भैरव जयंती 2024: अकाल मृत्यु के भर से दिलाती है मुक्ति

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव जयंती का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष 23 नवंबर  2024 को भैरव जयंती का उत्सव मनाया जाएगा. भैरव को भगवान शिव का ही एक रुप माना जाता है और भैरव शिव के अंशावतार हैं.

भैरव का जन्म अष्टमी तिथि पर हुआ है. इस कारण भैरव की कृपा पाने के लिए अष्टमी तिथि के दिन इनका पूजन करना अत्यंत शुभदायक माना गया है. अष्टमी तिथि के दिन मध्यरात्रि के समय भैरव की पूजा आराधना करने से कष्ट दूर होते हैं. भैरव जयंती पर मध्य रात्रि के समय पर पूजा करना उत्तम फलदायक होता है. इस रात्रि के समय भैरव मंत्र साधना ओर अनुष्ठान करने चाहिए, भैरव जी की पूजा में रात्रि जागरण भी किया जाता है.

भैरव जयंती के समय पर उपवास भी किया जाता है. भैरव जी के निमित्त व्रत करने से व्यक्ति को भैरव का आशीर्वाद प्राप्त होता है. भैरव की उपासना को तंत्र से अधिक जोड़ा गया है. भैरव को रुद्र रुप कहा जाता है ऎसे में उनके लिए पूजा उपासना के नियम भी बहुत कठोर ही होते हैं. किन्तु सात्विक शुद्ध मन से की गई पूजा भैरव जी को प्रसन्न करने में सक्षम होती है. भैरव उपासक को अपनी पूजा और ध्यान साधना में शुचिता का पूरा ध्यान रखने की आवश्यकता होती है. भैरव की उपासना करने से हर तरह की ग्रह पीड़ा व कष्ट से मुक्ति मिलती है. शनि, राहू, केतु व मंगल जैसे पाप ग्रहों के बुरे प्रभाव से मुक्ति दिलाने में भैरव की साधना अत्यंत उत्तम मानी गई है.

भैरव जयंती पर कैसे करें पूजा

भैरव एक उग्र देवता है जो सदैव दुष्टों के संहार के लिए तत्पर रहते हैं. काली पूजा हो या फिर भैरव पूजा ये सभी पूजाएं एक निश्चित समय और गहन साधना की मांग करती हैं. इनका फल तभी मिलता है जब इनकी साधना में दिए गए निर्देशों को समझा जा सके. भैरव पूजा संपूर्ण भारत में होती है. भैरव को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से भी पूजा जाता है. ग्रामिण हों या शहरी रुप सभी स्थानों पर भैरव पूजा को अत्यंत ही महत्वपूर्ण माना गया है. किसी खास कार्य हेतु भी इनकी पूजा की जाती है. जैसे ग्रह शांति के लिए, शत्रु पर विजय प्राप्त करने हेतु व शक्ति पाने के लिए भैरव साधना अत्यंत फलदायक बतायी जाती है.

खंडोबा के स्थान पर भैरव के एक रूप का बहुत पूजन होता है जिस खन्डोबा कहा जाता है. उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम पड़ा. और खण्डोबा की पूजा-अर्चना सभी गांव के और शहरी लोगों में की जाती है. दक्षिण भारत में भैरव का नाम शास्ता है. भैरव को एक उग्र देवता के रूप में ही जाना जाता है. किंतु यदि गहरे अर्थ को समझा जाए तो भैरव ही वे देवता हैं जो सभी प्रकार के भय और क्लेशों सें मुक्ति दिला सकते हैं. इनकी साधना द्वारा ही जीवन के उचित रुप को समझा जा सकता है. विनाश और निर्माण के मध्य जो एक स्थान हैं भैरव देव वहीं उपस्थित हैं. भैरव की मान्यता सभी स्थानों पर है. भूत, प्रेत, पिशाच, टोना-टोका जैसी चीजों से बचाव के लिए भैरव की पूजा को विशेष बताया जाता है.

विविध रोगों और आपत्तियों विपत्तियों को दूर करने वाले देव भी भैरव ही हैं. प्रलय के देवता हैं, संहार करने वाले है. जो भी नीति-नियम के विरुद्ध है उसका नाश करने के लिए सदैव उपस्थित हैं. विपत्ति, रोग एवं मृत्यु के समस्त दूत और देवता उनके अधिन हैं. गणों के अधिपति या सेनानायक हैं महाभैरव ही कहे जाते हैं.

भैरव पौराणिक मान्यता

भैरव जयंती से जुड़ी अनेकों कथाएं जुड़ी हुई हैं जिनमें भैरव की उत्पत्ति, भैरव की शक्तियों एवं उनके चमत्कारों से भरी हुई हैं. मृत्यु तुल्य कष्ट से मुक्ति पाने के लिए भैरव की उपासना प्रसिद्ध है. मारकेश ग्रहों के कोप से पीड़ित होने पर भैरव साधना करना अत्यंत चमत्कारिक उपाय होता है. भैरव के जप, पाठ और हवन अनुष्ठान करने से जीवन में अचानक से आने वाले सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं.

अष्टमी के दिन प्रात:काल उठकर नित्य क्रिया से निवृत होकर स्नानादि कर स्वच्छ होना चाहिये. इस दिन पर पितरों का तर्पण और श्राद्ध कार्य भी किया जाता है. कालभैरव की पूजा के दिन व्रत और उपवास करते हैं. इस दिन पूरे दिन व्रत रखते हुए भैरव जी के नामों का स्मरण करना चाहिये. धूप, दीप, गंध, काले तिल, उड़द, सरसों के तेल से पूजा करनी चाहिए. आरती करनी चाहिये, भैरव के भजन करते हुए रात्रि जागरण किया जाता है. कुत्ते को भैरव की सवारी माना जाता है. कुत्ते को खाना खिलाना चाहिये. इस दिन कुत्ते को भोजन करवाने से भैरव बाबा जल्द प्रसन्न होते हैं.

भैरव उत्पति कथा

भैरव के अवतार के बारे में लिंग पुराण, शिवपुराण अनुसार बताया गया है कि भगवान शिव के अंश से भैरव उत्पत्ति हुई है. इनकी उत्पति को काल भैरवाष्टमी के नाम से पूजा जाता है. पौराणिक एक कथा अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य का प्रकोप बढता ही जा रहा था. तब सब और देवों में भी अंधकासुर का भय व्याप्त हो जाता है. उस दैत्य का वध कर पाना किसी में संभव नही था. अनीति व अत्याचार की सीमाएं जब समाप्त हो जाती हैं. वह देवी पार्वती को पकड़ने चल पड़ता है और तब भगवान शिव के रक्त से भैरव की उत्पति होती है.

कुछ कथाओं के अनुसार शिव के अपमान की अग्नि से भैरव की उत्पत्ति होती है. यह कथा इस प्रकार है कि एक बाद ब्रह्मा जी भगवान शंकर को देख कर, कुछ ऎसे शब्द कहते हैं जो शिव जी के अपमान और तिरस्कार से युक्त होते हैं. भगवान शिव ने इस बात को गंभीर नहीं लिया, किंतु उनकी देह में क्रोध से विशाल दण्ड को पकड़े प्रचण्डकाय अग्नि उत्पन्न होती है और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ती है. ब्रह्मा जी के अहंकार का नाश कर देती है. भगवान शिव ने तुरंत उस अग्नि को शांत किया. वह अग्नि काया(व्यक्ति) रुप में उत्पन्न होती है. भगवान शिव के शरीर से उत्पन्न होने के कारण भैरव का नाम प्राप्त होता है.

भैरव को शिव पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त किया गया है. मान्यता अनुसार भगवान शंकर ने अष्टमी को अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी और भैरव जयंती के रुप में मनाए जाने कि परंपरा रही है.