भाद्रपद अमावस्या 2024, जानें कैसे मिलेगी पितृ दोष से मुक्ति

ज्योतिष शास्त्र में पंचाग गणना अनुसार माह की 30वीं तिथि को अमावस्या कहा जाता है. इस समय के दौरान चंद्रमा और सूर्य एक समान अंशों पर मौजूद होते हैं. इस तिथि के दौरान चंद्रमा के प्रकाश का पूर्ण रुप से लोप हो जाता है अर्थात पृथ्वी पर उसकी रोशनी नहीं पड़ पाती है. इस समय के दौरान रात्रिकाल में अंधेरा अधिक गहराने लगता है.

भाद्रपद अमावस्या समय इस वर्ष 03 सितंबर, 2024 को मंगलवार के दिन मनाई जाएगी.

भाद्रपद अमावस्या पर करें ग्रह शांति

भाद्रपद अमावस्या के दिन ग्रह शांति पूजा भी की जाती है. शनि-मंगल-राहु-केतु ग्रहों की शांति के लिए ये समय अत्यंत अनुकूल होता है. शनि दशा, साढ़ेसाती या शनि की ढ़ैय्या जैसे समय के दौरान अगर भाद्रपद अमावस्या में पूजा और व्रत रखा जाए तो यह शनि शांति के लिए बहुत उपयोगी होता है. अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में शनि दोष कि स्थिति अथवा दशा का प्रभाव हो तो भाद्रपद अमावस्या का दिन शनि शांति उपाय के लिए होता है.

जन्मकुंडली में पितृ दोष है होने पर विवाह में बाधा अथवा संतान में बाधा होती है इसलिए यदि पितृ दोष के कारण संतान सुख में बाधा आ रही हो तो कुशग्रहणी व्रत, पूजा-पाठ, दान करने से बाधाएं दूर होती हैं.

राहु या केतु ग्रह परेशान कर रहे हैं, उन्हें कुशग्रहणी अमावस्या पर पितरों को भोग द्वारा खुश करना चाहिए. पीपल के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए. इन सभी कार्यों को करने से मनोकामना पूरी होती है

 

भाद्रपद अमावस्या मे क्या करना चाहिए ?

भाद्रपद अमावस्या के दिन तीर्थस्नान, जप और व्रत आदि करना चाहिए.

भाद्रपद अमावस्या के दिन भगवान शिव, श्री विष्णु, गणेश और अपने इष्टदेव की पूजा करनी चाहिए.

भाद्रपद अमावस्या का दिन साधना और तपस्या करनी चाहिए.

जन्मकुंडली में पितृ दोष अथवा सर्प दोष शाम्ति के लिए भाद्रपद अमावस्या के दिन पूजा-पाठ-दान अवश्य करनी चाहिए.

भाद्रपद अमावस्या के अन्य नाम

कुशग्रहणी अमावस्या- भाद्रपद अमावस्या को कुशा(घास) ग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. कुशा(कुश) से अर्थ होता है घास. पर यह कोई आम कुश नही होती है यह एक अत्यंत ही शुभ एवं महत्वपूर्ण कुशा होती है. इस दिन कुश को एकत्रित करने के कारण ही इसे कुशग्रहणी अमावस्या नाम प्राप्त हुआ है. पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है. साल भर के धार्मिक कृत्यों के लिये इस दिन को कुश इकट्ठा करने के लिए चुना जाता है.

धर्म ग्रंथों में कई तरह की कुशा का उल्लेख मिलता है. इन सभी कुशा में भाद्रपद की अमावस्या के दिन जो कुशा का उपयोग होता है. उसके लिए कुश के बारे में वर्णन मिलता है. इसलिए इस दिन जो कुशा को लिया जाता है उसमें सात पत्ती हो, कोई भाग कटा न हो, पूर्ण हरा हो, तो वह कुशा देवताओं तथा पितृ दोनों कृत्यों के लिए उचित मानी जाती है. कुशा तोड़ते समय ‘हूं फट्’ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए. जब कुश मिले तो पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके मंत्र को बोलते हुए दाहिने हाथ से कुश को निकाल लेना चाहिए.

पिठोरी अमावस्याभाद्रपद अमावस्या को पिठोरी, पिथौरा, पिठोर इत्यादि नाम से भी जाना जाता है. पिठोरी अमावस्या के दिन दुर्गा का पूजन करने का विधान भी रहा है. पिठोरी अमावस्या के दिन प्र्मुख रुप से स्त्रीयां संतान सुख के लिए इस व्रत को करती हैं. मान्यता है कि इस व्रत के महत्व माता पार्वती ने सभी के समक्ष रखा और इसके शुभ फलों के राज को सभी को बताया. इंद्र की पत्नी शचि ने इस व्रत को किया और संतान सुख एवं समृ्द्धि को पाया. इसी पौराणिक मान्यता के अनुसार इस भाद्रपद अमावस्या के दिन संतान के सुख एवं उसकी लम्बी आयु की कामना के लिए व्रत किया जाता है.

पोला पर्व भाद्रपद माह की अमावस्या तिथि को पोला पर्व मनाए जाने की परंपरा भी मिलती है. पोला को पिठोरा पर्व भी कहा जाता है. यह उत्सव विशेष रुप से महाराष्ट्र, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों में मनाया जाता है. यह त्यौहार कृषक लोगों के साथ भी जुड़ा है. इस दिन बैलों का श्रृंगार कर उनकी पूजा की जाती है. बैल किसान के लिए एक महत्वपूर्ण हिसा होते हैं. उन्हीं के द्वारा वह अपनी खेती के कार्य को कर पाता है और इनके बिना किसान अपनी खेती का लाभ उठा नहीं पाता है.

पोला उत्सव में लोग मिट्टी के बैल भी बनाते हैं. कुछ स्थानों पर इस दिन बैलों की दौड़ का आयोजन भी किया जाता है. बैलों के विजेता को सम्मान प्राप्त होता है. इस दिन में बैलों की पूजा भी की जाती है.

भाद्रपद अमावस्या महत्व

भाद्रपद अमावस्या व्रत के पुण्य फल में वृद्धि होती है. किसी भी प्रकार के ऋण और पाप का नाश होता है. संतान सुख की प्राप्ति होती है, वंश वृद्धि होती है. रुके हुए कार्य शीघ्र ही सम्पन्न होते हैं. मानसिक शांति मिलती है. पाप ग्रहों से मिलने वाले कष्ट से मुक्ति मिलती है.

वर्ष भर आने वाली अमावस्याओं के नाम

साल भर में आने वाली अमावस्या उस माह के नाम से संबंध रखती हैं. हिंदू पंचांग गणना में हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह का आगमन होता है, जिसे अधिकमास, मल मास या पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है. ऎसे में इस समय पर अमावस्या भी अधिक होती है, अमावस्या में संख्या बढ़ जाती है. प्रत्येक माह की अमावस्या का प्रभाव और महत्व में अंतर भी दिखाई देते है. माघ अमावस्या, फाल्गुन अमावस्या, चैत्र अमावस्या, वैशाख अमावस्या , ज्येष्ठ अमावस्या , आषाढ़ अमावस्या , श्रावण अमावस्या , भाद्रपद अमावस्या, अश्विन अमावस्या, अश्विन अमावस्या, कार्तिक अमावस्या, मार्गशीष अमावस्या.

इन सभी अमावस्या के दौरान पूजा पाठ स्नान दान और उपासना साधना इत्यादि कार्य करने से मानसिक, आत्मिक, भौतिक रुप से सुख और शांति प्रदान कराने में बहुत सहायक बनती हैं. अमावस्या के दिन किसी भी प्रकार की बुरी आदतों से दूर बचे रहने की हिदायत दी जाती है. इसी के साथ शुद्ध पवित्र आचरण का पालन करना चाहिए.