अधिकमास दुर्गाष्टमी, दुर्गा पूजन का विशेष समय

हिंदू वैदिक कैलेंडर के अनुसार, हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दौरान मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत रखा जाता है. लेकिन अधिक मास के समय आने वाली मासिक दुर्गाष्टमी सभी से खास होती है. अधिकमास में दुर्गा अष्टमी के शुभ दिन पर देवी दुर्गा के भक्त उनकी पूजा करते हैं और दिन भर उपवास रखते हैं. अधिकमास महाष्टमी के रुप में जानी जाती है. यह सबसे महत्वपूर्ण दुर्गाष्टमी है जो नवरात्रों की अष्टमी के जैसा फल प्रदान करती है. इस अष्टमी का महत्व इस कारण से भी बढ़ जाता है क्योंकि यह हर साल नहीं आती है. अधिकमास जब आता है तब मासिक दुर्गाष्टमी को अधिकमास दुर्गा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. 

अधिक मास दुर्गाष्टमी के दिन किया जाने वाला पूजन भक्तों को सुख एवं समृद्धि दिलाता है. यह समय विजय एवं शक्ति की प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ होता है. नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति प्राप्त होती है. जीवन में शुभ फलों का आगमन होता है. ग्रह दशाओं की शुभता के लिए भी यह दिन अत्यंत उत्तम होता है. इस दिन देवी का पूजन करने से ग्रह दोष शांत होते हैम. 

अधिक मास दुर्गाष्टमी पूजा विधि 

अधिक मास अष्टमी पूजा एवं व्रत को करने वाले व्यक्ति को सुबह जल्दी उठना चाहिए. नित्यकर्म निपटाने के बाद घर को साफ-सुथरा कर शुद्ध कर लेना चाहिए. इस दिन सामान्यतः खीर, चूरमा, दाल, हलवा आदि बनाया जाता है. इसके बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है. घर के एक कोने में देवी और कुलदेवता की तस्वीर लगानी चाहिए. पूजा स्थल के दोनों ओर सिन्दूर से यम और त्रिशूल का चित्र बनाया जाता है. पूजा में कलश स्थापित करते हैं. कलश के चारों ओर मौली बांधी जाती है और स्वस्तिक बनाया जाता है. पूजा पूर्व दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए. पूजा करने वाले व्यक्ति का मुख दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए. पूजा में घी का दीपक जलाना चाहिए. हाथ में जल, चावल, फूल और पैसे लेकर अष्टमी पूजा व्रत का संकल्प लिया जाता है. इसके बाद भगवान गणेश को स्मरण करते हुए पूजन आरंभ होता है. 

पूजा में देवी को अर्ध्य, मोली और वस्त्र अर्पित किये जाते हैं. रोली और चावल से तिलक लगाया जाता है. पूजा में फूल और अगरबत्ती का प्रयोग किया जाता है. अष्टमी भोग बनाने के लिए कई तरह की चीजों का उपयोग किया जाता है. पूजा के बाद भोग लगाया जाता है. देवी को सुपारी चढ़ाई जाती है. देवी को लौंग और इलायची भी भेंट की जाती है. इस प्रकार पूजा करते हुए कन्याओं को मीठा खिलाया जाता है.  व्रत के दौरान व्यक्ति को साफ जगह पर सोना चाहिए और खुद को साफ-सुथरा रखना चाहिए. शाम के समय दीपक जलाना चाहिए और व्रत कथा पढ़नी चाहिए.

अधिकमास दुर्गाष्टमी महत्व 

देवी दुर्गा दिव्य शक्ति एवं प्रकृति हैं और वह सभी सृजन, संरक्षण और विनाश का आधार हैं.  दुर्गा या देवी दुर्गा का अवतरण राक्षस महिषासुर को हराने के लिए भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा समेत देवताओं नें मिलकर किया था. संस्कृत में दुर्गा नाम का अर्थ अजेय है. उनकी पूजा सफलता, साहस और समृद्धि के लिए की जाती है और यह शक्ति, नैतिकता और सुरक्षा का प्रतीक है देवी दुर्गा सदाचार की रक्षा करने वाली और पाप का नाश करने वाली हैं. उन्हें ब्रह्मांड की माता के रूप में जाना जाता है, जिसमें भक्तों को सभी प्रकार की विनाशकारी शक्तियों से बचाने की अनंत शक्ति है. माँ दुर्गा को सती, गौरी, अम्बा, अम्बिका, पार्वती, शक्ति, भवानी, भद्रकाली और कालिका के नाम से भी जाना जाता है. वह महामाया का प्रतीक है जहां महा का अर्थ है महान और माया का अर्थ है भ्रम.

मासिक दुर्गा अष्टमी के त्योहार का हिंदुओं में बहुत महत्व है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सभी राक्षसों का वध करने के बाद मां कालरात्रि देवी दुर्गा के सामान्य रूप में प्रकट हुईं और सभी देवताओं ने देवी दुर्गा की पूजा की. माँ दुर्गा को ब्रह्मांड की माता और वह शक्ति के रूप में जाना जाता है जो ब्रह्मांड के निर्माण और विनाश दोनों में निहित हैं. देवी दुर्गा की दस भुजाएँ हैं, जो भक्तों की रक्षा के लिए विभिन्न प्रकार के हथियार रखती हैं. दुर्गा अष्टमी का दिन महिषासुर, चंड मुंड, शुंभ निशुंभ और रक्तबीज नामक राक्षसों पर देवी दुर्गा की जीत के रूप में मनाया जाता है.भक्त देवी की पूजा करते हैं, और उन्हें समृद्धि, खुशी, धन और स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है. 

अधिकमास दुर्गा अष्टमी पूजन लाभ 

अधिकमास में आने वाली मासिक दुर्गा अष्टमी को लेकर की जाने वाली पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इस समय पर संधि पूजा का महत्व भी होता है. ऐसा माना जाता है कि तंत्र साधना में विश्वास रखने वालों के लिए यह पूजा बहुत फलदायी होती है. जिस मनोकामना को ध्यान में रखकर यह पूजा की जाती है उसका फल शीघ्र प्राप्त होता है.देवी को वस्त्र, अन्य वस्तुएं आदि अर्पित की जाती हैं जिनमें चूड़ियाँ, आभूषण, धोती, काजल, बिंदी आदि शामिल हैं और, विवाहित महिलाओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले अन्य आभूषण भी देवी को अर्पित किए जाने चाहिए. प्रतिदिन परिवार के सदस्यों को आरती में भाग लेना चाहिए. इस समय पर दुर्गा सप्तशती पाठ का करना चाहिए. और अष्टमी के दिन माता को भोग लगाना चाहिए. अगले दिन व्रत का पारण करना चाहिए.