दुर्गा पूजा, दुर्गा की शक्ति का आहवान

हिन्दुओं के प्रसिद्ध व्रत और त्यौहार में एक है दुर्गा पूजा का त्यौहार. दुर्गा पूजा का त्यौहार संपूर्ण भारत में श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है. दुर्गा पूजा एक ऎसी शक्ति कि अराधना और साधना का समय होता है, जो समस्त सृष्टि को संचालित और नवरुप दे पाने में सक्षम है. माँ दुर्गा सिर्फ एक शक्ति ही नहीं है अपितु वह वो सामंजय से है जो सृष्टि को आगे बढ़ाने का प्रमुख आधार स्तंभ बनता है.

दुर्गा पूजा कई तरह से मनाई जाती है. दुर्गा पूजा को मासिक दुर्गाष्टमी के रुप में भी मनाया जाता है. दुर्गा पूजा को वर्ष भर में आने वाली नवरात्री के अवसर पर भी की जाती है. इसके अतिरिक्त दुर्गा का पूजन विभिन्न अवतारों के रुप में, शक्ति पीठ और महासिद्धि रुप में भी होता है.

दुर्गा पूजन क्यों किया जाता है

देवी-देवताओं की शक्ति में से एक शक्ति दुर्गा है. वेदों में भी शक्ति के स्वरुप का वर्णन प्राप्त होता है. प्रकृति रुप में विराजमान शक्ति सृष्टि के समस्त रंग को दर्शाने वाली होती है. दुर्गा पूजा का उत्सव भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग अलग रुप से मनाया जाता रहा है. बहुत पुराने समय से चली आ रही यह पूजा आज भी अपने भव्य रुप में मौजूद है. बंगाल की दुर्गा पूजा तो विश्व भर में प्रसिद्ध है.

दुर्गा पूजा के दिन से नौ दिनों तक मां दूर्गा के नौ रूपों की पूजा कि जाती है. यह उत्सव बड़े ही जोरों शोरों से मनाया जाता है. इस समय जगह- जगह पंडाल सजाकर मां की प्रतिमा स्थापित की जाती है. यज्ञ और हवन किए जाते हैं. लोग दुर्गा पूजा पर व्रत रखते हैं. देवी दुर्गा से अपने मंगल की कामना करते हैं.

दूर्गा पूजा के दिन को शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ किया जाता है. इस दिनों में महा सप्तमी, महा अष्टमी, महा नवमी और दशमी का स्वरुप बहुत ही भव्य होता है. पारम्परिक हिन्दू पंचांग के अनुसार दुर्गा पूजन के लिए घट स्थापना का मुहूर्त निर्धारित किया जाता है. इस पर्व से सम्बंधित समय को देवी पक्ष के नाम से भी पुकारा जाता है. दुर्गा पूजा का पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक रुप में भी मनाया जाता है. इस से संबंधित अनेकों कथाएं प्राप्त होती हैं जिसमें संबसे महत्वपूर्ण कथा देवी दुर्गा के राक्षस महिषासुर पर विजय के रूप में प्रस्तुत है.

दुर्गा पूजा के विभिन्न रुप

दुर्गा पूजा एक विशेष अनुष्ठान होता है. इस पर्व के समय के दौरान विशेष नियमों का पालन किया जाता है. पूजा में जितनी एकाग्रता एवं ध्यान की आवश्यकता बरती जाती है, साधना उतनी ही फलीभूत होती है. दुर्गा पूजा का उत्सव बिहार, असम, ओडिशा, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल इत्यादि में व्यापक रूप से मनाया जाता है. यहां इस समय विशेष भव्य आयोजन किए जाते हैं. यह वर्ष के सबसे महत्वपूर्ण एवं विशेष उत्सव के रुप में माना जाता है. यह न केवल सबसे बड़ा हिन्दू उत्सव है बल्कि सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण समय भी होता है.

दुर्गा पूजा विधि

  • दुर्गा पूजा के दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को शूबह जल्दी उठकर नहाधोकर साफ वस्त्र धारण करने चाहिए.
  • पूजा स्थान पर एक चौकी को गंगा जल से शुद्ध करके उस पर लाल वस्त्र को बिछाना चाहिए.
  • जल से भरा एक कलश चौकी के साथ स्थापित करना चाहिए. कलश पर आम के पत्ते बांधने चाहिए.
  • कलश पर नारियल रखना चाहिए.
  • सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन करना चाहिए.
  • देवी दुर्गा को कुमकुम, रोली, अक्षत से माता को तिलक लगाना चाहिए.
  • इसके बाद कलश का भी इसी तरह तिलक करके पूजन करना चाहिए.
  • हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर मां का ध्यान करते दुर्गा के मंत्रों का जाप करें. इसके बाद अक्षत और पुष्प को मां को अर्पित करना चाहिए.
  • देवी मां को फल-मेवे इत्यादि का भोग लगाना चाहिए. प्रसाद चढ़ाने के बाद सभी के बीच प्रसाद का वितरण करना चाहिए. अंत में मां से पूजा में जाने अनजाने हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा मांगनी चाहिए.
  • दुर्गा पूजा महत्व

    दुर्गा पूजा का महत्व संपूर्ण स्थानों पर ही रहा है. चारों दिशाओं में माता का तेज व्याप्त है. जिस प्रकार देवी दुर्गा ने दुष्ट महिषासुर का नाश करके धर्म को स्थापित किया. उसी प्रकार हम सभी इस दिन दुर्गा पूजन करके अपनी बुराईयों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं. यह समय विशेष प्रकार के आनंद की प्राप्ति का होता है. जीवन में उत्साह एवं नव ऊर्जा का संचार भी होता है. दुर्गापूजा भी एक ऐसा ही त्योहार है, जो जीवन में ऊर्जा का संचार करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

    दुर्गा पूजा की तैयारियां पहले ही शुरू कर दी जाती हैं. देवी दूर्गा का भव्य श्रृंगार किया जाता है. जगह -जगह मां दुर्गा की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं. पंडालों को सजाया जाता है. दुर्गा पूजा में तरह -तरह के कार्यक्रमों का आयोजन होता है. नवरात्रि के समय नौ दिनों तक मां दूर्गा की विधि -विधान से पूजा करते हैं. दुर्गा पूजा के समय लोग मां दूर्गा की विशेष पूजा करते हैं.

    इन दिनों में मां के मंत्रों का जाप-हवन, और यज्ञ किया जाता है. यह समय सिद्धि प्राप्त करने के लिए भी विशेष माना गया है. मां की विशेष पूजा के लिए मंदिरों को सजाया जाता है. मंदिरों में मां के दर्शन हेतु भारी भीड़ उमड़ती है. साधक अपने परिवार की खुशहाली और समृद्धि के लिए मां कि आराधना करते हैं. दूर्गा पूजा के दिन कन्याओं का पूजन किया जाता है. कन्या पूजन द्वारा माँ का आर्शीवाद प्राप्त किया जाता है.