व्यास पूर्णिमा 2024 : वेदों के निर्माता वेद व्यास के जन्मोत्सव के रुप में मनाई जाती है व्यास पूर्णिमा

व्यास पूर्णिमा का समय वेद व्यास जयंती के रुप में हर साल अषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है. भारतीय संस्कृति में वेदों का बेहद विशेष स्थान और इन्हीं के रचियता के रुप में वेद व्यास जी को जाना जाता है. कुछ विचारकों के अनुसार वेद व्यास एक परंपरा रही है भारती संस्कृति में तो धर्म शास्त्रों के अनुसार वेद व्यास जी के पिता महर्षि पराशर एवं माता सत्यवती हैं. इनका जन्म जिन परिस्थितियों में हुआ उसी अनुसर इन्हें नाम प्राप्त हुआ कृष्णद्वैपायन वेदव्यास. महाभारत की रचना भी इन्हीं के द्वारा संभव हो पाई और गणेश जी का सहयोग प्राप्त करके महाभारत ग्रंथ संपन्न हो पाया. महर्षि व्यास का संपूर्ण व्यकित्व की बेहद विशाल है जिसमें भारतीय सभ्यता समाहित दिखाई देती है. 

वेद व्यास पूर्णिमा का पौराणिक महत्व 

वेद व्यास जी का स्वरूप हमें किसी भी रूप में मिल सकता है और इस दिन अपने मन में विराजमान व्यास के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने से हमारे सभी दुर्गुण समाप्त होते चले जाते हैं. व्यास पूर्णिमा को व्यास पूजा के रुप में मनाया जाता है. वेद व्यास जी के कार्यों की शृंखला ही भारतीय संस्कृति की गंगा है, जो वैदिक काल से ही बहती चली आ रही है और आज भी निरंतर प्रवाहित होती चली जा रही है. व्यास की स्तुति में ग्रंथों में कई तथ्य प्राप्त होते हैं और पौराणिक रुप से इनका संदर्भ हमें वेदों से प्राप्त होता है. 

व्यास पूर्णिमा कब और क्यों मनाई जाती है?

आषाढ़ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. यह त्यौहार प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में शामिल है. इस दिन व्यास वेद व्यास का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. व्यास जी का स्थान वेदों की रचना और महाभारत की रचना से संबंधित रहा है. धर्म ग्रंथों में वेद व्यास जी को सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है. इसके वेद व्यास जी के रुप में धर्म को मजबूती मिलती है. इन्हीं के ज्ञान को प्रबुद्ध लोगों ने जन-जन तक पहुंचाया. मनुष्य और शांति और प्रेम के साथ जीवन जीने की बात की. आज भी भारत में व्यास जी की पूजा श्रद्धा और भक्ति से की जाती रही है. व्यास पूर्णिमा के दिन आषाढ़ी पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है. इस दिन धार्मिक स्थलों और पवित्र नदियों में स्नान के लिए श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है. व्यास पूर्णिमा के दिन सौभाग्य की कामना के लिए कोकिला व्रत भी रखा जाता है.

वेदांत दर्शन के संस्थापक 

इस दिन देशभर के शैक्षणिक संस्थानों, धार्मिक स्थलों पर व्यास पूर्णिमा की एक अलग ही छाप देखने को मिलती है. इस दिन कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. व्यास परब्रह्म के समान हैं सर्वोच्च ज्ञान प्रदान करने वाला मार्गदर्शक भी है. व्यास का स्थान सर्वोत्तम है, भारती संस्कृति में वेद व्यास को विशेष महत्व दिया गया है, हिंदू धर्म में व्यास का स्थान इतना पवित्र रहा है कि देवता भी उसके सामने झुके बिना नहीं रह पाते. वेदांत दर्शन और अद्वैतवाद की स्थापना करने वाले संत वेद व्यास ही थे. उनका जन्म संत पराशर के पुत्र के रूप में हुआ था. उनकी पत्नी का नाम आरुणि था, जिसने उनके पुत्र शुकदेव को जन्म दिया. व्यास पूर्णिमा के दिन को वेद व्यास जयंती के रूप में भी मनाया जाता है.वेद व्यास द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में पैदा हुए और उन्होंने वेदों के कई अलग-अलग हिस्से लिखे. ऐसा माना जाता है कि पहले द्वापर युग के दौरान, ब्रह्मा वेद व्यास थे, उसके बाद प्रजापति, शुक्राचार्य, बृहस्पति, इंद्र, धनंजय, सूर्य, मृत्यु, अश्वत्थामा आदि थे. ऐसा माना जाता है कि कुल मिलाकर 28 देवता और अन्य थे जो वेद व्यास थे. वेद व्यास ने भी अठारह पुराण लिखे.

व्यास पूर्णिमा पौराणिक कथा

वेद व्यास के बारे में प्राचीन ग्रंथों में कई अलग-अलग कहानियों का उल्लेख किया गया है. कुछ लोग तो उन्हें भगवान विष्णु का स्वरूप भी मानते हैं. उनकी जन्म कथा के अनुसार उनका जन्म संत पराशर और सत्यवती के पुत्र के रूप में हुआ था. सत्यवती नाव चलाती थी और उसे मछली की गंध आती थी. इसलिए, उन्हें मत्स्यगंधा के नाम से भी जाना जाता था. एक बार, संत पराशर ने यमुना नदी से यात्रा करने के लिए अपनी नाव का उपयोग किया. वह उसकी सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गया और उससे शादी करने के लिए कहा.

सत्यवती ने उत्तर देते हुए कहा कि संत पराशर भगवान ब्रह्मा के पुत्र थे और वह सिर्फ एक साधारण इंसान थीं और इसलिए, सगाई नहीं होगी. संत पराशर ने उससे चिंता न करने को कहा और अंततः सत्यवती ने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. संत पराशर ने अपनी शक्ति से धुंध और कोहरा उत्पन्न किया. उन्होंने सत्यवती को आशीर्वाद दिया कि उसके शरीर से मछली की दुर्गंध मीठी सुगंध में बदल जाएगी.

नदी के तट के निकट एक द्वीप पर सत्यवती के घर एक बालक का जन्म हुआ. छोटा बच्चा तुरंत एक युवा लड़के में बदल गया और उसने सत्यवती से कहा कि जब भी वह उसे याद करेगी वह सत्यवती के सामने आ जाएगा. उन्होंने द्वीप छोड़ दिया और अपनी तपस्या करने के लिए चले गये. व्यास जी का रंग पीला था जिसके कारण उन्हें भगवान कृष्ण का स्वरूप माना जाता था. उनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था और इसलिए, उन्हें द्वैपायन के नाम से भी जाना जाता था. वेदों के लिए विभिन्न ग्रंथ लिखने के कारण उन्हें वेद व्यास के नाम से जाना जाता था.