आंवला नवमी 2024 - जानें आंवला नवमी का कथा और पूजन विधि

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है. आंवला नवमी को कुष्माण्ड नवमी और अक्षय नवमी पर्व के नाम से भी मनाया जाता है. आंवला नवमी के दिन स्नान, पूजन, तर्पण और अन्नदान करने का बहुत महत्व बताया गया है.

आंवला नवमी के दिन किया गया जप, तप, दान इत्यादि व्यक्ति को सभी पापों से मुक्त करता है. सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला होता है. मान्यता है कि सतयुग का आरंभ भी इसी दिन हुआ था. इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले के वृक्ष में सभी देवताओं का निवास होता है. आंवला भगवान विष्णु को भी अति प्रिय है इसलिए इस दिन भगवान विष्णु जी को आंवला अर्पित करने चाहिए.

आंवला नवमी कथा

प्राचीन समय की बात है, काशी नगरी में एक वैश्य रहता था. वह बहुत ही धर्म कर्म को मानने वाला धर्मात्मा पुरूष था. किंतु उसके कोई संतान न थी. इस कारण उसकी पत्नी बहुत दुखी रहती थी. एक बार किसी ने उसकी पत्नी को कहा कि यदि वह किसी बच्चे की बलि भैरव बाबा के नाम पर चढा़ए तो उसे अवश्य पुत्र की प्राप्ति होगी. स्त्री ने यह बात अपने पति से कही परंतु पति ने ऐसा कार्य करने से मना कर दिया. किंतु उसकी पत्नी के मन में यह बात घर कर गई तथा संतान प्राप्ति की इच्छा के लिए उसने किसी बच्चे की बली दे दी, परंतु इस पाप का परिणाम अच्छा कैसे हो सकता था अत: उस स्त्री के शरीर में कोढ़ उत्पन्न हो गया और मृत बच्चे की आत्मा उसे सताने लगी.

उस स्त्री ने यह बात अपने पति को बताई. पहले तो पति ने उसे खूब बुरा-भला सुनाया लेकिन फिर उसकी दशा पर उसे दया भी आई. वह अपनी पत्नी को गंगा स्नान एवं पूजन के लिए कहता है. तब उसकी पत्नी गंगा के किनारे जा कर गंगा जी की पूजा करने लगती है. एक दिन माता गंगा वृद्ध स्त्री का वेश धारण किए उस स्त्री के समक्ष आती है और उस सेठ की पत्नी को कहती है कि यदि वह मथुरा में जाकर कार्तिक नवमी का व्रत एवं पूजन करे तो उसके सभी पाप समाप्त हो जाएंगे. ऎसा सुनकर वैश्य की पत्नी मथुरा में जाकर विधि विधान के साथ नवमी का पूजन करती है और भगवान की कृपा से उसके सभी पाप क्षय हो जाते हैं. उसका शरीर पहले की भाँति स्वस्थ हो जाता है, उसे संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है.

आंवला नवमी पूजन विधि

  • आंवला नवमी के दिन प्रात:काल स्नान कर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है.
  • हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प करना चाहिए.
  • आंवले के पेड़ की जड़ में दूध फर पानी का मिश्रण चढा़ना चाहिए.
  • धूप-दीप गंध से आंवला वृक्ष की आरती करनी चाहिए.
  • आंवला वृक्ष की परिक्रमा करनी चाहिए.
  • ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. अगर संभव हो तो आंवला के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान-दक्षिणा देनी चाहिए.
    आंवला नवमी कथा को सुनना चाहिए.
  • आंवला नवमी के दिन परिवार सहित आंवला पूजन करना चाहिए और आंवला के पेड़ के नीचे बैठ कर भोजन करना चाहिए.

आंवला नवमी पर गंगा स्नान का महत्व

आंवला नवमी केद इन गंगा स्नान करना भी अत्यंत ही शुभदायक माना गया है. गंगा स्नान के अतिरिक्त पवित्र नदियों एवं धर्म स्थलों के दर्शन करने का भी विधान है. आंवला नवमी के दिन श्री विष्णु भगवान की कृपा प्राप्त होती है. गंगा स्नान करने से पापों का नाश होता है. आंवला नवमी के दिन गंगा स्नान करने पर सभी कष्ट दूर होते हैं ओर मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं.

आंवला नवमी पर करते हैं दीपदान

आंवला नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे दीपक जलाने कि प्रथा भी रही है. इसके अतिरिक्त घर पर, चोराहों पर नदियों एवं घाटों पर दीप जलाना अत्यंत ही शुभ होता है. आंवला नवमी के दिन किया गया दीपदान जीवन के पथ को प्रकाश से भर देता है. इस दीन दीपदान करने पर कार्यक्षेत्र में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं. सफलता की प्राप्ति होती है.

आंवला नवमी देती है रोग से मुक्ति

आंवला नवमी के दिन आंवला का पूजन और आंवला के वृक्ष के नीचे बैठ कर भोजन करने पर स्वास्थ्य को लाभ मिलता है. आंवला के पेड़ की छाया व्यक्ति पर पड़ने से शरीर को सुख मिलता है. आंवला का सेवन एक उत्तम औषधी के रुप में जाना जाता है. आयुर्वेद में भी आंवला के गुणों का बखान मिलता है. ऎसे में आंवला नवमी का दिन मुख्य रुप से आंवला के वृक्ष के प्र्ति हमारा धन्यवाद ही है, आंवला का उपयोग हमारे शरीर को रोगों से मुक्त कराने में अत्यंत ही लाभदायक होता है.

आंवला वृक्ष के नीचे भोजन का महत्व

आंवला नवमी के दिन एक बात बहूत महत्वपुर्ण और प्रभावशाली बताई गई है. मान्यता है की इस नवमी के दिन आंवला पेड़ के नीचे बैठकर खाना जरुर खाना चाहिए. आंवला के वृक्ष बैठ कर खाना खाने से अमृत की प्राप्ति जैसा सुख मिलता है. इस समय के दौरान भोजन के पौष्टिक गुण बढ़ जाते हैं.

आंवला को अक्षय फल देने वाला माना गया है. आंवला का उपयोग स्वास्थ्य के साथ-साथ बौद्धिकता के लिए भी अत्यंत ही शुभ माना गया है. भोजन बनाकर खाने का विशेष महत्व है अगर आंवला वृक्ष के नीचे भोजन करना संभव न हो पाए तो आंवला का दान अवश्य करना चाहिए.

आंवला नवमी महत्व

कार्तिक शुक्ल पक्ष की आंवला नवमी का धार्मिक महत्व बहुत माना गया है. आंवला नवमी की तिथि को पवित्र तिथि माना गया है. इस दिन किया गया गौ, स्वर्ण तथा वस्त्र का दान अमोघ फलदायक होता है. चरक संहिता में इसके महत्व को व्यक्त किया गया है. जिसके अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन ही महर्षि च्यवन को आंवला के सेवन से युवा होने का वरदान प्राप्त हुआ था.

आंवला नवमी का पूजन करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है. इस दिन संतान कि प्राप्ति के लिए व्रत भी किया जाता है. संतान सुख के साथ ही लक्ष्मी प्राप्ति का आशीर्वाद भी मिलता है. इस दिन मिलने वाले पुण्यों का प्रभाव कभी समाप्त नही होता है.