दुर्गा विसर्जन : दुर्गा पूजा से लेकर विदाई तक का समय
दुर्गा विसर्जन नवरात्रि के अंतिम दिन का प्रतीक है जिसे भक्त उत्साह के साथ मनाते हैं. देश भर के अलग अलग हिस्सों में इसे मनाते हुए देख अजा सकता है. अलग अलग स्थानों में अलग अलग रंग रुप लिए ये दिन विशेष महत्व रखता है. नवरात्रिनौ दिनों का पर्व दुर्गा विसर्जन के साथ ही समाप्त होता है. दुर्गा विसर्जन के बाद ही कई लोग अपने नवरात्रि व्रत खोलते हैं और इसके बाद ही विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है. मान्यता है कि जहां एक ओर भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था, वहीं दूसरी ओर मां दुर्गा ने इसी दिन महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था अत: इन दो दिनों की विशेषता को अपने में समाए हुए यह दिन अपने आप में बहुत ही खास समय होता है.
दुर्गा विसर्जन और शुभ मुहूर्त
हमेशा ध्यान रखें कि दुर्गा विसर्जन कभी भी नवमी तिथि के दिन नहीं करना चाहिए. नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों को समर्पित होते हैं. दशमी के दिन लोग दुर्गा विसर्जन करते हैं, जिससे नवरात्रि में मां की पूजा संपुर्ण मानी जाती है. इसलिए मां दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन हमेशा दसवें दिन यानी दशहरे के दिन ही करना चाहिए.
दुर्गा विसर्जन सुबह या दोपहर में तब शुरू किया जाता है जब विजय दशमी तिथि शुरू होती है, इसलिए जितना संभव हो सके, मां दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन सुबह या दोपहर में ही करना शुभ माना जाता है. वैसे तो कई जगहों पर सुबह के समय ही मां दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन कर दिया जाता है, लेकिन अगर श्रवण नक्षत्र और दशमी तिथि दोपहर में एक साथ बन रही हो, तो यह समय मां दुर्गा की मूर्ति के विसर्जन के लिए सबसे अच्छा होता है.
दुर्गा विसर्जन विधि से जुड़ी खास बातें
दुर्गा विसर्जन का समय दशमी के दिन किया जाता है. दशमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करनी चाहिए और साफ कपड़े पहनने चाहिए, शुभ मुहूर्त में हाथ में फूल और कुछ चावल लेकर संकल्प लेना चाहिए. विसर्जन से पहले मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए और उनकी आरती करनी चाहिए. इसके बाद घाट यानी कलश पर रखे नारियल को घर में मौजूद सभी लोगों को प्रसाद के रूप में बांट्ना चाहिए और खुद भी ग्रहण करनी चाहिए. इसके बाद कलश के पवित्र जल को पूरे घर में छिड़कना चाहिए. घर के सभी सदस्यों को भी प्रसाद के रूप में ग्रहण करने के लिए देना चाहिए. इसके बाद आप कलश में रखे सिक्कों को अपनी धन रखने वाली जगह पर भी रख सकते हैं अथवा इसे जल में प्रवहित कर सकते हैं या किसी मंदिर में दान कर सकते हैं. इसके बाद पूजा स्थल पर रखी सुपारी को घर के लोगों में प्रसाद के रूप में बांटना चाहिए.
घर के मंदिर में मां की चौकी के सिंहासन को वापस उसके स्थान पर रख कर मां को अर्पित किए गए श्रृंगार का सामान, साड़ी और आभूषण किसी महिला को दे सकते हैं. इसके बाद भगवान गणेश की मूर्ति को वापस घर के मंदिर में स्थापित करनी चाहिए. प्रसाद के रूप में लोगों को मिठाई और भोग बांटें. इसके बाद चौकी पर रखे चावल और घट के ढक्कन को पक्षियों को खिला देने चाहिए इसके बाद मां दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति, कलश में बोए गए जौ और पूजन सामग्री को प्रणाम करनी चाहिए और भगवान से पूजा के दौरान अनजाने में हुई किसी भी गलती के लिए क्षमा मांगें और उन्हें अगले साल आने का निमंत्रण देना चाहिए और फिर सम्मानपूर्वक मां को नदी या तालाब में विसर्जित कर देना चाहिए.
दुर्गा विसर्जन के लिए मंत्र
रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे. पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे..
महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी. आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोस्तु ते..
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि. पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च..
दुर्गा विसर्जन से जुड़ी मान्यताएं
दुर्गा विसर्जन के दिन सालों से कई स्थानों पर परंपराएं निभाई जाती रही हैं. इन्हीं परंपराओं में से एक है सिंदूर खेला की परंपरा. इस परंपरा के तहत विवाहित महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर अपने पति की लंबी उम्र और मां दुर्गा की कृपा अपने जीवन पर बनी रहे, इसकी कामना करती हैं. इसके अलावा इस दिन महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर बधाई देती हैं और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं. बंगाली समाज में सिंदूर खेला की परंपरा सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. मान्यता है कि मां दुर्गा साल में एक बार अपने मायके आती हैं और दस दिनों तक यहीं रहती हैं और इसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है. ऐसे में सिंदूर खेला से जुड़ी मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि इस दिन इस परंपरा से प्रसन्न होकर मां उन्हें अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं और उनके लिए स्वर्ग का रास्ता भी खोलती हैं.
दुर्गा विसर्जन पौराणिक कथा
पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार जल को ब्रह्म माना गया है. जल को सृष्टि का आरंभ, मध्य और अंत भी माना जाता है. कहा जाता है कि यही कारण है कि त्रिदेव भी जल में निवास करते हैं, इसीलिए पूजा-पाठ में शुद्धिकरण के लिए भी जल का उपयोग किया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी-देवताओं की मूर्तियों को जल में विसर्जित करने के पीछे कारण यह है कि देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भले ही जल में विलीन हो जाती हैं, लेकिन उनकी आत्माएँ सीधे परम ब्रह्म में समा जाती हैं. इसी महत्व और मान्यता के कारण दुर्गा विसर्जन में माँ दुर्गा की प्रतिमाओं को विसर्जित करते हैं.
दुर्गा विसर्जन के बाद विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है
दुर्गा मूर्ति के विसर्जन के बाद कई लोग अपना व्रत खोलते हैं. इसके बाद यानी दुर्गा विसर्जन के बाद दशहरा का पावन त्यौहार शुरू होता है, जिसे पूरे भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. कहा जाता है कि इसी दिन भगवान श्री राम ने अहंकारी रावण का वध किया था. साथ ही यह वही दिन है जिस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध भी किया था. विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है.
 
                 
                     
                                             
                                             
                                             
                                            