हल षष्ठी 2024 - संतान की दीर्घायु के लिए किया जाता है हल छठ

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को “हल षष्ठी” के रुप में मनाया जाता है. हल षष्ठी के दिन व्रत करने का विधान भी रहता है. इस अवसर पर षष्ठी देवी की पूजा, बलराम जी, कृष्ण जी की पूजा, सूर्य उपासना करना अत्यंत शुभदायक होता है. स्त्रियां इस मौके पर श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना करती है. अपने परिवार के सुख समृद्धि के लिए इस व्रत को भी किया जाता है. अनुष्ठान किया जाता है, मंदिरों में हवन इत्यादि किए जाते हैं. धूम धाम के साथ हल षष्ठी व्रत मनाया जाता है. इस व्रत को पुत्रवती स्त्रियां मुख्य रुप से करती हैं. इसके साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को करना अत्यंत ही शुभदायक होता है.

हल षष्ठी के अन्य नाम

हल षष्ठी उत्सव को अलग-अलग स्थानों में कई अन्य नामों से भी जाता है. इस पर्व को राजस्थान, उत्तर भारत के अनेक क्षेत्रों में उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस व्रत को बलराम जयन्ती, ललही छठ, बलदेव छठ, रंधन छठ, हलछठ, हरछठ व्रत, हल छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ जैसे नामों से भी जाना जाता है.

बलराम जी श्री कृष्ण के बड़े भाई थे जो रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे. बलराम जी को नागराज अनंत का अंश भी कहा जाता है और इनके पराक्रम की अनेक कथाएं हमें शास्त्रों में प्राप्त होती हैं. बलराम जी गदायुद्ध में विशेष प्रवीण थे.

हल षष्ठी के दिन हुआ बलराम का जन्म

धर्म शास्त्रों में भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई थे बलराम जिन्हें बलभद्र नाम से भी पुकारा गया है. इन्हें शेषनाग के अवतार रुप में भी जाना गया है. बलराम का जन्म यदूकुल में हुआ था.

कंस ने जब अपनी बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वासुदेव से कराया तब आकाशवाणी हुई कि उसकी बहन का आठवीं संतान ही कंस की मृत्यु का कारण होगी. यह सुन कंस ने अपनी बहन देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया और उसके छह पुत्रों को एक-एक करके जन्म समय ही मार दिया.

सातवें पुत्र के रूप में शेषनाग के अवतार बलराम जी होते हैं, जिसे योग माया द्वारा रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया जाता है और भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन इनका जन्म होता है.

हल षष्ठी कृषक दिवस

हल षष्ठी के दिन पृथ्वी का पूजन होता है. कृषक लोग भी इस दिन अपनी उन वस्तुओं का पूजन करते हैं जो उनके खेती कार्य के लिए उपयोग में लाई जाती हैं. कृषी के मुख्य साधन “हल” की पूजा भी इस दिन विशेष रुप से होती है. इस षष्ठी को हल षष्ठी के नाम से भी पुकारा जाता है. बलराम का अस्त्र हल था इस कारण यह इस पर्व को हल षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है.

हल षष्ठी पूजा विधि

हल षष्ठी के दिन प्रात:काल उठ कर स्नान करने के पश्चात सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. व्रत के लिए अनुष्ठान शुरू कर दिया जाता है. हवन इत्यादि भी किया जाता है. षष्ठी पूजन में सुहाग की सामग्री, वस्त्र, धूप दीप, फल फूल इत्यादि को उपयोग में लाया जाता है. बलभद्र और श्री कृष्ण का पूजन होता है. भगवान सूर्य की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन को किया गया व्रत व पूजा द्वारा परिवार में समृद्धि और सुख का आगमन होता है.

हल षष्ठी से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें

इस दिन हल के पूजन का विशेष महत्व है. देश के पूर्वी अंचल में इसे ललई छठ के नाम से भी पुकारते हैं. इस दिन हल द्वारा जुते हए फल और अन्न का पूजन होता है. इस दिन भैंस का दूध-दही ही उपयोग में लाया जाता है. गाय का दूध उपयोग नहीं किया जाता है.

हल षष्ठी कथा

हल षष्ठी के दिन व्रत करने के साथ-साथ हल षष्ठी कथा को पढ़ने और सुनने से व्रत का शुभ फल प्राप्त होता है. हल षष्ठी कथा इस प्र्कार है - प्राचीन समय की बत है एक नगर में एक ग्वालन रहती थी वह घर-घर दूध-दही बेचकर अपना घर चलाती थी. ग्वालन अपने पति के सथ सुख पूर्वक रह रही होती है. अपने पति के साथ सांसारिक सुख भोगते हुए गर्भवती होती है और गर्भवती ग्वालिन के प्रसव का समय जब नजदीक आता है तो उसे पीड़ा होने लगी.

पर उस दिन घर पर पड़ा दूध और दही अभी बेचा नही किया था. ऎसे में वह दूध- दही बेचने के लिए बर्तन उठा कर निकल पड़ती है. पर पिड़ा इतनी बढ़ जाती है की उसे मार्ग में ही खेत में संतान को जन्म देती है. अपनी संतान को कपड़े में लपेट कर वह वहीं रख देती है और सामान बेचने के लिए आगे निकल पड़ती हैं.

उस दिन हल षष्ठी होती है. उस ग्वालन के पास गाय और भैंस का दूध होता है. जब उसके ग्राहक उससे कहते हैं की आज हल षष्ठी है और इसलिए गाय का दूध नहीं ले सकते हैं वह आज सिर्फ भैंस का ही दूध लेंगे, तो ग्वालन ने ग्राहकों को झूठ बोल कर की उसका दूध भैंस का ही है सभी को दूध बेच दिया.

सामान बेच कर ग्वालिन अपने बच्चे के पास खेत की ओर लौटने लगती है. पर जहां उसने बच्चे को रखा था उस स्थान पर किसान हल जोत रहा होता है. तभी हल की नोक बच्चे पर लगने से बच्चे की मृत्यु हो जाती है. ग्वालिन जब वहां पहुंच अपने मृत बच्चे को पाती है तो विलाप करने लगती है और कहती है कि आखिर उसने ऎसा कौन सा पाप किया जिसके कारण उसके साथ ऎसा हुआ.

तभी अचानक उसे याद आता है की उसने आज झूठ बोल कर गाय के दूध को भैंस का दूध बता कर लोगों को बेच दिया और उनके धर्म को खराब किया. उनके विश्वास के साथ खिलवाड़ किया. ग्वालिन तुरंत उठ कर उन सभी लोगों के पास जाती है जिनको उसने दूध बेचा होता है. वह सभी से माफी मांगती है और उन्हें सच बता देती है. इसके बाद वह खेत में पहुंची तो उसका बच्चा उसे जीवित मिलता है. भगवान का धन्यवाद करती है. तब से ग्वालिन भी प्रति वर्ष हल षष्ठी का व्रत करने का प्रण लेती है और अपने परिवार के साथ सुख पूर्वक रहती है.