आश्विन पूर्णिमा 2024 - इस साल होगी अधिक मास आश्विन पूर्णिमा

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को आश्विन पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. संपूर्ण वर्ष में आने वाली सभी पूर्णिमा तिथियों की भांति इस पूर्णिमा का भी अपना एक अलग प्रभाव होता है. आश्विन पूर्णिमा को संपूर्ण भारत वर्ष में अनेक नामों से पुकारा जाता है. इन सभी रुपों और नामों के अनुरुप ही इस आश्विनी पूर्णिमा का प्रभाव भी दिखाई देता है. विभिन्न रंगों और विशेषताओं को अपने में संजोए हुए यह पूर्णिमा तिथि प्रकृति एवं व्यक्ति दोनों पर ही समान रुप से प्रभाव भी डालती है.

आश्विन पूर्णिमा कब है

इस वर्ष आश्विन मास के समय अधिक मास पडने के कारण दो बार आश्विन पूर्णिमा होगी. अधिक मास के समय पड़ने वाली पूर्णिमा के समय श्री विष्णु का पूजन का विधान बताया गया है. इसका मुख्य कारण यह है की यह अधिक मास का समय भगवान श्री विष्णु के द्वारा ही संचालित होता है. इसलिए इस समय के दौरान श्री विष्णु पूजन को ही विशेष महत्व दिया गया है.

अश्विन पूर्णिमा

17 अक्टूबर, 2024, बृहस्पतिवार के दिन अधिक मास अश्विन पूर्णिमा मनाई जाएगी.

16 अक्टूबर 2024 को 20:41 से पूर्णिमा आरंभ .

17 अक्टूबर 2024 को 16:56 पर पूर्णिमा समाप्त .

आश्विन पूर्णिमा पर करें लक्ष्मी पूजन

आश्विन पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी के पूजन का विधान भी होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आश्विन पूर्णिमा के दिन को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. इसके कई कारण हैं. इस दिन कई उत्सव मनाए जाते हैं. इस दिन कोजागर व्रत होता है, शरद पूर्णिमा भी यही दिन है, चंद्रमा की किरणें आज के दिन अमृत की वर्षा करती हैं. भगवान श्री कृष्णु इस दिन रास लीला करते हैं. इसी दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं. प्रकृति के उल्लास का उत्सव और प्रेम का रंग इसी पूर्णिमा के दिन पर बहुत ही व्यापक रुप से देखने को मिलता है.

इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजन का भी बहुत महत्व रहा है. आश्विन पूर्णिमा के मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी का आगमन होता है. इस लिए इस दिन रात्रि जागरण किया जाता है. दीपक जलाए जाते हैं. देवी लक्ष्मी का विभिन्न प्रकार से पूजन होता है. माता लक्ष्मी इस दिन धन धान्य का आशीर्वाद प्रदान करती हैं. मान्यता अनुसार इस दिन माता लक्ष्मी देखती हैं की कौन इस रात्रि पर जागता है और देवीलक्ष्मी का पूजन कर रहा होता है. जो भी इस रात्रि लक्ष्मी पूजन और जागरण करता है उसे देवी लक्ष्मी का साथ व आशीर्वाद मिलता है. व्यक्ति के जीवन में धन धान्य सदैव बना रहता है.

आश्विन पूर्णिमा कथा

आश्विनी पूर्णिमा से जुड़ी बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं. इन कथाओं को पूर्णिमा के दिन पढ़ा और सुना जाता है. आश्विनी पूर्णिमा के दिन व्रत रखने वाले को इस दिन कथा भी अवश्य सुननी अथवा पढ़नी चाहिए. यहां एक कथा का वर्णन किया जा रहा है जो इस प्रकार है :-

प्राचीन समय की बात है एक नगर में साहुकार रहा करता था. साहुकार धर्म-कर्म के काम भी किया करता था. साहुकार के दो कन्याएं थी. वह दोनों कन्याएं भी अपने पिता की भांति ही धार्मिक कार्यों को करती थी.पर दोनों में से बडी़ बहन अधिक निपुणता से काम करती थी. छोटी बहन काम में अधूरापन रखती थी. दोनो लड़कियां पूर्णिमा के व्रत को भी किया करती थीं. बडी लड़की अपने इस धार्मिक कार्य को भी संपूर्णता के साथ करती थी. लेकिन छोटी लड़की अपनी लापरवाही के चलते पूर्णिमा का व्रत भी अधूरा ही करती थी.

साहुकार ने अपनी दोनों पुत्रियों का विवाह किया और दोनों ससुराल चली गईं. वहां भी दोनों ने व्रत रखना जारी रखा. लेकिन जहां बडी़ ने पूर्णिमा का व्रत की पूरा व्रत करती, वहीं छोटी अभी भी लापरवाही करती थी. कुछ समय पश्चात दोनों को संतान सुख प्राप्त होता है. लेकिन अधूरा व्रत करने वाली लड़की को जो संतान हुई जन्म के बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो जाती जाती है. ऎसा कई बार होता है जब उस छोटी की संतानें पैदा होती ही मर जाती हैं.

छोटी लड़की ने ब्राह्मणों से इसका कारण पूछा, तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी. इस अधूरे व्रत को करने के कारण ही उसे संतान दुख प्राप्त हो रहा है. अगर वह आश्विन मास में आने वाली पूर्णिमा के दिन व्रत को संपूर्ण विधि विधान के साथ पूर्ण रुप से रखती है तो उसे दीर्घायु वाली संतान प्राप्त होगी.

लड़की ने ब्राह्मणों की बात मान कर आने वाली आश्विन पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि विधान के साथ किया और पूर्ण रुप से किया. कुछ समय बाद उसे पुत्र की प्राप्ति होती है. परन्तु वह बच्चा भी जन्म के बाद ही मृत्यु को प्राप्त होता है. तब उस लड़की ने अपने पुत्र को कपड़े से ढक कर पीढे पर लिटा देती है. अपनी बडी बहन को बुलाती है. बड़ी बहन को बैठने के लिए वही पीढा दे देती है. बडी जब पीढे पर बैठने लगती है तो उसकी चुनरी बच्चे को छू जाती है और उसके छूते ही बच्चा रोने लगता है. बडी बहन कहती है कि तू बेटे के मरने का दोष मुझ पर लगाना चाहई थी, की मै बच्चे पर बैठ गई और वह मर गया. इस पर छोटी कहती है की यह तो पहले से मरा हुआ था. तेरे ही शुभ कर्मों से जीवित हुआ है. क्योंकि तूने पूर्णिमा के व्रतों को सदैव शुभ रुप से संपन्न किया था. तब से उस दिन से बड़ी के साथ साथ छोटी भी पूरे विधि विधान से पूर्णिमा के व्रत रखने लगी और उसका जीवन भी सुखमय बन गया.

आश्विन पूर्णिमा व्रत विधि

  • आश्विन पूर्णिमा के दिन सुबह उठ कर अपने इष्ट देव को याद करना चाहिए और उसके बाद भगवान श्री कृष्ण का पूजन करना चाहिए.
  • पूर्णिमा के दिन इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर, पूजा करनी चाहिए.
  • पूर्णिमा के दिन तुलसी पर दीपक जलाना चाहिए.
  • आश्विन पूर्णीमा के दिन लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है.
  • आश्विन पूर्णिमा के दिन व्रत का संकल्प लेना चाहिए. यदि व्रत न कर सकें तो पूजा अवश्य करनी चाहिए.
  • आश्विन पूर्णिमा के दिन में पूर्णिमा कथा एवं सत्यनारायण पूजा अवश्य करनी चाहिए.
  • आश्विन पूर्णिमा की रात के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए.
  • मंदिर में खीर आदि दान करने का विधि-विधान है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है.
  • ब्राह्माणों को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए.
  • खीर का प्रसाद परिवार के साथ साथ स्वयं भी जरुर खाना चाहिए.