क्यों मनाया जाता है दस दिनों तक गणेश उत्सव ?

भगवान गणेश के जन्म का उत्सव भाद्रपद माह के दौरान कई दिनों तक मनाया जाता है. यह उत्सव भाद्रपद मास की चतुर्थी से प्रारंभ होकर भाद्रपद मास की अनंत चतुर्दशी तक चलता है. दस दिनों तक मनाए जाने वाले इस उतस्व के पीछे धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व काफी विशेष रहा है. इसके अलावा गणेश जन्मोत्सव का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. वैसे तो हर माह की चतुर्थी पर यह पूजा होती है लेकिन भाद्रपद माह के दौरान इसकी अलग ही रौनक दिखाई देती है ओर यह दस दिनों तक चलने वाला पर्व बन जाता है. गणेश महोत्सव की धूम हर ओर देखी जा सकती है. इस महत्वपूर्ण त्योहार के पिछे कुछ विशेष तथ्यों का वर्णन धर्म कथाओं में मिलता है. इस समय दौरान पंडाल सजाए जाते हैं और गणपति मूर्ति स्थापना के साथ ही गणेश जी का आह्वान किया जाता है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को सिद्धिविनायक व्रत श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. दस दिनों तक चलने वाला यह त्यौहार अपने साथ कई विशेष तिथियों को लाता है को इस पर्व के दौरान आती हैं. इस इन सभी दस दिनों में प्रत्येक तिथि के दिन पर्व मनाया जाता है. 

गणेश उत्सव की कथा और महत्व 

श्री गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन हुआ था. गणपति महोत्सव का यह उत्सव चतुर्थी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी तक चलता है. शास्त्रों के अनुसार इस व्रत का फल बहुत विशेष होता है. भगवान श्री गणेश को जीवन में विघ्नहर्ता कहा जाता है.  श्री गणेश सभी की मनोकामनाएं पूरी करते हैं. गणेशजी को सभी देवताओं में सबसे अधिक महत्व दिया गया है. कोई भी नया काम शुरू करने से पहले भगवान श्री गणेश को याद किया जाता है.  इसलिए उनके जन्मदिन को व्रत रखकर श्री गणेश जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. 

दस दिनों तक चलने के पीछे पौराणिक कथा इस प्रकार है हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान गणेश का जन्म देवी पार्वती ने स्नान के लिए इस्तेमाल किए गए चंदन के लेप से हुआ था.   स्नान करते समय अपने निवास के प्रवेश द्वार की रक्षा करने के लिए कहा. इस बीच, पार्वती के पति भगवान शिव घर लौट आए और गणेश ने उन्हें दरवाजे पर रोक दिया. शिव ने गणेश को अपने पुत्र के रूप में नहीं पहचाना और उन्हें अंदर आने से मना करने पर क्रोधित हो गए. उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर काट दिया और घर में प्रवेश कर गए. अपने पुत्र का निर्जीव शरीर देखकर पार्वती अत्यंत दुखी एवं क्रोधित होती हैं तब भगवान  शिव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने अपने अनुयायियों से एक ऐसे बच्चे को ढूंढने को कहा जिसकी मां उनकी ओर नहीं देख रही थी और उसका सिर उनके पास ले आएं. उन्हें एक हाथी का बच्चा मिला तत्ब वह उसका सिर ले आए फिर शंकर जी ने हाथी का सिर गणेश के शरीर से जोड़ दिया और उन्हें पुनर्जीवित कर दिया. उन्होंने यह भी घोषणा की कि गणेश किसी भी अन्य देवता या किसी भी शुभ अवसर से पहले पूजे जाने वाले पहले देवता होंगे. गणेश के जन्म और पुनरुद्धार की कथा उन कारणों में से एक है. 

महाभारत रचना और गणपति विसर्जन महिमा

वहीं एक अन्य कथा का संबंध भी मिलता है  शास्त्रों के अनुसार इस उत्सव के लिए अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन किया जाता है. इसके पीछे एक पौराणिक कहानी है जिसके अनुसार वेद व्यास जी ने महाभारत ग्रंथ लिखने के लिए भगवान गणेश को आग्रह करते हैं वेद व्यास जी कथा सुनाते हैं और गणेश जी लिखते जाते हैं. कथा सुनाते समय वेद व्यास जी ने अपनी आंखें बंद कर लीं। वह 10 दिनों तक कथा सुनाते रहे और गणपति बप्पा उसे लिखते रहे. दस दिन बाद जब वेद व्यास जी की आंखें खुलीं तो उन्होंने देखा कि गणपति जी के शरीर का तापमान बहुत बढ़ जाता है तब उनकी इस बेचैनी को दूर करने तथा उनके शरीर को ठंडा करने के लिए वेद व्यास जी ने उन्हें पानी में डुबा दिया, जिससे उनका शरीर ठंडा हो गया. कहा जाता है कि तभी से यह मान्यता चली आ रही है कि भगवान गणेश को शीतलता प्रदान करने के लिए ही गणेश विसर्जन किया जाता है.

इन कथाओं का संदर्भ भगवान की निष्ठा को स्वयं के भीतर अपनाने का भी है. जिस प्रकार भगवान के अपने हर कार्य को पूर्णता के साथ किया उसी प्रकार जीवन में किए गार्यों को हमें भी उसी पूर्णता से करने की आवश्यकता होती है. यह दस दिन आध्यात्मिक ऊर्जा को पूर्ण करने का समय होते हैं. 

भाद्रपद माह में पड़ने वाली चतुर्थी का व्रत विशेष शुभ माना जाता है. इस दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए. सूर्योदय से पहले उठकर स्नान और अन्य दैनिक कार्यों से निवृत्त होकरपूजा का रंभ किया जाता है. भगवान गणेश की पूजा करने के साथ ही  ॐ गं गणपतये नमः का जाप करना शुभ होता है. भगवान श्रीगणेश की पूजा धूप, दूर्वा, दीप, पुष्प, नैवेध और जल आदि से करनी चाहिए. पूजा में मोदक एवं लड्डुओं से पूजा करनी चाहिए. श्रीगणेश को लाल वस्त्र धारण कराना चाहिए और लाल वस्त्र का दान करना चाहिए.