एवं जिददी होते हैं और अपनी जिद के आगे किसी की भी नहीं सुनते.इस जातक में नाग देवता का प्रभाव अधिक प्रतीत होता है. फलतः व्यक्ति अपेक्षाकृत क्रोधी होता है. आश्लेषा नक्षत्र के व्यक्ति मे स्थिरता का अभाव होता है, इनमें कुछ न कुछ करते रहने की लगन बनी रहती है.

इनका कोई भी पूर्व निर्धारित स्वरूप नहीं होता. एक तरह से इनका जीवन भी बिल्कुल चलायमान नदी की भांती रहता है. यह अपने कर्यों के प्रति अग्रसर रहते है परंतु अगर अपने उद्देश्य में सफलता नहीं मिलती है तो ये अवसाद से ग्रस्त हो जाते हैं और इस वजह से संसारिकता से दूर होते जाते हैं. आश्लेषा नक्षत्र में जन्म लेने वाली स्त्री रंग रूप में सामान्य परंतु आकर्षक होती है. अपने स्वभाव से सभी का मोह लेने वाली होती है. यह संस्कारी और सभी का सम्मान करने वाली होती इस नक्षत्र मे जन्मी कन्या बहुत भाग्यशाली होती हैं यह जिस घर में जाती है. वहां लक्ष्मी का वास होता है वह घर धन धान्य से भर जाता है.

पारिवारिक जीवन

परिवार की ज़िम्मेदारी के प्रति भी सजग होते हैं. परिवार में अगर वह सबसे बड़े हैं तो उन पर अधिक ज़िम्मेदारी होती है और वह उसे निभाते भी हैं. किंतु इस स्थिति में जीवन साथी का पूर्ण रुप से सहयोग नहीं मिल पाता है. गृह प्रबंध को अच्छे से जानते हैं. जातक को ससुराल पक्ष कि ओर से इन्हें अधिक सावधान रहने की आवश्यकता होती है. क्योंकि इस ओर से संबंध छोटी से छोटी बात के चलते खराब हो सकते हैं.

स्वास्थ्य

यह नौवां नक्षत्र है और इसका स्वामी बुध है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत फेफड़े, इसोफेगेस, जिगर, पेट का मध्य भाग, पेनक्रियाज आता है. इसके साथ ही जोड़ों में दर्द की शिकायत, हिस्टीरिया, जलोदर, पीलिया एवं अपच जैसी स्वास्थ्य संबंधी बीमारियाँ परेशान कर सकती हैं. अगर यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इन अंगों से जुड़ी परेशानियाँ व्यक्ति को होती हैं. जातक को मानसिक आघात भी लगने का डर रहता है. अस्थि संधि, कोहनी, घुटना, नाखून व कान का संबंध आश्लेषा नक्षत्र से होता है. अगर यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इन अंगों से जुड़ी परेशानियाँ व्यक्ति को होती हैं.

आश्लेषा नक्षत्र व्यवसाय

आश्लेषा नक्षत्र का स्वामी ग्रह बुध है और बुध को ज्ञान का कारक माना गया है. यह वाणिक ग्रह भी है जिसके फलतः इस नक्षत्र में जन्मे जातक सफल व्यापारी, चतुर अधिवक्ता, भाषण कला में निपुण होते हैं. आश्लेषा नक्षत्र मे जन्मे जातक योग्य व्यवसायी होते हैं. इन्हें नौकरी की अपेक्षा व्यापार करना ज्यादा भाता है और इस कारण यदि यह जातक नौकरी करता भी है. उसमे ज्यादा समय तक टिक नही पाता और यदि नौकरी करते भी हैं तो साथ ही साथ किसी व्यवसाय से भी जुड़े रहते हैं.

आश्लेषा नक्षत्र में जन्मा जातक अच्छा एवं गुणी लेखक भी होता है. अपने चातुर्य के कारण यह श्रेष्ठ वक्ता भी होता है. भाषण कला में प्रवीण अपने इस गुण के कारण यह दूसरों पर अपनी छाप छोड़ते हैं और लोग इनसे जल्द ही प्रभावित होते हैं. इन्हें अपनी प्रशंसा सुनने की भी बड़ी चाहत रहती है. अपना बखान किए बिना भी नही रहते .यह धन दौलत से परिपूर्ण होते हैं तथा इनका जीवन वैभव से युक्त होता है इनमें अच्छी निर्णय क्षमता पायी जाती है जो इन्हें सफलता तक पहुँचाती है.

आश्लेषा नक्षत्र का प्रथम चरण

लग्न या चंद्रमा, आश्लेषा नक्षत्र के प्रथम चरण में आता हो तो ऐसा जातक बड़े शरीर वाला, स्वच्छ आंखों से युक्त होता है. नज़रों में जादू व आकर्षण होता है. प्रतापी व गौर वर्ण का होता है. सुंदर नाक एवं बड़े दांत होते हैं. बोलने में कुशल होता है. लोगों को अपनी ओर कर लेने में योग्य होता है. धनी एवं वाहनों से लाभ पाने वाला हो सकता है.

आश्लेषा नक्षत्र का दूसरा चरण

लग्न या चंद्रमा आश्लेषा नक्षत्र के दूसरे चरण में आता हो तो गोल मटोल होत है, बाल बिखरे से और कम रोम वाला होता है, दूसरों के घर रहने वाला हो सकता है, कौए के समक्ष आकृति हो सकती है. जातक पर रोग का प्रभाव भी जल्द हो सकता है.

आश्लेषा नक्षत्र का तीसरा चरण

लग्न या चंद्रमा आश्लेषा नक्षत्र के तीसरे चरण में जातक का सिर उभार वाला हो सकता है, योग्य रुप से काम न कर पाए. आकर्षक मुख एवं भुजाओं वाला होता है. धीमा चलने वाला होता है. त्वचा से संबंधी विकार परेशान कर सकते हैं , नाक थोड़ी चपटी हो सकती है.

आश्लेषा नक्षत्र का चौथा चरण

लग्न या चंद्रमा, आश्लेषा नक्षत्र के चौथे चरण में आता हो तो जातक गौरे रंग का एवं मछली के समान आंखों वाला होता है. शरीर में चर्बी अधिक हो सकती है. कोमल पैर ओर भारी जांघे हो सकती हैं, टखने और घुटने पतले होते हैं. लम्बी ठुड्डी, भारी व चौडी़ छाती वाला होता है.

आश्लेषा नक्षत्र के नामाक्षर

आश्लेषा नक्षत्र के प्रथम चरण या प्रथम पाद में जो 16:40 से 20:00 तक होता है. इसका अक्षर “डी” होता है.

आश्लेषा नक्षत्र के दूसरे चरण या द्वितीय पाद में जो 20:00 से 23:20 तक होता है. इसका अक्षर “डू” होता है.

आश्लेषा नक्षत्र के तीसरे चरण या तृतीय पाद में जो 23:20 से 26:40 तक होता है. इसका अक्षर “डे” होता है.

आश्लेषा नक्षत्र के चौथे चरण या चतुर्थ पाद में जो 26:40 से 30:00 तक होता है. इसका अक्षर “डो” होता है.

आश्लेषा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ नमोSस्तु सर्पेभ्योये के च पृथ्विमनु:।

ये अन्तरिक्षे यो देवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम: ।

ॐ सर्पेभ्यो नम:।

उपाय

अश्लेषा नक्षत्र के पुरे प्रभावों से बचने के लिए सर्प को दूध पिलाना चाहिए एवं सर्प पूजन करना चाहिए. इसके साथ ही भगवान शिव का पूजन एवं भगवान विष्णू का पूजन करना भी शुभदायक होता है. "ॐ नम: शिवाय" मंत्र का जाप अथवा आश्लेषा के बीज मंत्र "ॐ गं" का जाप करना भी उत्तम होता है. आश्लेषा नक्षत्र जातक के लिए श्वेत वस्त्र, हल्का नीला, पीला व नारंगी रंग धारण करना लाभदायक होता है. 7 रत्ती का पन्ना सोने की अंगुठी में जड़वाकर बुधवार के दिन प्रात: कल अंगुली में धारण किया जा सकता है. आश्लेषा नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति गण्डमूल से प्रभावित होते इसलिए जिनका जन्म इस नक्षत्र में हुआ है उन्हें गण्डमूल नक्षत्र की शांति के लिए पूजा करवानी करवानी चाहिए

आश्लेषा नक्षत्र अन्य तथ्य

नक्षत्र - आश्लेषा

राशि - कर्क

वश्य - जलचर

योनी - मार्जार

महावैर - मूषक

राशि स्वामी - चंद्र

गण - राक्षस

नाडी़ - अन्त्य

तत्व - जल

स्वभाव(संज्ञा) - तीक्ष्ण

नक्षत्र देवता - सर्प

पंचशला वेध -धनिष्ठा


bottom