तुलसी विवाह 2024: तुलसी जन्म कथा और क्यों अधूरी है तुलसी बिना विष्णु पूजा

कार्तिक माह में तुलसी पूजा का महात्मय पुराणों में वर्णित किया गया है. इसी के द्वारा इस बात को समझ जा सकता है कि इस माह में तुलसी पूजन पवित्रता व शुद्धता का प्रमाण बनता है. शास्त्रों में कार्तिक मास को श्रेष्ठ मास माना गया है, स्कंद पुराण में इसकी महिमा का गायन किया गया है.

तुलसी आस्था एवं श्रद्धा की प्रतीक है यह औषधीय गुणों से युक्त है तुलसी में जल अर्पित करना एवं सायंकाल तुलसी के नीचे दीप जलाना अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है. तुलसी में साक्षात लक्ष्मी का निवास माना गया है अत: कार्तिक मास में तुलसी के समीप दीपक जलाने से व्यक्ति को लक्ष्मी की प्राप्ती होती है.

तुलसी विवाह पूजा विधि महत्व

कार्तिक मास में तुलसी पूजा करने से पाप नष्ट होते हैं. मान्यता है कि इस मास में जो व्यक्ति तुलसी के समक्ष दीपक जलाता है उसे सर्व सुख प्राप्त होते हैं. तुलसी के पौधे में चमत्कारिक गुण मौजूद होते हैं. प्रत्येक आध्यात्मिक कार्य में तुलसी की उपस्थिति बनी रहती है. वैष्णव कार्यों, विधि-विधानों में तुलसी विवाह तथा तुलसी पूजन एक मुख्य त्यौहार माना गया है.

कार्तिक माह में सुबह स्नान आदि से निवृत होकर तांबे के बर्तन में जल भरकर तुलसी के पौधे को जल दिया जाता है. संध्या समय में तुलसी के चरणों में दीपक जलाया जाता है. कार्तिक के पूरे माह यह क्रम चलता है. इस माह की पूर्णिमा तिथि को दीपदान की पूर्णाहुति होती है.

कार्तिक महीने की देवउठनी एकादशी के शुभ अवसर पर तुलसी विवाह का आयोजन भी होता है. भगवान श्री विष्णु चार मास की चिर निंद्रा के बाद जब जागते हैं तो वह दिन देवउठनी एकादशी का होता है. इस अवसर को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस शुभ अवसर समय देवी तुलसी का विवाह श्री विष्णु जी के साथ संपन्न किया जाता है. भगवान विष्णु को तुलसी अत्यंत प्रिय है. केवल तुलसी दल अर्पित करके ही श्रीहरि को प्रसन्न किया जा सकता है. तुलसी विवाह वैवाहिक सुख को बढ़ाता है और जीवन में सुख सौभाग्य का आगमन होता है.

तुलसी विवाह कथा

तुलसी जी के विवाह की कथा भी बहुत अलौकिक और पौराणिक है. पौराणिक आख्यानों के अनुसार तुलसी का पूर्व नाम वृंदा था. वृंदा को दिए आशीर्वाद के अनुसार, भगवान विष्णु ने शालिग्राम के अवतार में जन्म लिया और उनसे विवाह किया. इसलिए आज भी कार्तिक माह की एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रुप अवतार का तुलसी से विवाह किया जाता है.

तुलसी कथा इस प्रकार है - वृंदा नाम की एक कन्या थी. वृंदा का विवाह जलंधर नाम के महा पराक्रमी राक्षस से हुआ था. जलंधर को भगवान शिव के तेज से उत्पन्न बताया गया है. जलंधर इतना शक्तिशाली था की उसने दैत्यौं को चारों ओर विजय प्राप्त करवाई थी. उसने देवों का अधिकार छिन लिया और चारों ओर दैत्यों का साम्राज्य स्थापित किया.

जलंधर की शक्ति वृंदा से विवाह पश्चात और अधिक बढ़ जाती है. इसका कारण था कि वृंदा अत्यंत पतिव्रता स्त्री थी और भगवान विष्णु की भक्त भी थी. जिसके कारण उसका पति जलंधर और भी शक्तिशाली हो जाता है. उसकी शक्ति के समक्ष को भी रुक नहीं पाता था. जलंधर पर विजय प्राप्त करना असंभव था. कोई भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहा था. ऎसे में सभी देवता जलंधर का नाश करने के लिए भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं ओर उनसे प्रार्थना करते हैं की वो जलंधर का किसी तरह से नाश करें.

वृंदा के सतीत्व को भंग करना किसी का इतना सामर्थ्य नही था. एक बार जलंधर युद्ध के लिए जब निकल पड़ता है तो उस समय भगवान श्री विष्णु ने जलंधर का रुप धारण किया. वह वृंदा के पास जाते हैं, अपने पति का रुप देख वृंदा श्री विष्णु को पहचान नहीं पाती है. ऎसे में वृंदा का सतीत्व भंग हो जाता है. पतिव्रता स्त्री वृंदा की पवित्रता नष्ट होते ही जलंधर की शक्ति भी समाप्त हो जाती है.

भगवान शिव उस समय युद्ध में जालंधर का वध कर देते हैं. इस प्रकार जलंधर का अंत होता है. वृंदा को जब अपने पति जलंधर की मृत्यु और श्री विष्णु की माया का पता चला तो वह बहुत अधिक क्रोधित हो जाती है. वह क्रोध में भगवान विष्णु को शिला हो जाने का श्राप दे देती हैं. उसी क्षण भगवान श्री विष्णु शालिग्राम रुप में पाषाण हो जाते हैं.

श्री विष्णु को पाषाण हुए देख सभी देवी देवता भय से आतंकित हो जाते हैं. उस समय श्री विष्णु का यह रुप देख देवी लक्ष्मी वृंदा से इस अपराध की क्षमा मांगती है. लक्ष्मी जी कि विनय सुन वृंदा भगवान को श्राप से मुक्त करती हैं ओर स्वयं उसी क्षण सती हो जाती हैं.

श्री विष्णु श्राप से मुक्त होने पर वृंदा को तुलसी नाम देते हैं. सती हुई वृंदा को तुलसी रुप प्राप्त होता है. तुलसी का पौधा उन्हीं वृंदा से उत्पन्न होता है. श्री विष्णु अपने पाषाण रुप को शालिग्राम रुप में तुलसी के साथ स्थान देते हैं. साथ ही ये वरदान देते है कि विष्णु पूजा तुलसी के बिना अधूरी मानी जाएगी. जब तक मुझे तुलसीदल भेंट नहीं किया जाएगा मैं पूजा स्वीकार नही करुंगा. मेरे रुप शालिग्राम का विवाह तुलसी के साथ किया जाएगा, इसलिए कार्तिक महीने में तुलसी जी का शालिग्राम के साथ विवाह भी किया जाता है.

तुलसी विवाह महत्व

कार्तिक माह की एकादशी के दिन ही तुलसी जी और शालिग्राम का उत्पन्न(प्रादुर्भाव) होता है. इस तिथि को इस कारण बहुत ही शुभदायक बताया गया है. इसलिए इस माह में तुलसी और शालिग्राम के पूजन का बडा़ ही महत्व होता है. तुलसी के जन्म के विषय में अनेक पौराणिक कथाएं मिलती हैं. पद्मपुराण में जालंधर तथा वृंदा की कथा दी गई है. बाद में वृंदा तुलसी रुप में जन्म लेती है.

तुलसी इतनी पवित्र हैं कि भगवान विष्णु भी उसकी वंदना करते हैं. कई मतानुसार आदिकाल में वृंदावन में तुलसी अर्थात वृंदा के वन थे. तुलसी के सभी नामों में वृंदा तथा विष्णुप्रिया नाम अधिक विशेष माने जाते हैं. शालिग्राम रुप में भगवान विष्णु तुलसी जी के चरणों में रहते हैं. उनके मस्तक पर तुलसीदल चढ़ता है.