साल 2024 में इस तारीख को पड़ रही है सोमवती अमावस्या

सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या तिथि सोमवती अमावस्या कहलाती है. इस तिथि में सोमवार का दिन और अमावस्या तिथि का संयोग होने के कारण यह दिन एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण दिन बनता है. इस समय पर उपवास और पूजा नियम को करने से नकारात्मकता दूर होती है और जीवन में सकारात्मकता आती है.

08 अप्रैल, 2024, सोमवार
02 सितम्बर, 2024, सोमवार
30 दिसम्बर, 2024, सोमवार

सोमवती अमावस्या में करें ये काम

  • सोमवती अमावस्या के दिन भगवान शिव का पूजन अवश्य करना चाहिए.
  • शिवलिंग पर कच्चे दूध-गंगाजल से अभिषेक करना चाहिए.
  • सोमवती अमावस्या के दिन उगते सूर्य को जल से अर्घ्य प्रदान करना चाहिये.
  • सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए.
  • पीपल के वृक्ष पर कच्चा दूध चढ़ाना चाहिए और सफेद रंग का सूत लपेटना चाहिए.
  • पीपल पर दीपक जलाना चाहिए.
  • सोमवती अमावस्या के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये और सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा भी देनी चाहिए.
  • सोमवती अमावस्या के दिन किसी गरीब को खाने की वस्तुएं एवं वस्त्र इत्यादि देने चाहिए.
  • सोमवती अमावस्या के दिन तिलों का दान करना चाहिए.
  • शुद्ध एवं सात्विक रुप से दिन का पालन करना चाहिए.
  • ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.

सोमवती अमावस्या में क्या नहीं करें

  • सोमवती अमावस्या के दिन नमक के सेवन से बचना चाहिए.
  • इस दिन शराब का सेवन नहीं करना चाहिए.
  • सोमवती अमावस्या के अंडा- मांस का सेवन नही करना चाहिए.
  • इस दिन किसी भी प्रकार के अनैतिक कार्यों को नहीं करना चाहिये.
  • किसी की निंदा, झूठ बोलना चुगली करना इत्यादि नही करना चाहिए.
  • सोमवती अमावस्या के दिन रति संबंधों से दूर रहना चाहिए.

सोमवती अमावस्या पर शिव पूजा

सोमवार का दिन भगवान शिव के पूजन का विशेष समय होता है. इस दिन अमावस्या का दिन होने पर इस दिन शिवलिंग का अभिषेक होता है और शिव पुराण का पाठ होता है. प्रात:काल उठ कर शिवलिंग पर गंगाजल से अभिषेक किया जाता है. उसके पश्चात शिवलिंग पर पंचामृत एवं अन्य भिन्न भिन्न प्रकार की वस्तुओं को भगवान शिव पर अर्पित किया जाता है. शिवलिंग पूजन में श्वेत रंग के वस्त्र एवं सफेद रंग का सूत शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है. सोमवती अमावस्या पर शिव पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और जीवन में शुभता का आगमन होता है.

सोमवती अमावस्या पर करें पितृओं को याद

सोमवती अमावस्या के दिन एक महत्वपूर्ण परंपरा है लोगों का अपने पितरों के प्रति धन्यवाद एवं उनके प्रति सम्मान प्रकट करने का. धार्मिक कथाओं के अनुसार जब यह शरीर से प्राण निकलते हैं तब एक अलग यात्रा का आरंभ होता है. प्राण को एक अलग संसार की ओर राह दिखाई देता है. एक स्तर से दूसरे स्तर की ओर मार्गदर्शन निश्चित होता जाता है.

अपने सगे संबंधियों की मृत्यु के बाद उन उस यात्रा को सफल करने एवं उन्हें एक निश्चित मार्ग को दिखाने का कार्य हमारे द्वारा किए गए ये धार्मिक कृत्य होते हैं जिसे श्राद्ध कार्य के नाम से पुकारा जाता है. आत्माओं के प्रति कृतज्ञता पूर्वक याद करते हैं और उनके निमित्त अनेक प्रकार के धार्मिक कृत्य एवं दान इत्यादि कार्य किए जाते हैं.

इस कार्य में ब्राह्मणों को खाना खिलाया जाता है और उनसे पितृों की शांति के लिए पूजा करवाई जाती है. इसके अतिरिक्त गाय या कौवे को खाने की चीजें खिलाई जाती हैं. ऎसे में जिसको याद करके जब हम कुछ करते है तो उसका फल हमें मिलता है.

पितृओं की याद में भूखे लोगों को भोजन कराने से आशीर्वाद प्राप्त होता है. यदि किसी कारण से आप खाना अथवा पूजा पाठ जैसी चीजों को न भी कर पाएं लेकिन इस दिन यदि अपने पितृओं को श्रद्धा से याद करते उनके प्रति नमस्कार एवं प्रेम प्रकट करते हैं , गरीबों के प्रति दया भाव रखते हैं. जितना भी सामर्थ्य हो उस प्रकार जो भी शुद्ध चित मन से कार्य किया जाए उससे पितृ अवश्य प्रसन्न होते हैं.

सोमवती अमावस्या पर तर्पण का महत्व

सोमवती अमावस्या पर अपने पूर्वजों के निमित किया गया जल-तिल अथवा भोजन का अर्पण करना ही तर्पण होता है. तर्पण में अपने पूर्वजों को अर्थात पुरखों को याद किया जाता है. सोमवती अमावस्या के दिन दिवंगत आत्माओं का स्मरण करते हैं व उनकी शांति के लिए प्रार्थना एवं कामना की जाती है. तर्पण को सामान्य रुप से व्यक्ति अपने पितरों को याद करते हुए उनके लिए किए गए तर्पण कार्य को इस प्रकार भी कर सकता है - व्यक्ति अपने हाथ में अथवा किसी पात्र में तिल, अक्षत और जल लेकर पितरों को याद करते हुए तीन बार "पूर्वजों आप तृप्त हो जाएं, इन शब्दों को कहते हुए तिल, अक्षत व जल को छोड़ देना चाहिए.

सोमवती अमावस्या कथा

 

सोमवती अमावस्या कथा इस प्रकार है - प्राचीन काल में एक नगर में एक गरीब ब्रह्मण परिवार रहा करता था, उन ब्राह्मण की एक पुत्री भी थी . ब्राह्मण की पुत्री एक योग्य एवं बेहद ही संस्कारी कन्या थी. जब वह कन्या बड़ी हुई तो उसके पिता को उसके विवाह की चिंता सताने लगी. गरीब होने के कारण अपनी पुत्री के विवाह योग्य वर को प्राप्त नहीं कर पाते हैं. एक दिन ब्रह्मण के घर एक साधू महाराज आते हैं. ब्राह्मण कन्या उन साधू की बहुत सेवा भाव करती है. साधु उस कन्या के व्यवहार एवं आदर भाव से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद देते हैं. ब्राह्मण दंपत्ति अपनी कन्या के विवाह की बात साधु के सामने रखते हैं. साधु कन्या के हाथ को देखते हैं, किंतु उसके हाथ में विवाह रेखा ही नहीं होती है ऎसे में दंपति साधु से उसके लिए उपाय पुछते हैं.

साधु उन्हें बताते हैं की एक दूर गाँव में सोना नाम की एक स्त्री अपने बेटे-बहू के साथ रहती है, वह स्त्री बहुत ही पतिव्रता एवं धर्म परायण है. अगर आपकी लड़की उस स्त्री की सेवा करे और वह स्त्री यदि लड़की को सिंदूर दान करें तो लड़की का विवाह संभव हो सकता है. ब्राह्मण दंपति साधु के कहे अनुसार कन्या को उस धोबिन स्त्री के पास सेवा के लिए भेज देते हैं . ब्राह्मण कन्या, सोना धोबिन को साधु की बात बताती है और उसे उनके पास रहने देने को कहती है. स्त्री उस लड़की को अपने यहां रख लेती है. ब्राह्मण कन्या के सेवा भाव से प्रसन्न हो वह उसे सुहागन होने का आशिर्वाद देती हैं और सिंदूर भेंट करती है. इस प्रकार ब्राह्मण कन्या का विवाह संपन्न हो पाता है.