कल्कि अवतार

भगवान श्री विष्णु के मुख्य अवतारों में से एक अवतार कल्कि भी है. यह वह अवतार है जिसे अभी आना है क्योंकि पौराणिक ग्रंथों के आधार पर कलियुग के अंतिम चरण में कल्कि अवतार होगा. युग गणना के आधार पर अभी कलियुग का प्रथम चरण ही चल रहा है.

कल्कि जयंती कब मनाते हैं

कल्कि जयंती का पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. शास्त्रों के अनुसार कलियुग के अंतिम दौर में भगवान विष्णु का दसवां अवतार कल्कि अवतार के नाम से विख्यात होग्गा. यह अवतार कलियुग और सतयुग के संधि काल में होगा, जो 64 कलाओं से युक्त होगा.

कल्कि अवतार समय

पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री विष्णु के कल्कि केअवतार का आगमन उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद ज़िले के संभल नामक स्थान पर होगा. यहां परर्हने वाल दंपति विष्णुयशा नाम के एक ब्राह्मण परिवार में होगा. न कल्कि भगवान का वाहन श्वेत रंग का घोड़ा होगा जिस पर सवार होकर वह सभी बुराईयों का अंत करेंगे. पापियों का नाश करके फिर से धर्म की रक्षा करेंगे.

श्रीमद्गागवत में 12वें स्कंद के 24वें श्लोक में कल्कि अवतार के बारे में बताया गया है. इसके अनुसार गुरु, सूर्य और चन्द्रमा जब एक साथ पुष्य नक्षत्र में होंगे तो उस समय श्री विष्णु भगवान कल्कि रुप में जन्म लेंगे.

“सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।

भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।”

पौराणिक मान्यता के अनुसार इनके अवतार लेने के बाद ही सतयुग का आरम्भ होगा.

क्यों लेते हैं भगवान अवतार ?

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

गीता में दिए गए इस श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं, जब-जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है और अधर्म आगे बढ़ता है, तब-तब मैं इस पृथ्वी पर जन्म लेता हूं. सज्जनों और साधुओं की रक्षा के लिए, गलत लोगों और पापियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में जन्म लेता हूं. यही भगवान के प्रत्येक अवतार का मुख्य सार रहा है. जिसके द्वारा भगवान श्री नारायण ने प्रत्येक युग में अवतार लिया और संसार के कष्टों को दूर करके शुभता की स्थापना की.

विष्णु के दस अवतार कौन से है ?

श्री विष्णु के दस अवतारों में भिन्न-भिन्न रुपों को रचा और अपने लीला रूप धर कर सदैव दुखों को दूर किया . भक्तों को बचाने एवं धर्म की रक्षा हेतु प्रभु ने हर काल में अवतार लिया. विष्णु भगवान के रूप को वेद-पुराणों में विस्तार रुप से दर्शाया गया है. भगवान विष्णु के 24 अवतार माने गए हैं, जिनमें से दस प्रमुख रुप से विशेष स्थान पाते हैं जो इस प्रकार हैं. इसमें से प्रमुख अवतार मत्स्य अवतार है.

भगवान विष्णु ने मछली का रूप धरा ओर पृथ्वी के जल मग्न होने पर सृष्टि की रक्षा करते हैं. कूर्म अवतार में विष्णु ने समुद्रमंथन के समय पर्वत को अपने कवच पर संभाला था उनकी सहायता से देवों एवं असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नों की प्राप्ति की. वाराह अवतार में भगवान विष्णु ने पृथ्वी कि रक्षा की थी, और हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध किया था. नरसिंहावतार में धरकर भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध करके भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी.

वामन अवतार में तीन पग से तीन लोक नाप कर राजा बलि से देवतओं की रक्षा की. त्रेता युग में राम रुप में आकर रावण का वध किया और सत्य की स्थापना करते हैं. द्वापर में कृष्णावतार रूप में कंस का अंत करके प्रजा की ओर धर्म की रक्षा करी.

परशुराम अवतार लेकर पापियों का नाश किया और अंत में कल्कि अवतार जो भविष्य में कलियुग के अंत में आयेंगे और पापियों का अंत करके लोगों के दुख दूर करेंगे. इस प्रकार भगवान विष्णु जी ने सभी युगों में धर्म की रक्षा की और लोगों को अत्याचारियों के हाथों से मुक्त किया.

कल्कि अवतार से संबंधित मतभेद

भगवान के अवतारों में सबसे विवादित और भ्रम से भरपूर यही अवतार ही रहा है. इस अवतार को लेकर इसकी संदेहास्पद स्थिति इस कारण भी है की कोई भी इसे पूरी तरह से एकमत राय नही बना पाया. कल्कि अवतार को कुछ स्थानों पर माना गया है की ये अवतार हो चुका है, और कुछ के अनुसार अभी अवतार नहीं हुआ है. यह कल्कि अवतार कलयुग के अंतिम चरण में होगा. कल्कि पुराण के अनुसार कलयुग में भगवान विष्णु कल्कि रूप में अवतार लेंगे. भगवान एक बार फिर से सतयुग का आरंभ होगा. स्कंद पुराण में भी कल्कि अवतार के बारे में वर्णन मिलता है.

कुछ धर्म ग्रंथों एवं गद्य में ऐसा उल्लेख व गुणगान मिलता है की कल्कि अवतार हो चुका है. वायु पुराण के अनुसार कल्कि अवतार कलयुग के चर्मोत्कर्ष पर जन्म ले चुका है. इसमें विष्णु की प्रशंसा करते हुए दत्तात्रेय, व्यास, कल्कि विष्णु के अवतार कहे गए हैं. मत्स्य पुराण के द्वापर और कलियुग के वर्णन में कल्कि के होने का वर्णन मिलता है. कवि जयदेवऔर चंडीदास के अनुसार कल्कि अवतार हो चुका है. बौध और जैन ग्रंथों में भी कल्कि विषय से मिलते जुलते साक्ष्य प्राप्त होते हैं. जैन पुराणों में कल्कि नाम के सम्राट के बारे में पता चलता है. इसके अनुसार कल्कि सम्राट का शासनकाल महावीर की मृत्यु के हजार साल बाद हुआ था.

इस तरह से भगवन के इस अवतार को लेकर बने हुए मतभेद होना सामान्य है. लेकिनास्था ओर तर्क की अवधारण पर सभी बातों को बिठा पाना संभव नहीं हो पाता है. ऎसे में रामायण की यह चौपाई इस स्थान पर बहुत ही सटीक बैठती है- जेहिके जही पर सत्य स्नेहु सो तेहि मिलेयी ना कछु सन्देहु”

कलयुग का आगमन कैसे हुआ

कलयुग का आरंभ राजा परीक्षित के समय के बाद से आरंभ होना माना गया है. इसके पीछे एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार राजा परिक्षित जब अपने राज्य से गुजर रहे होते हैं तो वह मार्ग में देखते हैं कि एक बहुत ही बलिष्ठ व्यक्ति गाय और बैल को मार रहा होता है. वह बैल अत्यन्त सुन्दर था, उसका श्वेत रंग था और केवल एक पैर था. गाय भी कामधेनु के समान सुन्दर थी.

उन दोनों पशुओं की ये दशा देख कर राजा परीक्षित ने उस दुष्ट को डांटते हुए कहा की वो उन कमजोर पशुओं को क्यों सता रहा है, मैं तुझे अभी इसका दण्ड देता हूं ऎसा कहते हुए राजा परिक्षित ने अपनी तलवार निकाल ली, राजा के कथन सुन वह दुष्ट व्यक्ति भय से कांपने लगा और राजा परीक्षित के चरणों में गिर कर क्षमा मंगने लगा. उसी समय वह बैल धर्म रुप में और गाय पृथ्वी रुप में राजा के समक्ष अपने रुप को धरते हैं और अपने दुख का कारण राजा को बताते हैं. सम्राट परीक्षित कलियुग के क्षमा याचना मांगने पर उसे प्राणदान देते हैं और उसे निकल जाने का आदेश देते हैं. ऎसे में कलियुग कहता है की राजा सारी पृथ्वी तो आप की ही है और इस समय मेरा पृथ्वी पर होना काल के अनुरूप है, क्योंकि द्वापर समाप्त हो चुका है और मेरा आगमन होना है.

इस पर राजा परिक्षित बहुत विचार करने के पश्चात हे कलियुग को द्यूत, मद्यपान, परस्त्रीगमन, हिंसा और स्वर्ण में रहने का स्थान देते हैं. उसी क्षण कलयुग इन स्थानों पर सदैव के लिए स्थापित हो जाता है और कलयुग का पृथ्वी पर आगमन होता है. इसी कल्युग के समापन हेतु कल्कि अवतार होगा.