शीतला षष्ठी व्रत - जानें, क्या है शीतला षष्ठी की व्रत कथा

शीतला षष्ठी का व्रत षष्ठी तिथि के दिन किया जाता है. माता षष्ठी का पूजन संतान की कुशलता और दिर्घायु के लिए किया जाता है. इस व्रत का संपूर्ण भारत वर्ष में बहुत महत्व होता है. शीतला माता का पूजन करने से घर परिवार में सुख और शांति का वास होता है. देवी शीतल जीवन के ताप को नष्ट करती हैं और सुख शांति प्रदान करती हैं.

शीतला षष्ठी व्रत दिलाता है रोग से मुक्ति

शीतला षष्ठी का व्रत करने से विशेष रुप से रोगों से मुक्ति होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ये व्रत शरीर के कष्ट दूर करने वाला होता है. इस व्रत का प्रभाव संतान का सुख देने वाला होता है. दैहिक और दैविक ताप से मुक्ति मिलती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार यह व्रत पुत्र प्रदान करने वाला और सौभाग्य देने वाला होता है. कहते हैं कि जो महिलाएं पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखती हैं उनके लिए ये व्रत उत्तम कहा गया है. साथ ही इस व्रत को करने से मन शीतल रहता है। इसके अलावा चेचक से भी मुक्ति मिलती है.

शीतला षष्ठी व्रत नियम

शीतला माता के व्रत में नियम और विधान का विशेष रुप से पालन किए जाने कि सलाह दी जाती है. इनके व्रत में सात्विकता और शुचिता का ख्याल रखना चाहिए. इस व्रत के प्रभाव से दीर्घायु की प्राप्ति होती है. नि:संतानों को संतान की प्राप्ति होती है. वंश वृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है. विवाहित ओर पुत्रवती स्त्रीयां विशेष रुप से इस व्रत को रखती हैं. शीतला षष्ठी माता अपने नाम के जैसी ही शीतल भी हैं.

शीतला षष्ठी में शीतला माता के निमित्त किए जाने वाले कार्यों में किसी भी प्रकार की गर्म वस्तु का उपयोग नहीं किया जाता है. चाहे उसमें खाना हो, नहाना हो या अन्य बातें. इस दिन चूल्हे का पूजन किया जाता है, इसलिए चूल्हे को जलाया नहीं जाता है. पूजा के लिए सभी प्रकार की सामग्री प्रसाद को एक दिन पहले ही बना लिया जाता है. इस दिन जो इस व्रत को रखता है उसे नहाने के लिए गर्म पानी का उपयोग नहीं करना चाहिए. किसी भी प्र्कार के गर्म भोजन को करने से भी बचना चाहिए. इस दिन ठंडा खाना खाए जाने का विधान बताया गया है.

इस दिन व्रती को खाना एक दिन पहले ही बना कर रख लेना चाहिए. व्रत वाले दिन उसी बासी भोजन का सेवन करना चाहिए. इस दिन पर चूल्हा भी नहीं जलाया जाता है. इस व्रत को उतरी भारत में विशेष रुप से मनाए जाने की परंपरा रही है. कुछ जगहों में इस व्रत को बसौड़ा, बासियौरा इत्यादि नामों से भी जाना जाता है. देश में सभी वर्ग के लोग इस उत्सव को बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं. चाहे इस दिन व्रत रखा जाए या न रखा जाए लेकिन हर कोई इस का धार्मिक कार्य हो, बहुत ही श्रद्धा से मनाता है.

शीतला षष्ठी व्रत कथा

शीतला षष्ठी है, का पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि के दिन बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. छठी तिथि के दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और शीतला माता की पूजा की जाती है. यह व्रत करने के लिए देवी शीतला की प्र्तिमा और दीवार पर माता का चित्र भी अंकित किया जाता है. बच्चों की सुख- समृद्धि के लिए माताएं इस दिन शीतला माता को विधि विधान के साथ पूजती हैं.

इस दिन व्रत के साथ ही माता शीतला जी की कथा और आरती भी की जाती है. माता शीतला जी की कथा सुनने और पढ़ने से पाप नष्ट होते हैं. मानसिक शांति प्राप्त होती है. माता शीतला जी के साथ अनेक पौराणिक कथाएं और लोक कथाएं प्राप्त होती है. लोक जीवन से जुड़ा यह पर्व आज भी उसी उत्साह और विश्वास के साथ मनाया जाता है जिस विश्वास के साथ ये पहले मनाया जाता था.

शीतला षष्ठी कथा इस प्रकार है - एक बहुत पुराने समय की बात है. एक नगर में एक ब्राह्मण दंपति के सात बेटे हुआ करते थे. ब्राह्मण ने अपने सातों पुत्रों का विवाह बहुत धूम धाम से किया. कुछ समय बीत जाने के बाद भी बेटों के यहां कोई संतान पैदा नहीं हो पाई थी. एक दिन ब्राह्मण दंपति को किसी ने शीतला षष्ठी व्रत करने की सलाह दी. माता-पिता की आज्ञा से बेटों और बहुओं ने इस व्रत को किया. शीतला षष्ठी व्रत के प्रभाव से उन सभी को एक वर्ष के पश्चात संतान की प्राप्ति होती है.

इसके बाद, वह इस व्रत को प्रत्येक वर्ष करने लगने का प्रण लेते हैं. एक बार षष्ठी तिथि के व्रत में ब्राह्माणीसे व्रत के एक नियम की अनदेखी हो जाती है. ब्राह्मणी उस दिन गर्म जल से स्नान कर बैठती है. व्रत के दिन उसी रात को ब्राह्माणी सपने में देखती है की उसके परिवार को बहुत कष्ट हो रहा है. परिवार में जो संतानें पैदा हुई थीं वह मृत्यु को प्राप्त हो जाती हैं.

इस सपने के टूटने से अचानक ही उसकी नींद खुल जाती है. ब्राह्माणी ने देखा की उसके परिवार के सभी सदस्य मर चुके है, परिवार का ऎसा अंत देख ब्राह्मण स्त्री विलाप करने लगती है. आस-पास के लोग उसका विलाप सुन वहां आ जाते हैं. पड़ोसी उस स्त्री से कहते हैं यह अवश्य ही माता शीतला का प्रकोप है. तुम्हें माता शीतला से अपने पापों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए. यह सारी बातें सुन उस ब्राह्मणी को अपनी गलती याद आती है. वह ब्राह्माणी रोती हुई जंगल की ओर चल पड़ती है. उस अंधकार से भरे जंगल में उसे एक वृद्ध स्त्री आग से झुलसी हुई दिखाई पड़ती है.

ब्राह्मणी उसके पास जाकर उसकी इस स्थिति का कारण पूछती है. वृद्ध स्त्री उसे कहती है कि ये तुम्हारे कारण हुआ है. तुम ने व्रत के दिन गर्म पानी से स्नान किया और गर्म भोजन किया था. इस कारण मुझे ये कष्ट झेलना पड़ रहा है. यह सुनकर ब्राह्माणी अपने किए पर पश्चाताप करती हुई क्षमा मांगती है. अपने परिवार को जीवन दान देने की प्रार्थना करती है. तब वृद्धा स्त्री उसे कहते हैं. कि इस आग की जलन को शांत करने के लिए उस पर दही का लेप करे जिससे उसको शांति मिल पाए.

तब ब्राह्मणी उस वृद्धा स्त्री के शरीर पर दही का लेप लगाती है. वृद्धा स्त्री अपने रुप में आती है और शीतला माता का रुप धर लेती है. माता शीतला ब्राह्मणी को क्षमा कर देती हैं. उसका परिवार भी जीवित हो जाता है. शीतला माता के व्रत को पूरी निष्ठा और भावना से किया जाने से संतान को सुख प्राप्त होता है और लम्बी आयु का आशीर्वाद मिलता है.