जानें, कब और क्‍यों मनाते हैं गुड़ी पड़वा

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाया जाता है. इस वर्ष 09 अप्रैल 2024 को मंगलवार के दिन गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाएगा. गुड़ी पड़वा को हिन्दू नव संवत्सर का आरंभ समय माना जाता है. सामान्य शब्दों में कहा जाए तो यह नए साल की शुरुआत होती है. जिस तरह अंग्रेजी कैलेंडर में जनवरी 1 से नया साल शुरु होता है, उसी तरह से हिन्दू पंचांग अनुसार यह गुड़ी पड़वा नए साल का आरंभ होता है. इसे अलग अलग नामों से जाना जाता है. उत्तर भारत में इस दिन से चैत्र नवरात्र आरंभ होते हैं. आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में इस दिन को युगादि, उगादि नाम से में मनाया जाता है.

महाराष्ट्र में यह दिन गुड़ी पड़वा कहलाता है. इस दिन घरों को इत्यादि की अच्छे से साफ-सफाई करके सजाया जाता है. रंगोली एवं तोरण से घरों को सजाया जाता है और विशेष पकवान बनाए जाते हैं. सभी लोग अपने ईष्ट देव का पूजन करते हैं. इस पर्व को बड़े ही उत्साह और विश्वास के साथ इस पर्व को मनाया जाता है.

गुड़ी पड़वा का धार्मिक और वैज्ञानिक मत

गुड़ी पड़वा का समय प्रकृति के बदलाव और नव चेतना के आगमन का समय होता है. इस समय पर प्रकृति में मौसम में बहुत से बदलाव देखने को मिलते हैं. इस समय के दौरन खान पान और हमारे रहन-सहन में भी बदलाव दिखाई देता है. अत: ये संक्रमण का समय भी होता है, जो बदलाव को भी दर्शाता है. इसलिए इस समय के दौरान साफ सफाई, आहार विचार सभी में एक सामंजस्यता का होना और जरुरी भी होता है.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि का निर्माण भी इसी समय के दौरान हुआ था. ब्रह्मा जी जिन्हें सृष्टि का निर्माता कहा गया है, उन्होंने इस दिन के समय पर सृष्टि की रचना आरंभ करी. इस लिए इस दिन के दौरन विशेष यज्ञ एवं धार्मिक अनुष्ठान भी किये जाते हैं. महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के दिन लोग घरों की छतों पर गुड़ी लगाते हैं.

गुड़ी का शाब्दिक अर्थ झंड़े या पताका से लिया जाता है. मान्यता है की गुड़ी इसे लगाने से परिवार के संकट दूर होते हैं और कार्यों में सफलता भी प्राप्त होती है, लगाने की परंपरा है.

गुड़ी पड़वा से जुड़ी कथा-

भारत में मनाए जाने वाले सभी उत्सव, व्रत त्यौहार इत्यादि का संबंध किसी न किसी रुप से जुड़ा देखा गया है. इन सभी पर्वों के साथ कोई न कोई महत्वपूर्ण तथ्य अवश्य होते हैं. यह सिर्फ धार्मिक रुप से ही नहीं बल्कि भौगोलिक रुप से व तर्क की कसौटी पर उतरने वाले होते हैं. इसी संदर्भ में गुड़ी पड़वा के साथ बहुत सी कथाओं को जोड़ा गया है. हर कहीं किसी न किसी रुप में इस दिन के साथ कोई न कोई महत्वपूर्ण बात देखने को मिलती है.

इस पर्व से संबंधित एक कथा इस प्रकार की रही है शालिवाहन नामक एक राजा हुए जिनके पिता का राज्य उनके सामंतों द्वारा छिन लिया गया. सामंतों ने उन के परिवार पर हमला बोल दिया और शालिवाहन को मारने का प्रयास किया. शालिवाहन अपने प्राणों की रक्षा हेतु वहां से भाग जाते हैं और भागते-भागते वे किसी जंगल में कुम्हार के घर पर आश्रय पाते हैं. कुम्हार ने उन्हें अपने घर रखा और उनका पालन किया.

कुम्हार के द्वारा लालन पालन होने के कारण उन्हें कुम्हार माना जाने लगा पर वह क्षत्रिय थे. कहा जाता है कि शालिवाहन को देवताओं से वरदान मिला था की वह किसी भी निर्जीव मूरत में प्राण डाल सकते थे. धीरे-धीरे समय बीतता गया और एक दिन जब शालिवाहन को अपने परिवार और राज्य का ज्ञान हुआ तो वह उसे प्राप्त करने के लिए सामंतों के साथ लड़ाई करने की तैयारी करते हैं.

शालिवाहन के पास युद्ध लड़ने के लिए न कोई सेना थी और न ही धन, तब उन्हें अपनी उस वरदान का बोध हुआ और उन्होंने मिट्टी की सेना बनाई जिसमें उन्होंने हाथी, घोड़े, सैनिक सभी हथियार बनाए. युद्ध समये आने पर शालीवाहन ने मिट्टी की सेना पर पानी के छीटें डालकर उन्हें जीवित कर दिया और युद्ध जीतकर अपना राज्य पुन: प्राप्त किया. इस के साथ ही शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन किया गया.

एक अन्य कथा अनुसार इस दिन भगवान राम ने बाली को मार कर सुग्रीव को उसका राज्य दिलवाया और वहां की प्रजा को बाली के अत्याचारों से मुक्त किया था. बाली के अत्याचारों से मुक्त होने पर वहां के लोगों ने उत्सव मनाया और अपने घरों पर ध्वजाएं(गुडी़) फहराई. इसी प्रसंग में आज भी लोग घर के आंगन व छतों पर गुड़ी लगाते हैं.

गुड़ी पड़वा पूजा

गुड़ी पड़वा के कुछ दिन पहले से ही लोग तैयारियां शुरु कर देते हैं. लोग घर की साफ सफाई में लग जाते हैं. घरों को अनेकों सुंदर चीजों से सजाया जाता है. ब्रह्मा जी का पूजन किया जाता है. गुड़ी पड़वा के दिन घर पर ध्वज लगाए जाते हैं. यह धवज हर काम में सफलता दिलाने का प्रतीक बनते हैं. घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक एवं मांगलिक चिन्ह बनाए या लगाए जाते हैं. लोग पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं. भगवान सूर्य देव की पूजा की जाती है. /p>

घर के मुख्य द्वार पर तोरण व आम के पत्तों से बनाया गया बंदवार बनाकार लगाया जाता है. इस दिन उबटन और तेल लगा कर स्नान करने की परंपरा रही है. इस दिन बनाए गए भोजन का सेवन करने से शरीर को लाभ मिलता है.

गुड़ी पड़वा के दिन का महत्व

गुड़ी पड़वा का दिन भारत के अलग-अलग स्थानों पर, जाकर अपने एक अलग रुप में दिखाई देता है. इन सभी में एक बात मुख्य या कहें समान ही होती है कि इस दिन को नवीनता के आरंभ के रुप में ही देखा जाता है. कथा कहानियां, लोक परंपराओं या फिर प्रमाणिकता के आधार पर ही इसे देखें तो भी इस सभी विचारों का ताना-बाना आपसे में बंधा हुआ है.

इस बंधन का मूल अर्थ है इसकी जीवन के प्रति नवीनता और चेतना का आगमन. गुड़ी पड़वा के दिन से ही दुर्गा पूजा का आरंभ होना और हिन्दू पंचांग काल गणना का आरंभ होना. यह बातें बताती हैं कि प्रकृति और काल का स्वरुप एक दूसरे से जुड़ा हुआ है.

  • गुड़ी पड़वा ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि का निर्माण हुआ.
  • गुड़ी पड़वा के दिन ही श्रीराम का राज्‍याभिषेक किया गया था.
  • गुड़ी पड़वा के दिन चैत्र नवरात्र व्रत का आरंभ होता है.
  • गुड़ी पड़वा समय ही विक्रमादित्‍य द्वारा विक्रमी संवत का आरंभ हुआ था.
  • गुड़ी पड़वा के दिन ही शालिवाहन शक संवत जो भारत सरकार का राष्‍ट्रीय पंचांग भी है का आरंभ हुआ.