छिन्नमस्तिका मेला 2024 - दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ मेला

देवी की शक्तियों में से एक मां छिन्नमस्तिका का स्वरुप अत्यंत ही प्रभावशाली है. छिन्नमस्तिका को चिन्तपूर्णि माता के नाम से भी जाना जाता है. देवी के सभी रुपों का संबंध विभिन्न शक्ति पीठों से रहा है. भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में देवी के शक्ति पीठ मौजूद हैं. चिंतपूर्णी धाम हिमाचल मे स्थित है यह स्थान हिंदुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है जहां प्रतिवर्ष धार्मिक मेलों का आयोजन होता है.

छिन्नमस्तिका धाम में गिरे थे सती के चरण

51 शक्ति पीठों मे से एक इस धाम कि मान्यता है की इस स्थान पर देवी सती के चरण गिर थे. इस स्थान पर जाने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. देवी छिन्नमस्तिका॒ छठी महाविद्या॒ कहलाती हैं. नवरात्रि समय एवं छिन्नमस्तिका जयंती समय देवी के इस शक्तिपीठ पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें देश-विदेश से लाखों शृद्धालु देवी के दर्शन हेतु इस पवित्र स्थान पर आते हैं.

हिमाचल में मौजूद इस शक्तिपिठ पर छिन्नमस्तिका मेले का आयोजन होता है. इसमें भजन, जागरण, कीर्तन झांकियां मुख्य रुप से होती हैं. धूमधाम के साथ मनाए जाने वाले इस मेले में भक्त देवी की विशेष पूजा अर्चना करते हैं. छिन्नमस्तिका मेले में मंदिर को रंग-बिरंगी॒ रोशनियों और फूलों से सजाया जाता है. मंदिर में मंत्रोच्चारण के साथ पाठ का आयोजन किया जाता है. मेले में लाखों श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं.

छिन्नमस्तिका क्यों कहलाती हैं माता चिंतपूर्णी

छिन्नमस्तिका देवी को मां चिंतपूर्णी स्वरुप बताया गया है अर्थात माता का चिंतन करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं चिंताओं का नाश होता है. मान्यता है की देवी का निवास जिस स्थान पर होता है वहीं पर भगवान शिव भी विराजमान होते हैं. इस मान्यता की पुष्टि मेले वाले स्थान पर भगवान शिव का भी स्थान होने से भी होती है. इस बात की सत्यता इस जगह से साबित हो जाती है. देवी के इस स्थान के चारों ओर भगवान शिव का स्थान भी है. यहां पर कालेश्वर महादेव व मुच्कुंड महादेव तथा शिववाड़ी जैसे शिव मंदिर स्थित हैं.

छिन्नमस्ता कथा

दैत्यों को परास्त करके देवों को विजय दिलवाई तो चारों ओर उनका जय घोष होने लगा. परंतु देवी की सहायक योगिनिय अजया और विजया की रक्त की प्यास शांत नही हो पाती हैं. वह देवी के समक्ष अपनी शांति हेतु प्रार्थना करती हैं. इस पर उनकी रक्त की प्यास को बुझाने के लिए माता अपना मस्तक काट देती हैं. तब माता के कटे हुए मस्तक से रक्त की धाराएं निकल पड़ती हैं. इन रकत से उनकी योगिनियों की प्यास शांत होती है. वह माता का रक्त पीने लगती हैं. ऎसे में माता छिन्नमस्तिका कहलाईं और अपने रक्त से उनकी रक्त प्यास बुझाई.

एक अन्य कथा स्वरुप इस प्रकार है - देवी भवानी अपनी दो सहचरियों के संग मन्दाकिनी नदी में स्नान रही थी. स्नान करने पर दोनों सहचरियों को बहुत तेज भूख लगी. भूख कि पीडा से उनका रंग काला हो गया. तब सहचरियों ने भोजन के लिये भवानी से कुछ मांगा. भवानी के कुछ देर प्रतिक्षा करने के लिये उनसे कहा, किन्तु वह बार-बार भोजन के लिए हठ करने लगी.

उनके वचन सुनते ही भवानी ने अपनी तलवार से सिर काट दिया. कटा हुआ सिर उनके बायें हाथ में आ गिरा और तीन रक्तधाराएं बह निकली. दो धाराओं को उन्होंने सहचरियों की और प्रवाहित कर दिया. जिन्हें पान कर दोनों की भूख शांत हो गई. तीसरी धारा जो ऊपर की ओर बह रही होती हैं जिसे माता छिन्नमस्तिका स्वयं पान करने लगती हैं.

छिन्नमस्तिका मेला महत्व

मेला छिन्नमस्तिका का एक अपना धार्मिक महत्व रहा है. यह सभी भक्तों के लिए अत्यंत ही उत्साह और साधना का दिन होता है. माता की शक्ति को पाने एवं उनके आशीर्वाद को पाने के लिए मेले के आरंभ होने से कुछ दिन पहले से ही जोर-शोर से तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं. माता के दरबार को बहुत ही सुंदर तरह से सजाया जाता है. इस मेले के दौरान माता के शक्ति पाठ का आयोजन भी होता है. दुर्गा सप्तशती के पाठ का आरंभ किया जाता है. इसमें साधु साधक एवं आम व्यक्ति सहित सभी भक्त भाग लेते हैं. इस मेले में श्रद्धालुओं को खाना लंगर रुप में परोसा जाता है इस भोग में माता की पसंद की अनेकों चीजें बनाई जाती हैं.

देवी छिन्नमस्तिका मेले में जो भी सच्चे मन से आता है उसकी हर मुराद पूरी होती है. मां का आशीर्वाद सभी पर इसी तरह बना रहे इसके लिए मां के दरबार में विश्व शांति व कल्याण के लिए मां की स्तुति का पाठ भी किया जाता है. मेले में मंदिर की ओर से श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए व्यापक प्रबंध किए जाते हैं. इस मौके पर हजारों श्रद्धालुओं मां की पावन पिंडी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं.

छिन्नमस्तिका स्वरुप

पौराणिक कथाओं में छिन्नमस्तिका से संबंधित अनेकों कथाएं प्राप्त होती हैं. जिसमें से एक कथा हयग्रीव उपाख्यान से ली गई है. इसमें बताया गया है की गणपति जी के वाहन मुषक यानि चूहे की कृपा से धनुष प्रत्यंचा को तोड़ दिया गया. इसकी आवाज और टूटने के कारण से सोते हुए विष्णु के सिर के कट जाने का वर्णन इस कथा में मिलता है. इस घटना को छिन्नमस्तिका से संबंधित माना गया है.

शक्ति का यह रुप एक हाथ में तलवार धारण किए और दूसरे हाथ में मस्तक धारण पकड़े हुए हैं. अपने कटे हुए सिर से निकलती रक्त की जो धाराएं निकलती हैं, उनमें से एक को स्वयं पीती हैं और अन्य दो धाराओं से वर्णिनी और शाकिनी नाम की दो सहेलियों को तृप्त कर रही होती हैं.

देवी को जिस भाव से याद किया जाए वह उसी रुप में प्राप्त होती हैं. साधक माता को शक्ति के उग्र रुप में भी पा सकता है और शांति रुप में भी प्राप्त कर सकता है.

देवी छिन्नमस्तिका साधना लाभ

इस मेले में देवी के अनेकों भक्ति शक्ति और साधना में लगे रहते हैं. नवरात्रि एवं छिन्नमस्तिका जयंती के दौरान इन मेलों में देवी की शक्ति का बहुत ही असरदायक प्रभाव देखने को मिलता है. इस मेलों में देवी की पूजा मन से करने, ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान इत्यादि कर देवी की प्रतिमा के समक्ष लाल फूलों की माला चढ़ानी चाहिए. माता के समक्ष साधना एवं पूजन कार्य करने चाहिए. मातअ को प्रसाद भेंट करना चाहिए. माता अपने हर भक्त की रक्षा के लिए सदैव उपस्थित हैं.