गायत्री जयंती 2024:जाने कैसे हुई गायत्री की उत्पत्ति

गायत्री माता को हिन्दू भारतीय संस्कृति में अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. जीव और जगत के मध्य जो संबंध है वह माँ गायत्री के द्वारा ही संभव हो पाता है. गायत्री को ही चारों वेदों की उत्पति का आधार भी माना गया है. गीता में भगवान श्री कृष्ण स्वयं गायत्री की महिमा का वर्णन करते हैं.

गायत्री जयंती कब मनाई जाती है - भिन्न भिन्न मत

गायत्री जयंती की तिथि के लिए कुछ मत प्रचलित है. कुछ के अनुसार गायत्री जयंती को ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन मनाने की बात कही है, इसी समय गंगा दशहरा भी मनाया जाता है. ऎसे में गंगा दशहरा के समय पर मनाए जाने का विचार रहा है. वहीं अन्य मत अनुसार गायत्री जयंती ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन मनाए जाने की बात भी कही गई है. इसके अतिरिक्त श्रावण मास की पूर्णिमा को भी गायत्री जयंती के उत्सव को मनाने की मान्यता रही है.

गायत्री जयंती शुभ मुहूर्त - पूजा समय

इस वर्ष गायत्री जयंती 18 जून 2024 को मंगलवार के दिन मनाई जाएगी.

  • एकादशी तिथि प्रारम्भ - 17 जून, 2024 को 28:44
  • एकादशी तिथि समाप्त - 18 जून, 2024 को 06:25

  • गायत्री जयंती कथा

    गायत्री जयंती के बारे में पौराणिक कथाओं से अनेक विचार प्राप्त होते हैं जिनमें वेदों का सार गायत्री को ही बताया गया है. ब्रह्मा जी द्वारा गायत्री के उत्पत्ति की बात कही गई है. सृष्टि में ज्ञान व चैतन्य शक्ति गायत्री का स्वरुप है. सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्माजी ने गायत्री को उत्पन्न किया था और जिसे गायत्री नाम से पुकारा गया.

    ब्रह्मा ने चार वेदों की रचना से पहले 24 अक्षर वाले गायत्री मन्त्र की रचना की थी. इस एक गायत्री मंत्र का प्रत्येक अक्षर अपने आप में संपूर्ण ज्ञान को समाहित किए होता है. इसमें सभी सूक्ष्म तत्त्व समाहित हैं. इसके पश्चात ब्रह्मा एवं गायत्री के संयुक्त प्रभाव के बाद जो पनपा वह वेद था.

    गायत्री का वेदों से संबंध

    माँ गायत्री को वेदों की उत्पति का रुप माना गया है. इसलिये वेदों का सार भी गायत्री मंत्र को ही बताया गया है यानी की जो भी कुछ वेदों में दिया गया है उस का संपूर्ण विचार गायत्री से ही उत्पन्न हुए हैं. चारों वेदों का ज्ञान लेने के बाद जिस पुण्य की प्राप्ति होती है उसी की प्राप्ति सिर्फ गायत्री मंत्र के उच्चारण द्वारा संभव हो पाता है. चारों वेदों की माता गायत्री को कहा गया है, इसलिए गायत्री वेदमाता भी कही जाती हैं.

    गायत्री संबंधी कथाएं

    गायत्री कथा में हमें अनेकों अन्य कथाओं का आधार भी मिलता है. माना जाता है कि विश्वामित्र ने कठोर साधना कर मां गायत्री देवी को सभी के लिए सक्षम बनाया और उसे सभी तक पहुंचाया.

    गायत्री का विवाह कथा

    गायत्री से संबंधित एक कथा बहुत प्रचलित है. कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मा जी एक यज्ञ का आयोजन करना चाहते थे. जिसके द्वारा सृष्टि का कल्याण संभव हो पाए. इसके लिए वह यज्ञ का आयोजन करते हैं. उस समय जब इस यज्ञ का आरंभ होना होता है तब ब्रह्मा जी की पत्नीं सावित्री उनके साथ नहीं थी. ऎसे में शुभ मुहूर्त समय निकल रहा होता है. देवी सावित्री का इंतजार करते-करते जब देर होने लगी तब उस समय ब्रह्माजी ने गायत्री का आहवान किया और उसे अपने समक्ष यज्ञ में स्थान दे दिया. लेकिन जब सावित्री वहां पहुंची तो उन्होंने बगल में गायत्री को बैठा देखा जो स्थान पत्नी का होता है, उस स्थान पर गायत्री बैठी हुई थीं. ऎसे में इस कथा अनुसार ब्रह्मा जी के साथ उनके विवाह की बात भी पौराणिक कथाओं में प्राप्त होती है.

    गायत्री उपासना लाभ

    गायत्री को दैवी शक्ति माना गया है. गायत्री की उपासना व्यक्ति के चहुमुखी विकास के लिए अत्यंत आवश्यक मानी गई है. गायत्री उपासना द्वारा जीवन में आने वाले सभी संकटों का नाश होता है और सत्य का बोध होता है.

    गायत्री उपासना को हिंदू धर्म शास्त्र में एक अत्यंत ही चमत्कारिक गुणों से भरपूर सिद्धि देने वाला माना गया है. सृष्टि में मौजूद जो भी शक्तियों स्थापित है उन सभी में गायत्री का स्थान अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण माना गया है. गायत्री की उपासना द्वारा वाक सिद्धि प्राप्त होती है. इसके साथ ही सद्बुद्धि की प्राप्ति होती है.

    त्रिपाद गायत्री महिमा

    आत्मिक, मानसिक और सांसारिक तीनों प्रकार के गुणों का आधार गायत्री को माना गया है. इन्हीं से मिलने वाले सुख-साधन की शक्ति गायत्री ही हैं. सत, रज, तम में बंटे हुए गुणों का आधार गायत्री हैं. इन तीनों पर विजय प्राप्त करने के लिए गायत्री की उपासना पर बल दिया जाता है. यह तीनों ही वर्ग गायत्री की आद्यशक्ति के एक- एक चरण में आते हैं. इस लिए गायत्री को ‘त्रिपदा’ भी कहा जाता है. यह तीन चरण पार कर लेने पर ही साधक का कल्याण संभव हो पाता है.

    गायत्री मंत्र शक्ति एवं लाभ

    “ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् ।

    भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ||”

    गायत्री मंत्र का प्रभाव अत्यंत ही सूक्षम रुप में पड़ता हैं और इस मंत्र के जाप द्वारा सभी प्रकार के कलेशों दुखों का नाश भी होता है. गायत्री मंत्र में मौजूद अक्षर वो शक्ति हैं जो मंत्र के उच्चारण द्वारा भक्त के भीतर जागृत होती हैं.

    इस मंत्र के द्वारा जीवन में सफलता और सिद्धियों की प्राप्ति होती है. गायत्री मंत्र की साधना एक वैज्ञानिक सत्यता भी है. गायत्री परब्रह्म क्रिया भाग है. गायत्री उपासना ईश्वर उपासना का एक सरल और जल्द फल होने वाला मार्ग है. इस मार्ग पर चलने पर साधक का जीवन सफल होता है.

    श्रीमद्भगवद् गीता में गायत्री के संदर्भ में जो लिखा गया है वह इस प्रकार है - “छन्दों में मैं गायत्री हूं”हिन्दू धर्म में अनेक प्रचलित मतों के आधार द्वारा गायत्री की महिमा का बखान प्राप्त होता है. कुछ मतों में एक म्म्त्र को लेकर कई मतभेद दिखाई दे सकते हैं लेकिन जब गायत्री की बात आती है तो उस के लिए सभी सम्प्रदायों ने, सभी ऋषियों ने एक मत को ही स्वीकार किया है.

    गीता, अथर्ववेद में गायत्री की स्तुति की गयी है, जिसमें उसे आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है. विश्वामित्र द्वारा गायत्री के विषय में यह कथन प्राप्त होता है जिसमें वह कहते हैं कि ‘गायत्री के समान चारों वेदों में मन्त्र नहीं है” वहीं आदि मनु का कथन है- ‘ब्रह्मजी ने तीनों वेदों का सार तीन चरण वाला गायत्री मन्त्र दिया अत: गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला और कोई अन्य मन्त्र नहीं है.