आध्यात्मिक चेतना से परब्रह्म ज्ञान | Knowledge of Param Brahma through spiritual consciousness

परब्रह्म सता को प्रदर्शित करता है शास्त्रों द्वारा उस अनंत, अव्यक्त तत्व को समझने का प्रयास किया गया है जिसे संन्यास धर्म का पालन करके प्राप्त किया जा सकता है. संन्यास के शुद्ध कर्मों द्वारा एवं योग साधना के मंत्रों अभिमंत्रित होकर ही उस परम तत्व के ज्ञान को जान सकते हैं केवल वाणी द्वारा ही हम इसे जान नहीं सकते. किंतु संन्यासी जो ब्रह्म को जानने कि जिज्ञासा को अपने भीतर लिए उसे पाने का संकल्प करते हुए मोक्ष के मार्ग में खुद को समर्पित करके ही परब्रह्म के सानिध्य को प्राप्त करने में सक्ष्म होता है.

ब्रह्म के विषय में मुख्य सिंद्धातों को बताया गया है उनकी शक्ति एवं उनकी सर्वव्याप्त सत्ता का उल्लेख किया गया है. परब्रह्म जो ब्रह्म से भी परे है समस्त सृष्टि ब्रह्म के अंतर्गत मानी गई है मन, विचार, ज्ञान  भाव ,वेद, शास्त्र मंत्र, आधुनिक विजान ज्योतिष आदि सभी कुछ इसी में समाहित हैं परब्रह्म के बारे में ज्ञान पाना एक असंभव सी बात है किसी भी माध्यम से इसकी परिभाषा नही हो सकती.

परब्रह्म गुणातीत, भावातीत, माया, प्रकृति और ब्रह्म से भी परे है, वह एक ही है अजन्मा, अव्यक्त, सनातन ज्ञानियों ने उसे ब्रह्म से भी परे एक सत्ता रूप में माना है जो शब्दों के द्वारा व्यक्त नही किया जा सकता. वेदों में उस परम तत्व की महिमा का विशद विवरण प्राप्त होता है उसे नेति नेति कह कर व्यक्त किया गया है जिसे वाणी द्वारा प्रकट नहीं किया जा सकता है. परब्रह्म ही समस्त जीव निर्जीव का अस्तित्व है यही एकमात्र परम कारण सर्वसमर्थ सर्वज्ञानी है.

वेदों में परब्रह्म की प्राप्ति का मार्ग दर्शाया गया है. ऋषियों के प्रश्न द्वारा परब्रह्म को जानने का प्रयास संभव हो पाया है इसमें ऋषियों के प्रश्नों के उत्तर स्वरूप परब्रह्म के विषय में बताने का प्रयास संभव हो पाया है.

ब्रह्म विद्या के ज्ञान को समझाने हेतु उस परम सत्ता का ज्ञान करना आवश्यक होता है जो सभी में व्याप्त है जिसके द्वारा सृष्टि का संचार संभव हो पाता है जो मुक्त प्रकाशवान चैतन्य एवं शाश्वत है.ब्रह्म एक सबसे उत्कृष्ट विद्या जिसे मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत करता हूँ. यह उत्कृष्ट ब्रह्म एक प्रकाश का क्षेत्र है जो सदैव फैलाता रहता है. वह राजाओं से परे जा रहा है गुणों मुक्त शुद्ध, अविनाशी और इंद्रियों की शक्ति को बनाए रखने वाला है .

वह आत्माओं के रूप में समूह का निर्माण करता है तथा उनकी दृष्टि को सीमित कर देता है जिससे व्यक्ति उसकी लीला को जान न पाए परब्रह्म स्वयं के शहर में अकेला है वह वहां रहकर कोई भी सांसारिक काम नहीं करता जैसे एक संन्यासी अपने को संसार की मोह माया से अलग रखता है.

संन्यासी का यह रूप ब्रह्म के साथ एकता का एहसास है. परब्रह्म एक कर्ता के रूप में कर्मों के फलों को देने वाला है वह एक किसान की तरह फल को काटने वाला है. वह बिना किसी से जुडे अपना कार्य करता जाता है जैसे एक संन्यासी बिना भेद भाव के एवं लगाव के अपने कार्य में रत रहता है उसी प्रकार परब्रह्म का रूप स्पष्ट होता है.

परब्रह्म की प्राप्ति हेतु संन्यास कर्म का विस्तृत विवेचन भी प्रस्तुत किया गया है. सृष्टि से पूर्व परम सत्ता अकेली थी उसने इच्छा स्वरूप सृष्टि का निर्माण किया. वही सत्य है वह सूक्ष्म रूप में सभी में विराजमान है उसे जानने के लिए योग साधना कि जाती है प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि द्वारा उस परब्रह्म को जाना जा सकता है.

संन्यास धर्म के पालन द्वारा परब्रह्म के समीप पहुँचा जा सकता है. सत्य का अनुसरण करके शुद्ध मन से आंतरिक शिखा और बाह्य यज्ञोपवीत द्वारा परब्रह्म को जाना जा सकता है संन्यासी इसी ब्रह्म स्वरूप यज्ञोपवीत को बाहरी एवं भीतर रूप में दोनों प्रकार परब्रह्म को जानने की जिज्ञास को धारण करके परमात्मा के साक्ष्य को प्राप्त कर सकता है.