अशून्य शयन व्रत, जानें पूजा विधि और महत्व 2024

शास्त्रों के अनुसार, चतुर्मास के दौरान भगवान विष्णु शयन करते हैं और इस अशून्य शयन व्रत के माध्यम से शयन उत्सव मनाया जाता है. यह व्रत भगवान शिव के पूजन का भी समय होता है, इस कारण से इस समय पर भगवान श्री विष्णु एवं भगवान भोलेनाथ दोनों का ही संयुक्त रुप से भक्तों को आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस पर्व को शयन उत्सव के रुप में मनाया जाता है. दांपत्य गृहस्थ जीवन के सुख के लिए इस व्रत की महिमा बहुत ही विशेष रही है.यह व्रत चतुर्मास के चार महीनों के दौरान प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. इस व्रत को करने से पति-पत्नी का साथ जीवनभर बना रहता है और रिश्ता मजबूत होता है. प्रेम और दांपत्य जीवन के सुख का विशेष लाभ प्रदान करता है यह व्रत. 

यह व्रत दांपत्य जीवन में सौभाग्य को प्रदान करता है. अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिए तथा उसके साथ सुख पूर्ण जीवन के लिए इस व्रत को किया जाता है. शास्त्रों के अनुसार पति-पत्नी के रिश्ते को बेहतर बनाने के लिए अशून्य शयन द्वितीया का यह व्रत बहुत महत्वपूर्ण है. इस व्रत को पुरूषों द्वारा करने का विधान बेहद विशेष है. जिस प्रकार स्त्रियों के लिए अनेकों व्रत हैं सुखी वैवाहिक जीवन की कामना हेतु उसी प्रकार इस व्रत को पुरुषों के द्वारा करने पर सुखी वैवाहिक जीवन का सौभाग्य प्राप्त होने का उल्लेख भी प्राप्त होता है.

अशून्य शयन व्रत पूजन 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अशून्य शयन व्रत द्वितीया तिथि को चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर किया जाता है. रात्रि में चंद्रमा के पूजन के साथ इसको पूर्ण करेंगे. इस व्रत में लक्ष्मी और श्री हरि विष्णु जी की पूजा करने का विधान है. शास्त्रों के अनुसार, चतुर्मास के दौरान भगवान विष्णु शयन करते हैं और इस अशून्य शयन व्रत के माध्यम से शयन उत्सव मनाया जाता है.  

अशून्य शयन व्रत में शाम को चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अक्षत, कुमकुम, दही, दूध, फल एवं मिष्ठान इत्यादि से अर्घ्य दिया जाता है और अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है. व्रत के अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है तथा उन्हें कुछ उपहार एवं दक्षिणा देकर इस व्रत को संपन्न किया जाता है. व्रत में किए जाने वाले नियमों का पालन करते हुए वैवाहिक जीवन में प्रेम और मधुरता बनी रहती है.

दांपत्य जीवन के लिए लाभदायक 

अगर व्यक्ति अपने वैवाहिक जीवन को मजबूत बनाना चाहता है तो इस दिन अशून्यशयन व्रत को अवश्य धारण करे. सुखी परिवार एवं संतान सुख हेतु यह व्रत अत्यंत ही शुभ होता है. इस दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद शिव एवं विष्णु पूजन करना चाहिए. इस दिन भगवान को चंदन एवं केसर से तिलक करना शुभ होता है. मां लक्ष्मी और विष्णु जी को तिलक अवश्य करना चाहिए. अपने मनोकूल जीवनसाथी पाने की कना हेतु अथवा अपने प्राप्त जीवन  के साथ सुखमय जीवन की अभिलाषा की पूर्ति हेतु इस दिन दान एवं अशून्यशयन व्रत का अनुष्ठान अत्यंत ही कारगर कार्य होते हैं. शून्य शयन व्रत के दौरान भगवान शिव एवं माता पार्वती का पूजन भी करना चाहिए ऎसा करने से दांपत्य जीवन में शुभता बनी रहती है. 

यह व्रत पुरुष अपनी पत्नी की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करते हैं.  'अशून्य शयन व्रत' को पांच महीनों सावन माह, भाद्रपद माह, आश्विन माह, कार्तिक माह और अगहन माह में किया जाता है.इस व्रत में लक्ष्मी और श्रीहरि यानी विष्णु जी की पूजा का विधान है. दरअसल, शास्त्रों के अनुसार चतुर्मास के दौरान भगवान विष्णु शयन करते हैं और इस अशून्य शयन व्रत के माध्यम से शयन उत्सव मनाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि जो कोई भी इस व्रत को रखता है, उसके वैवाहिक जीवन में कभी दूरी नहीं आती है. साथ ही परिवार में सुख, शांति और सद्भाव बना रहता है. अत: गृहस्थ पति को यह व्रत अवश्य करना चाहिए. 

अशून्य शयन व्रत पूजन महत्व

यह व्रत श्रावण मास से शुरू होकर चतुर्मास के चार महीनों के दौरान प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया और भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है, इस व्रत का वर्णन भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से किया है. अशुन्य शयन का अर्थ है बिस्तर पर अकेले न सोना. जिस तरह महिलाएं अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत रखती हैं, उसी तरह पुरुष भी अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिए यह व्रत रखते हैं, अशुन्य शयन द्वितीया का यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते को बेहतर बनाने के लिए है.इस व्रत में लक्ष्मी और श्री हरि यानी विष्णु जी की पूजा का विधान है. 

मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति इस व्रत को करता है उसके वैवाहिक जीवन में कभी दूरियां नहीं आती और परिवार में सुख, शांति और सद्भाव बना रहता है. वैसे तो यह पुरुषों के लिए ही कहा गया है, लेकिन अगर पति-पत्नी दोनों एक साथ व्रत करें तो और भी अच्छा है. सुबह जल्दी उठना चाहिए और अपने सभी दैनिक कार्य निपटा लेने के पश्चात पूजन की तैयारियां आरंभ करनी चाहिए. साफ कपड़े धारण करने चाहिए  पहनें, पूजा घर को साफ और शुद्ध करें, लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की शय्या की पूजा करें. भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए. जिस प्रकार आपका विश्राम शैय्या लक्ष्मी जी से कभी खाली नहीं होता, उसी प्रकार मेरी शैय्या भी मेरी पत्नी से खाली नहीं होनी चाहिए, मुझे अपने साथी से कभी अलग नहीं होना चाहिए.