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सीमांतोन्नयन संस्कार - Simantonnayana Sanskar

हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों का वर्णन मिलता है. यह संस्कार तभी से आरम्भ हो जाता है जब जीव गर्भ में प्रवेश करता है इसके बाद समय-समय पर एक-एक करके सोलह संस्कारों को पूरा किया जाता है. इन संस्कारों का अपना महत्व है. गर्भधारण से प्रसव के मध्य होने वाले सभी संस्कारों के विषय में यह धारणा है कि इनसे गर्भ में पलने वाले शिशु एवं माता की सेहत अच्छी रहती है. गर्भ की रक्षा होती है तथा वंश उन्नत होता है. इन संस्कारों को किन मुहूर्तों में किया जाना चाहिए इस विषय का जिक्र इस आलेख में किया जा रहा है.

सीमांतोन्नयन संस्कार - Simantonnayana Sanskar

गर्भाधारण से लेकर प्रसव की तिथि तक पुंसवन संस्कार के बाद किया जाने वाला संस्कार सीमांतोन्नयन संस्कार (Simantonnayana Sanskar) के नाम से जाना जाता है. यह संस्कार गर्भाधान के छठे माह से लेकर आठवें माह के मध्य की अवधि में संपन्न किया जाता है.

इस कार्य के लिए शुभ नक्षत्रों में मृगशिरा, मूल, पुष्य, श्रवण, पुनर्वसु, हस्त आदि नक्षत्र आते है. इस कार्य के शुभ वारों में गुरुवार, रविवार, मंगलवार पुरुष वारों को लिया जाता है.

संस्कार के लिये तिथि व लग्न समय - Muhurat for Simantonnayana Sanskar

सीमांतोन्नयन संस्कार (Simantonnayana Sanskar) को करने के लिये 4,9,14,30,12,6,8 वीं तिथियों को छोड़ देना चाहिए. इसके अतिरिक्त अन्य तिथियों में इस संस्कार को करना शुभ रहता है. यह संस्कार इन मास के स्वामी के बलवान होने पर करना विशेष रुप से शुभ होता है. जिस समय शुभ ग्रह गोचर में केन्द्र व त्रिकोण में हो वह लग्न समय इस संस्कार कार्य के अनुकूल होता है. 6,8 एवं12वां घर का रिक्त होना शुभ रहता है.

सीमांतोन्नयन संस्कार (Simantonnayana Sanskar) के विषय में यह कहा जाता है कि अगर सींमतोन्नयन संस्कार 12,5,8 इन लग्न समयों में किया जाता है तो माता व विशेष रुप से शिशु के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है. यह संस्कार प्रसव से पूर्व का तीसरा व अन्तिम संस्कार होता है.

सीमांतोन्नयन संस्कार (Simantonnayana Sanskar) उस समय करना चाहिए जब लग्न समय, वार, चन्द्र व तारा शुभ हो. अगर ये सभी तत्व शुभ नहीं हों तो मुहूर्त में जो सबसे अच्छा समय हो उसमें ही यह संस्कार आयोजित करना चाहिए.
Article Categories: Muhurat
Article Tags: Simantonnayana Sanskar