होलिका दहन 6/7 मार्च 2023, कब करें, कैसे करें, पूजन विधि. (Holika dahan 17th March 2022, When to do, what to do and Puja process)

holika_dahan 2023 में होलिका दहन को लेकर इस वर्ष समय को लेकर दो मत प्रचलित रहने वाले हैं. एक मत अनुसार 6 मार्च 2023 को होलिका दहन और दूसरा 7 मार्च को होलिका दहन विचार फाल्गुन पूर्णिमा 6 मार्च को प्रदोष काल व्याप्त होगी. 7 मार्च को उत्तर भारत में प्रदोष को बिलकुल स्पर्श नहीं कर रही है. 6 मार्च 2023 को प्रदोषकाल लगभग 18:25 से 20:55 तक रहेगा. यह भद्रा से व्याप्त होगा और भद्रा निशीथ से कहीं आगे जाकर अगले दिन प्रात: 05:14 तक जाकर समाप्त होगा. अगले इन पूर्णिमा 7 मार्च 2023 को पूर्णिमा साढे़ तीन प्रहर से अधिक व्याप्त है. लेकिन प्रतिपदा तिथि का मान पूर्णिमा के कुल मान से कम होने के कारण 6 मार्च को प्रदोष व्यापीनी पूर्णिमा में भद्रा मुख भद्रा पुच्छ का विचार न करके प्रदोषकाल में होलिका दहन किया जा सकता है.


अन्य विचार अनुसार भारत के उत्तर पूर्वी प्रदेशों में जहां सूर्यास्थ 18:10 से पहले होगा, वहां पर होलिका दहन 7 मार्च 2023 को ही प्रदोष में होगा. इस समय यहां पर पूर्णिमा प्रदोषकाल को 18:10 बाद स्पर्श कर रही होगी तथा भद्रा का भी अभाव होगा. इस प्रकार इस वर्ष होलिका दहन को लेकर दो मत प्रचलित रहने वाले हैं.


भद्रा के मुख का त्याग करके निशा मुख में होली का पूजन करना शुभफलदायक सिद्ध होता है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी पर्व-त्योहारों को मुहूर्त शुद्धि के अनुसार मनाना शुभ एवं कल्याणकारी है. हिंदू धर्म में अनगिनत मान्यताएं, परंपराएं एवं रीतियां हैं. वैसे तो समय परिवर्तन के साथ-साथ लोगों के विचार व धारणाएं बदलीं, उनके सोचने-समझने का तरीका बदला, परंतु संस्कृति का आधार अपनी जगह आज भी कायम है.


आज की युवा पीढ़ी में हमारी प्राचीन नीतियों को लेकर कई सवाल उठते हैं, परंतु भारतीय धर्म साधना के परिवेश में वर्ष भर में शायद ही ऐसा कोई त्योहार हो जिसे हमारे राज्य अपने-अपने रीति रिवाजों के अनुसार धूमधाम से न मनाते हो.


होलिका में आहुति देने वाली सामग्रियां (Things to cast into the Holi fire)

होलिका दहन होने के बाद होलिका में जिन वस्तुओं की आहुति दी जाती है, उसमें कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग है. सप्त धान्य है, गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर.


होलिका दहन की पूजा विधि (Method of Holi Pujan)

होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है. इस पूजा को करते समय, पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए. पूजा करने के लिये निम्न सामग्री को प्रयोग करना चाहिए.

  1. एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नई फसल के धान्यों जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखी जाती है.

  2. इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा अन्य खिलौने रख दिये जाते है.

  3. होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका का पूजन करना चाहिए. गोबर से बनाई गई ढाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख ली जाती है. इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती है.

  4. कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है. फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है. रोली, अक्षत व पुष्प को भी पूजन में प्रयोग किया जाता है. गंध- पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है. पूजन के बाद जल से अर्ध्य दिया जाता है.

  5. सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्जवलित कर दी जाती है. इसमें अग्नि प्रज्जवलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है. सार्वजनिक होली से अग्नि लाकर घर में बनाई गई होली में अग्नि प्रज्जवलित की जाती है. अंत में सभी पुरुष रोली का टीका लगाते है, तथा महिलाएं गीत गाती है. तथा बडों का आशिर्वाद लिया जाता है.

  6. सेक कर लाये गये धान्यों को खाने से निरोगी रहने की मान्यता है.

  7. ऎसा माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को अशुभ शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है. तथा इस राख का शरीर पर लेपन भी किया जाता है.

राख का लेपन करते समय निम्न मंत्र का जाप करना कल्याणकारी रहता है

वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रम्हणा शंकरेण च ।

अतस्त्वं पाहि माँ देवी! भूति भूतिप्रदा भव ॥


होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए. (Chant the mantra below while Holika Pujan)

अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः

अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्‌


इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रुप में करना चाहिए.


होलिका पूजन के बाद होलिका दहन (Holika Dahan is done After Holi Pujan)

विधिवत रुप से होलिका का पूजन करने के बाद होलिका का दहन किया जाता है. होलिका दहन सदैव भद्रा समय के बाद ही किया जाता है. इसलिये दहन करने से भद्रा का विचार कर लेना चाहिए. ऎसा माना जाता है कि भद्रा समय में होलिका का दहन करने से क्षेत्र विशेष में अशुभ घटनाएं होने की सम्भावना बढ जाती है.


इसके अलावा चतुर्दशी तिथि, प्रतिपदा में भी होलिका का दहन नहीं किया जाता है. तथा सूर्यास्त से पहले कभी भी होलिका दहन नहीं करना चाहिए. होलिका दहन करने समय मुहूर्त आदि का ध्यान रखना शुभ माना जाता है.


आधुनिक परिपक्ष्य में होलिका दहन (Holi Dahan in the Modern Times)

आज के संदर्भ में वृ्क्षारोपण के महत्व को देखते हुए, आज होलिका में लकडियों को जलाने के स्थान पर, अपने मन से आपसी कटुता को जलाने का प्रयास करना चाहिए, जिससे हम सब देश की उन्नति और विकास के लिये एक जुट होकर कार्य कर सकें. आज के समय की यह मांग है कि पेड जलाने के स्थान पर उन्हें प्रतिकात्मक रुप में जलाया जायें. इससे वायु प्रदूषण और वृ्क्षों की कमी से जूझती इस धरा को बचाया जा सकता है. प्रकृ्ति को बचाये रखने से ही मनुष्य जाति को बचाया जा सकता है, यह बात हम सभी को कभी नहीं भूलनी चाहिए.


आप सभी को होली की हार्दिक शुभ कामनाएं....