पौष पूर्णिमा 2024, पौष पूर्णिमा में जानें स्नान, दान का महत्व

पौष मास की पूर्णिमा को "पौष पूर्णिमा" का पर्व मनाया जाता है. पौष मास की पूर्णिमा को हिंदू पंचांग अनुसार बहुत ही शुभ माना गया है. इस पूर्णिमा के दिन श्री विष्णु पूजन होता है. भगवान सत्यनारायण कथा का पाठ होता है. पौष माह की पूर्णिमा मोक्ष प्रदान करने वाली होती है. इस दिन किया गया दान और पुण्य उत्तम लोक की कामना रखने वालों के लिए खास होता है. पौष पूर्णिमा के दिन किया गया गंगा स्नान पुण्य प्राप्ति कराता है. कष्टों का नाश होता है. इस तिथि को सूर्य और चंद्रमा का पूजन करना चाहिए. पूजा द्वारा मनोकामनाएं पूर्ण होती है. जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं.

पौष पूर्णिमा पूजा मुहूर्त

  • पूर्णिमा आरंभ – 24 जनवरी, 2024 को 20:11 से.
  • पूर्णिमा समाप्त – 25 जनवरी, 2023 को 17:07 तक.

पौष पूर्णिमा विधि-विधान

पौष पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण जी कि कथा की जाती है. भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है. सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है. इस दिन पूजा के लिए आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इस का भोग लगता है. सत्य-नारायण की कथा के बाद उनका पूजन होता है, इसके बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती कि जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद बांटा जाता है.

पौष पूर्णिमा कथा

पौष पूर्णिमा कथा इस प्रकार है - प्राचीन काल में कातिका नामक एक नगरी थी. उस नगर का राजा चन्द्रहास था. वह नगरी सभी प्रकार के सुखों से परिपूर्ण थी. उस नगर में एक धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण रहा करता था. ब्राह्मण की पत्नी भी धर्म कर्म में निपुण थी. दोनों पति पत्नी सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं, पर उन दोनो को एक ही दुख था की उनके कोई संतान नही थी.

उस नगर में एक बार एक महान योगी आते हैं. वह योगी घरों से भोजन प्राप्त करके अपना जीवन यापन करते हैं. योगी हर घर से भिक्षा लेते थे लेकिन उस ब्राह्मण दंपति के घर से कुछ भी नही लेते थे. ब्राह्मण दंपति को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने योगी जी से अपने घर से कुछ न लेने के बारे में पूछा. तो योगी उसे बताते हैं की तुम्हारे कोई संतान नहीं है. ऎसे में हम योगी उस व्यक्ति से कुछ नही लेते हैं जिनके संतान न हो. क्योंकि संतान हीन से कुछ भी लेना पाप योग्य होता है. अतः पतित हो जाने के भय के कारण ही तुम्हारे घर की भिक्षा नहीं लेते हैं.

ब्राह्मण ने जब यह बात सुनी तो वह उन योगी के चरणों में गिरकर संतान प्राप्ति का सुख पाने की मंशा व्यक्त की. यह सुनकर योगी उसे देवी चण्डी की आराधना करने को कहते हैं. अपने स्त्री को सारी बात बता कर वह ब्राह्मण साधना के लिए वन की ओर चल पड़ता है. चण्डी की उपासना की के सोलहवें दिन उन्हें सपने में माता ने दर्शन दिया. उसे संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं पर साथ ही यह भी कहती हैं कि बच्चा केवल सोलह वर्ष तक ही जीवित रह पाएगा.

ब्राह्मण देवी से अपने पुत्र की लम्बी आयु के लिए प्रार्थना करता है. तब देवी उन्हें कहती है. यदि तुम दोनों पति-पत्नी बत्तीस पूर्णमासियों का व्रत करते हो तो तुम लोगों को संतान की दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है.

इस प्रकार धनेश्वर और उसकी पत्नी ने बत्तीस पौष पूर्णिमाओं का व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से उन्हें संतान का सुख प्राप्त हुआ और संतान को लम्बी आयु भी पाप्त हुई. जो भी स्त्री पुरुष इस व्रत को करते हैं उन्हें संतान का सुख और सौभाग्य की प्राप्त होती है. जो भी स्त्रियां इस व्रत को करती हैं, वे उन्हें वैधव्य का दुख नहीं झेलना पड़ता है. सदैव सौभाग्यवती होने का सुख पाती हैं.

पौष पूर्णिमा पर स्नान दान का महत्व

पौष पूर्णिमा के शुभ दिन से एक माह तक गंगा-यमुना स्नान का बहुत महत्व होता है. पौष पूर्णिमा पर चारों ओर वातावरण भक्तिमय होता है. श्रद्धालु व भक्त जन प्रात:काल ही नदी व तालाबों में स्नान करने पहुंच जाते हैं. श्रद्धालु स्नान करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं और अनेक प्रकार के धार्मिक कृत पूर्ण करते हैं इस पावन अवसर पर शिवलिंग को जलअर्पण किया जाता है तथा ध्यान साधना की जाती है. मंदिरों व अन्य स्थानों में धार्मिक आयोजन होते हैं. रामायण, भागवत प्रवचन, कथाओं व सतसंगो का आयोजन किया जाता है.

पौष पूर्णिमा के पावन पर्व पर गंगा समेत अनेक पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है. हरिद्वार समेत अनेक स्थानों पर लोग आस्था की डुबकी लगाते हैं और पापों से मुक्त होते हैं. पौष पूर्णिमा के स्नान पर पुण्य की कामना से स्नान का बहुत महत्व होता है. इस अवसर पर किए गए दान का अमोघ फल प्राप्त होता है. पौष पूर्णिमा के साथ ही माघ स्नान आरंभ हो जाता है. यह एक बहुत पवित्र अवसर माना जाता है, जो सभी संकटों को दूर करके मनोकामनाओं की पूर्ति करता है.

पौष पूर्णिमा महत्व

पौष पूर्णिमा का व्रत पुत्र-पौत्रों का सुख देने वाला होता है. सम्पूर्ण मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है. बत्तीस पूर्णिमाओं के व्रत करने से साधक की सभी कामनाएं और इच्छाएं पूर्ण होती हैं. भगवान शिव जी की कृपा से मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. पौष पूर्णिमा को अन्य की नामों से जाना जाता है. इसी के साथ इस पूर्णिमा के दिन को भारत के अनेकों क्षेत्रों में अलग-अलग रुप से मनाया भी जाता रहा है.

ग्रामीण लोग पौष पूर्णिमा के दिन को छेरता नामक पर्व के रुप में मनाते हैं. इस समय पर सभी लोग अपने घरों में अनेकों व्यंजन बनाते हैं. चावल का चिवड़ा गुड़ और तिल के बनें पकवान भोग स्वरुप भगवान को लहाए जाते हैं. यह प्रसाद रुप में सभी को दिया जाता है. पौष पूर्णिमा के दिन शाकंभरी जयन्ती भी मनाई जाती है. इस दिन को दुर्गा के अवतार रुप शाकम्भरी को पूजा जाता है. दुर्गा का यह अवतार पृथ्वी पर जीवन को पुन: आरंभ करने और संचालन के लिए होता है.