सूर्य ग्रहण : कंकण सूर्यग्रहण ऎसा होगा ग्रहण का आप पर प्रभाव

2024 में 8 अप्रैल और 2/3 अक्टूबर को लगने वाला सूर्य ग्रहण कई तरह से अपना प्रभाव डालने वाला होगा. इस ग्रहण का प्रभाव दक्षिणी पूर्वी यूरोप, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका कुछ कुछ क्षेत्रों, प्रशांत और हिन्द महासागर एवं मध्य पूर्वी एशिया के कुछ क्षेत्रों में दिखाई देगा.

2/3 अक्टूबर 2024 ग्रहण काल समय

  • ग्रहण का आरंभ - 21:13
  • कंकण का आरंभ - 22:21
  • परमग्रास - 24:15
  • कंकण समाप्त - 26:09
  • ग्रहण समाप्त - 27:17

सूर्य ग्रहण का प्रभाव

यह सूर्य ग्रहण नक्षत्र में आरंभ होगा और राशि में होगा. ऎसे में इन नक्षत्र और राशि के जातकों पर इस ग्रहण का अधिक प्रभाव दिखाई देगा. इसलिए इन नक्षत्र और राशि के जातकों को ग्रहण समय के दौरान दान और मंत्र जाप करना चाहिये. आदित्यहृदय स्त्रोत का पाठ व सूर्य के नामों का जाप करना सभी राशि के लोगों के लिए उत्तम होगा.

सूर्य ग्रहण के दौरान क्या करें

सूर्य ग्रहण के समय कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिये. क्योंकि इस समय के दौरान वातावरण प्रभावित होता है ऎसे में इसका प्रभाव सभी पर होता है. सूर्य ग्रहण के लगने से पहले ही भोजन की वस्तुओं में तुलसी अथवा दुर्वा को डाल देना चाहिये. खाने की चीजों में तुलसी अथवा दूर्वा को डाल देने से किसी भी प्रकार की खराबी भोजन में नहीं आती है.

  • सूर्य ग्रहण के दौरान महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए.
  • सूर्य ग्रहण के समय किसी भी गुरु मंत्र अथवा अन्य मंत्रों का जाप करना अत्यंत शुभदायक होता है.
  • कालसर्प दोष की शांति अथवा राहु केतु के पाप प्रभावों से मुक्ति पाने के लिए ग्रहण समय भगवन शिव के पंचाक्षरी मंत्र का जाप करना चाहिये.
  • इस समय के दौरान मंत्र जाप करना अत्यंत प्रभावशाली उपाय होता है. इससे मंत्र सिद्धी भी प्राप्त होती है.
  • गर्भवती महिला को इस समय के दौराना किसी भी प्रकार के कार्य को करने से बचना चाहिये. काटना, सिलना जैसे काम नहीं करने चाहिये.
  • ग्रहण के दौरान स्नान करना चाहिये अथवा ग्रहण समाप्ति के बाद भी स्नान करना चाहिये.
  • गंगा जल का सेवन करना चाहिए.
  • दान इत्यादि करना चाहिये.

सूर्य ग्रहण के दौरान क्या ना करें

  • सूर्य ग्रहण के दौरान भोजन इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए.
  • यौन संबंधों एवं प्रेम इत्यादि से बचना चाहिए.
  • सूर्य ग्रहण के समय सोना नहीं चाहिए.
  • मंदिर अथवा देवताओं की मूर्ति का स्पर्श नहीं करना चाहिये.

सूर्य ग्रहण वैज्ञानिक आधार

सूर्य ग्रहण एक वैज्ञानिक खगोलीय घटना होती है. सूर्यग्रहण के समय चंद्रमा सूर्य और पृथवी एक ही सीध में आ जाते हैं. जब चंद्रमा ग्रह सूर्य और पृथ्वी के मध्य होता है तो इस कारण से सूर्य की रोशनी कुछ समय के लिए बाधित हो जाती है जिसे सूर्य ग्रहण कहा जाता है.

सूर्य ग्रहण पौराणिक कथा

सूर्य ग्रहण एक वैज्ञानिक आधार से अलग धार्मिक महत्व भी रखता है. इस संदर्भ से संबंधित एक अत्यंत ही पौराणिक कथा प्राप्त होती है जिसका वर्णन भागवत, विष्णु पुराण एवं महाभारत में भी प्राप्त होता है. इस कथा का आरंभ समुद्र मंथन से होता है.

कथा इस प्रकार है कि- श्री विष्णु के भक्त प्र्ह्लाद के वंश में एक अन्य विष्णु भक्त राजा बलि होता है. राजा बली के शासन में दैत्यों असरों की शक्ति अत्यंत ही बढ़ जाती है. दैत्य अपनी शक्ति के प्रभाव से समस्त लोकों पर अपना आधिपत्य स्थपैत करने की चेष्ठा रखते हैं.

वहीं दूसरी ओर ऋषि दुर्वासा श्राप के कारण देवता श्रीहीन और शक्ति से वंचित होने लगते हैं. ऎसे में राजा बलि का शासन संपूर्ण लोकों पर स्थापित होता है. इन्द्र व अन्य देवता अपनी शक्ति को पाने हेतु ब्रह्मा जी के पास जाते हैं जहां वह देवताओं को विष्णु की शरण में जाने को कहते हैं. तब इंद्र इत्यादि देव श्री विष्णु भगवान का आहवान करते हैं.

श्री विष्णु भगवान उस समय देवताओं को दैत्यों के साथ मित्रता करके समुद्र मंथन का सुझाव देते हैं ,जिसके द्वारा देवों को अमृत की प्राप्ति हो सकती है और वह पुन: अपना राज्य स्थापित कर सकते हैं. तब देवता राजा बली के पास जाकर मैत्री भाव दर्शाते हैं और समुद्र से अमृत प्राप्ति करने और अन्य रत्नों की प्राप्ति का लालच देते हैं. इस पर राजा बली देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन के लिए तैयार हो जाते हैं.

समुद्र मंथन के लिये मन्दराचल पर्वत को चुना जाता है और वासुकी नाग को रस्सी बनाया जाता है. श्री विष्णु भगवान पर्वत को स्थर करने हेतु कछुए का अवतार लेते हैं और तब कच्छप की पीठ पर मन्दराचल पर्वत को रख कर समुद्र मंथन होता है इस समुद्र मंथन के दौरान चौथह रत्न प्राप्त होते हैं. बारी बारी से सभी रत्नों को दैत्य ओर देवताओं के मध्य बांटा जाता है और अंत मे अमृत की प्राप्ति होती है.

धन्वन्तरि अमृत का कलश लेकर प्रकट होते हैं लेकिन दैत्य अपनी ताकत से उस अमृत के कलश को धन्वंतरी से ले लेते हैं. ऎसे में शक्तिहीन देवता इस घटना से निराश हो उठते हैं. तब श्री विष्णु भगवान पुन: देवताओं की सहायता के लिए मोहिनी अवतार लेते हैं. मोहिनी रूप को देखकर दैत्य उसके प्रति आकर्षित हो उठते हैं. दैत्यों की इस दशा का लाभ उठाकर मोहिनी उनसे अमृत कलश ले लेती है और और स्वयं उन्हें अमृत पान कराने की बात कहती है. ऎसे में सभी दैत्य इस बात से सहमत हो जाते हैं. तब देवताओं और दैत्य दोनों अलग-अलग बैठ जाते हैं.

मोहिनी के रुप से प्रभावित दैत्य अमृत पान भूल जाते हैं और मोहिनी देवताओं को ही अमृत पान कराने लगती है. ऎसे में देवताओं की इस छल को राहु नामक दैत्य जान जाता है और वह धोखे से देवता का रुप बना कर देवों की श्रेणी में बैठ जाता है. परंतु सूर्य और चंद्रमा उसे पहचान लेते हैं पर तब तक बहुत देर हो जाती है क्योंकि राहु के मुख में अमृत जा चुका होता है.

सूर्य और चंद्रमा के इतना कहते ही की वह देव नही दैत्य है भगवान श्री विष्णु सुदर्शन चक्र से उसका धड़ शरीर से अलग कर देते हें. किन्तु अमृत पान कर लेने के कारण राहु अमर हो जाता है और इसके प्रभाव से उसका सिर राहु और धड़ केतु कहलाया. इसी कारण राहु ने सूर्य और चंद्रमा को अपना सदैव ग्रहण लगाया, जिसे सूर्य ग्रहण और चंद्रमा ग्रहण कहा जाता है.